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Climate Change: गर्मी, बाढ़ और बरसात, पिक्चर अभी बाकी है दोस्तों, देखें कैसे खतरनाक रूप ले रहा ये मौसम
Climate Change Reason: वेलकम टू क्लाइमेट चेंज! जी हां, जो देश दुनिया के वैज्ञानिक चिल्ला चिल्ला कर कहते आये हैं, ये सब उसका एक ट्रेलर मात्र है। अभी तो पिक्चर बाकी है जिसकी स्क्रिप्ट एक तथाकथित प्रलय के बरक्स पेश की जाती है।
Climate Change Reason: कहावत है कि मौसम और जिंदगी, दोनों का कोई भरोसा नहीं। एक पल में क्या से क्या हो जाये, कोई कुछ नहीं कह सकता। यह कहावत पूरी शिद्दत से इन दिनों चरितार्थ हो रही है। अच्छे भले लोग अचानक खत्म हो जा रहे हैं, जैसा पहले कभी हुआ नहीं और मौसम ऐसे रंग दिखा रहा है , जो इंसानी याद्दाश्त में कभी देखे नहीं गए।
मौसम की क्या कहें, कुछ भी कहें तो कम लगता है। सात समंदर पार की जिन जगहों की बर्फीली चोटियों, हरे भरे जंगलात, बलखाती नदियों की तस्वीरें बारास्ता किताबों और सिनेमा, ज़ेहन में बसी हैं। लेकिन वही सात समंदर पार वाले यूरोप और अमेरिका में नदियां, झीलें, तालाब सूखे पड़ गए हैं, जंगलों में आग है, जमीन 54 डिग्री पर धधक रही है, लू के जानलेवा थपेड़े चल रहे हैं। जमीन से इतना पानी निकाल लिया गया है कि पृथ्वी का एक्सिस यानी संतुलन ही गड़बड़ा गया है।उतनी दूर ही नहीं, अपने घर में भी वही हाल है। देवभूमि उत्तराखंड और सुरम्य हिमाचल में आफती बरसात, उफनाती नदियों, बादल फटने, पहाड़ दरकने ने ऐसे मंजर दिखाए हैं, जो बताते हैं कि देव कितने क्रोधित हैं। प्रकृति कितनी क्षुब्ध है।
क्लाइमेट चेंज: पिक्चर अभी बाकी है
वेलकम टू क्लाइमेट चेंज! जी हां, जो देश दुनिया के वैज्ञानिक चिल्ला चिल्ला कर कहते आये हैं, ये सब उसका एक ट्रेलर मात्र है। अभी तो पिक्चर बाकी है जिसकी स्क्रिप्ट एक तथाकथित प्रलय के बरक्स पेश की जाती है।
अमेरिका, चीन, भारत, पाकिस्तान, यूरोप के तमाम देश एक्सट्रीम मौसम का मंजर देख रहे हैं, झेल रहे हैं। अमेरिका और यूरोप में अभी तो गर्मियों के मौसम की शुरुआत हुई है, आने वाले पीक दिन न जाने क्या क्या दिखाने वाले हैं।क्लाइमेट चेंज को सेमिनार और ड्राइंग रूम की शोशेबाजी समझने वालों को पता होना चाहिए कि जबसे इंसान ने तापमान रिकार्ड करना शुरू किया है तबसे इस साल जून के महीना सबसे गर्म दर्ज किया गया है। जून में तो पृथ्वी का अपना तापमान रिकार्ड अब तक का सबसे ज्यादा 17.2 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया है।
अमेरिका के 11 करोड़ से ज्यादा लोग, या लगभग एक तिहाई अमेरिकी धधकते तापमान की चपेट में हैं। पूरब से लेकर दक्षिण तक दो तिहाई अमेरिका में प्रचंड गर्मी की लहर और बदतर होने का अनुमान है। कुछ इलाकों में दिन के दौरान तापमान 48.8 डिग्री सेल्सियस से भी ज्यादा और रात भर 32.2 डिग्री सेल्सियस से ऊपर तक बना हुआ है। पुलिस स्टेशनों, स्कूलों, पुस्तकालयों, चर्चों, ऑफिसों, स्टोर्स आदि में हाइड्रेशन स्टेशन और कूलिंग सेंटर बनाये गए हैं ताकि वहां लोग एसी में आराम कर सकें।
देश के कई हिस्सों में हीट डोम की स्थिति है। यह वह स्थिति है जिसमें गर्म समुद्री हवाएं वातावरण में कैद हो जाती हैं और वायुमंडल में गर्म हवाओं का विशालकाय डोम यानी गुम्बद बन जाता है। इस डोम के नीचे के क्षेत्र में भयानक गर्मी पड़ती है। ऐसे हीट डोम के कारण अमेरिका में अलग अलग जगहों पर 1,000 से अधिक उच्च तापमान के रिकॉर्ड बन गए हैं। विडंबना यह है कि कुदरती गर्मी से बचने के लिए जितने ज्यादा एसी चलाये जा रहे हैं, कि जमीन उतनी ही गर्म होती जा रही है और हीट डोम उतना ज्यादा मजबूत होता जा रहा है। इन गर्म फैक्टर्स का ही नतीजा है कि एरिज़ोना प्रान्त में जमीन की सतह का तापमान 54 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया है। कोई कैसे झेल सकेगा इसे?
