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Climate Change: क्लाइमेट चेंज की चिंता, बिल गेट्स ने नए एसी पर लगाया दांव
Climate Change: नई तकनीक ऊर्जा की खपत को 90 फीसदी तक कम कर सकती है। ब्लू फ्रंटियर को बिल गेट्स के स्वच्छ निवेश कोष ब्रेकथ्रू एनर्जी वेंचर्स से 20 मिलियन डॉलर मिले हैं।
Lucknow: बढ़ती गर्मियों (rising summer) के साथ एयरकंडीशनरों का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है। लेकिन दिक्कत ये है हमारी एसी तकनीक पुरानी है और उससे जुड़ी समस्या वास्तव में दुगनी है। एयर कंडीशनर (air conditioner) बहुत बिजली खाते हैं और हाइड्रोफ्लोरोकार्बन व कार्बन डाइऑक्साइड (hydrofluorocarbons and carbon dioxide) जैसी ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करते हैं। ये जलवायु परिवर्तन (Climate change) का एक बहुत बड़ा कारक है।
ऐसे में ब्लू फ्रंटियर नामक कंपनी एक उत्साहजनक समाधान ले कर आई है। ब्लू फ्रंटियर (blue frontier) के स्वच्छ एयर कंडीशनिंग सिस्टम के परिणाम इतने आशाजनक हैं कि कंपनी को बिल गेट्स (Bill Gates) से एक बड़ी फंडिंग मिली है। ब्लू फ्रंटियर अमेरिका में एक फ्लोरिडा स्थित स्टार्टअप है जो अगली पीढ़ी के एयर कंडीशनिंग सिस्टम की इंजीनियरिंग पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।
कंपनी का दावा है कि उनकी नई तकनीक ऊर्जा की खपत को 90 फीसदी तक कम कर सकती है। यह आंकड़ा इतना आशाजनक है कि ब्लू फ्रंटियर को बिल गेट्स के स्वच्छ निवेश कोष ब्रेकथ्रू एनर्जी वेंचर्स से 20 मिलियन डॉलर मिले हैं। फिलहाल, ब्लू फ्रंटियर गैर-आवासीय भवनों और नई इमारतों पर ध्यान दे रहा है जिनकी छत पर उसकी एसी यूनिट लग सकती है। अभी ये पता नहीं है कि इस तकनीक को किसी अपार्टमेंट में विंडो यूनिट की तरह काम में लिया जा सकता है कि नहीं।
शीतलन के लिए नमक का इस्तेमाल
कंपनी की वेबसाइट पर एक रिपोर्ट में उसकी एसी प्रक्रिया को बताया गया है। ब्लू फ्रंटियर का कहना है कि शीतलन के लिए नमक का इस्तेमाल किया जाता है। यह नमक सलूशन हीट पंप के माध्यम से अत्यधिक केंद्रित होता है जो इसके भीतर को पानी को वाष्पित करता है। जब तक एयर कंडीशनिंग की आवश्यकता नहीं होती तब तक इसे वातावरण से सील कर दिया जाता है। जब कंसंट्रेटेड घोल हवा के संपर्क में आता है, तो यह जल वाष्प को सोख कर हवा को सुखा देता है। फिर अप्रत्यक्ष बाष्पीकरणीय शीतलन के माध्यम से ये हवा के तापमान को कम कर देता है।
लॉरेंस बर्कले नेशनल लेबोरेटरी, इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी, और रॉकी माउंटेन इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला है कि अकेले रूम एयर कंडीशनर - अभी से 2050 तक 130 गीगाटन से अधिक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार होंगे। यह दुनिया के शेष "कार्बन बजट" का 20-40 फीसदी हिस्सा होगा।
आरएमआई शोध से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए आमूलचूल सुधार संभव हैं। अधिकांश एसी इकाइयों के केंद्र में कंप्रेसर तकनीक अपनी सैद्धांतिक अधिकतम दक्षता के बमुश्किल 14 फीसदी तक पहुंच पाई है।
एसी उद्योग में मुट्ठी भर बड़े मौजूदा निर्माताओं का वर्चस्व
इसकी तुलना में सौर पैनल अपनी सैद्धांतिक दक्षता क्षमता के 40 फीसदी तक पहुंचते हैं। एलईडी लाइटिंग तो 70 फीसदी तक पहुंच जाती हैं। एसी उद्योग में मुट्ठी भर बड़े मौजूदा निर्माताओं का वर्चस्व है जो केवल वर्तमान नियामक और बाजार संकेतों के हिसाब से काम कर रहे हैं। उपभोक्ता कीमत, ब्रांड और किसी भी चीज़ से अधिक दिखने की परवाह करते हैं, और नियामक दक्षता मानकों के संबंध में अधिक दबाव लागू करने में विफल ल हैं।
नतीजतन, एसी कंपनियां आम तौर पर अनुसंधान और विकास से खएँ ज्यादा विज्ञापन और सौंदर्यशास्त्र पर खर्च करती हैं। कंपनियां जितनी कम हो सके उतनी कम दक्षता वाली इकाइयों पर ध्यान केंद्रित करती हैं।
पारंपरिक एयर कंडीशनर तकनीक हवा को ठंडा करने के लिए वाष्प कम्प्रेशन चक्र का उपयोग करती है। उस सिस्टम में कूलिंग करने के लिए रेफ्रिजरेंट का इस्तेमाल किया जाता है। क्लोरोफ्लोरोकार्बन और हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन (chlorofluorocarbons and hydrochlorofluorocarbons) एयर कंडीशनर में सबसे आम रेफ्रिजरेंट का हिस्सा हुआ करते थे, लेकिन वे रसायन ओजोन परत को ख़राब कर देते हैं और उन्हें चरणबद्ध तरीके से समाप्त किया जा रहा है। कुछ विकल्प हैं जो ओजोन परत को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं, लेकिन उनमें अभी भी एक उच्च ग्लोबल वार्मिंग क्षमता है।