एक्सट्रीम मौसम कोई "वाद" नहीं देख रहा। पूंजीवादी अमेरिका में आग बरस रही है तो कम्युनिस्ट चीन में प्रचंड गर्मी, सूखा और बाढ़ का कहर है। राजधानी बीजिंग समेत पूरे पूर्वी और दक्षिण पश्चिमी चीन में त्राहि त्राहि है। इस्लाम का परचम लहराने वाले तुर्की के 16 प्रान्तों में नदियां उफनाई हुईं हैं। बाढ़ आई हुई है। दक्षिण पश्चिमी जापान में मूसलाधार बारिश के कारण भयंकर बाढ़ और भूस्खलन हुआ है।
यूरोप की गर्मी
उधर यूरोप भी इन्हीं हालातों से जूझ रहा है। इटली 48 डिग्री सेल्सियस में तप रहा है। समूचे यूरोप में अब तक दर्ज यह सर्वाधिक तापमान है। इटली के अलावा स्पेन, फ्रांस, ग्रीस, क्रोएशिया भीषण गर्मी का सामना कर रहे हैं, तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर बढ़ता जा रहा है। यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए) ने कहा है कि पूरे यूरोप में तापमान बढ़ रहा है और यह अभी शुरुआत है। पिछले साल यूरोप की भीषण हीट वेव में 61,000 से अधिक लोग मारे गए थे। इस साल की हीट वेव को "सेर्बेरस" नाम दिया गया है जो इतालवी लेखक दांते के उपन्यास "इन्फर्नो" में बताए गए तीन सिर वाले राक्षस के नाम पर है। यह गर्मी वास्तव में राक्षसी है।
भारत की क्या कहें, सब टीवी, यूट्यूब और अखबार बता चुके हैं। हिमाचल में अभूतपूर्व तबाही हुई है। मनाली जैसा टॉप टूरिस्ट डेस्टिनेशन बर्बाद हो गया है। हजार से ज्यादा सड़कें खत्म हो गईं हैं। यही हाल उत्तराखंड का है। पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, यूपी से लेकर असम तक हर जगह वही हाल है। मुंबई में तो इतनी बारिश हुई कि महीने भर का मानसूनी कोटा एक दिन में पूरा हो गया। देश भर के 70 फीसदी जिले बारिश, बाढ़ भूस्खलन आदि से प्रभावित हुए हैं। बारिश के पहले प्रचंड गर्मी ने समूचे उत्तर भारत को बेहाल कर दिया था। अब पानी की बारी है। मौतों की गिनती कहाँ तक जाएगी, कुछ कहा नहीं जा सकता। भारत भर में बाढ़ के कारण 2021 में 656 मौतें और 2022 में 959 मौतें दर्ज कीं गईं थीं।
इंसानों की करनी
मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि इस प्रकार की अत्यधिक गर्मी इंसानों की खुद की करनी से हुए जलवायु परिवर्तन के लक्षणों में से एक है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 50 वर्षों में मौसम संबंधी आपदाएँ बढ़ी हैं। मानव निर्मित ग्लोबल वार्मिंग के कारण चरम मौसम की घटनाओं के कारण 20 लाख से अधिक मौतें हुई हैं और 4.3 ट्रिलियन डॉलर की आर्थिक हानि हुई है।
वैज्ञानिक बताते हैं कि पृथ्वी का तापमान बढ़ते जाने से पहाड़ों पर होने वाली बड़ी बर्फबारी अब अत्यधिक बारिश में तब्दील हो रही है। पृथ्वी में हर डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने पर उच्च ऊंचाई पर अत्यधिक वर्षा 15 फीसदी बढ़ जाती है। हम खुद ही देख रहे हैं कि पहाड़ों में बर्फबारी घटती जा रही है और बरसात की अवधि और वेग, दोनों बहुत बढ़ रहे हैं। आने वाले समय में 40 डिग्री सेल्सियस का तापमान इस सदी के मध्य तक सालाना 20 से 50 बार की बात हो सकती है।
पेड़ों और जंगलों को काटना
बहुत बर्बादी हमारी खुद की बनाई हुई है। हिमाचल से लेकर उत्तराखंड तक जिसे जहां जगह मिली वहां कंस्ट्रक्शन कर लिया है। नदियों से सटाकर हर जगह पर होटल, रिसॉर्ट बना रखे हैं। पेड़ों जंगलों को बस किसी तरह काटना और बिल्डिंग बनाना है। नदियों और जल धाराओं के प्राकृतिक रास्ते मोड़ना, रोकना, तोड़ना आम शगल है। ऐसे में और क्या होगा? हिमाचल में शांत पार्वती नदी हो या ब्यास, सतलज, सभी ने इंसानों की करनी की औकात बता दी है। ये क्लाइमेट चेंज से इतर की चीजें हैं जैसे कि लखनऊ में जलभराव या दिल्ली में बाढ़। कहने को स्मार्ट सिटी हैं लेकिन नाले नालियों तक को बेकार बना कर रखा है। नदियों के जल फैलाव क्षेत्र में बस्तियों की बेरोकटोक भरमार है।
लोग सब जानते हैं कि क्या गलत है क्योंकि हम सब इसमें कॉन्ट्रिब्यूशन कर रहे हैं। डिस्ट्रक्शन को डेवलपमेंट समझ कर बैठे हैं। गर्मी बढ़ने पर दो एसी और लगवा लेंगे लेकिन उसका दीर्घकालिक इम्पैक्ट जान कर नहीं समझेंगे। पहाड़ धसक जाएंगे लेकिन गेस्ट हाउस और होटल बनाते ही जायेंगे। पहाड़ों पर घूमने जाएंगे और ढेरों प्लास्टिक कचरा अपनी निशानी के रूप में वहीं छोड़ आएंगे।
अभी तो शुरुआत है, देखिए आगे आगे क्या क्या होता है। भागने की सोच रहे हैं तो जाएंगे कहां? हाल उधर भी वही है जो यहां है। देर बहुत हो चुकी है, शायद आने वाली नस्लों को ही हम बचा सकें तो खुशनसीब होंगे।
(लेखक पत्रकार हैं ।)