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Climate Conference: दुनिया के आबोहवा की चिंता की सच्चाई

Climate conference: चीन दुनिया का सबसे बड़ा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जक और सबसे ज्यादा कोयला उपभोग करने वाला देश है।

Yogesh Mishra
Newstrack Yogesh MishraPublished By Ragini Sinha
Published on: 1 Nov 2021 1:33 PM IST
Climate conferenceCOP 26
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क्लाइमेट कॉन्फ्रेंस (social media)

Climate conference: संयुक्त राष्ट्र (United Nation) द्वारा आयोजित सीओपी (COP) 26' नामक जलवायु सम्मेलन (Climate conference) 31 अक्टूबर से 12 नवम्बर,2021 तक ग्लासगो ब्रिटेन में हो रहा है । संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि पेरिस जलवायु (Paris climate) समझौते में भाग लेने वाले 191 देशों में से अब तक केवल 113 देश ही बेहतर योजनाओं और नीतियों के साथ आए हैं। पेरिस जलवायु समझौते का लक्ष्य दुनिया का तापमान 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं बढ़ने देना है। उसे 1.5 डिग्री पर ही रोक देना है। लेकिन यह कैसे होगा, इसका जवाब नदारद है।

अमेरिका के पास 237295 मिलियन टन कोयला है

चीन दुनिया का सबसे बड़ा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जक और सबसे ज्यादा कोयला उपभोग करने वाला देश है। उसने कहा है कि वह वर्ष 2060 तक कार्बन शून्य हो जाएगा। दुनिया में कोयला भण्डार की बात करें तो अमेरिका के पास 237295 मिलियन टन कोयला है। चीन के पास 157010 मिलियन टन, आस्ट्रेलिया (Australia) के पास 76400 मिलियन टन का भण्डार है। कोयला (Coal) का उपभोग सबसे ज्यादा यानी 50.7 फीसदी चीन करता है। इसके बाद 12.5 फीसदी के साथ अमेरिका है। कोयले के आयात के मामले में चीन दुनिया में नंबर एक पर है। भारत तीसरे नंबर पर। कोयले के उत्पादन के मामले में भी चीन और भारत क्रमश: नंबर एक और दो पर आते हैं। दुनिया भर में लगभग 40 प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन के लिए कोयला ज़िम्मेदार है।


भारत जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल करने के खिलाफ

भारत उन देशों में शामिल है, जो जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल एकदम बंद करने के खिलाफ हैं। चीन और अमेरिका के बाद भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है। भारत (India) ने न तो अपने लिए नेट-ज़ीरो का कोई लक्षित वर्ष तय किया है और न ही उसने संयुक्त राष्ट्र को अभी तक कोई प्रस्तावित योजना दी है।जबकि पेरिस समझौते के तहत हर पांच साल में यह देना ज़रूरी है। कनाडा, फ़्रांस, डेनमार्क, हंगरी, जापान, लक्सम्बर्ग, न्यूज़ीलैण्ड, साउथ कोरिया, यूके, उज्बेकिस्तान ने वर्ष 2050 तक तथा जर्मनी, स्कॉटलैंड, स्वीडन ने 2045 तक कार्बन न्यूट्रल होने की बात कही है । इन देशों ने यह लक्ष्य पाने के लिए कानून बनाया है। सऊदीअरब, रूस, फिजी ने 2060 तक तथा नेपाल और ऑस्ट्रेलिया ने 2050 तक कार्बन न्यूट्रल होने का वादा किया है।

भारत 2030 तक कार्बन उत्सर्जन 33-35 प्रतिशत तक कम करेगा

यूरोपियन यूनियन ने भी 2050 तक कार्बन न्यूट्रल होने और 2030 तक ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन 55 फीसदी तक घटाने का लक्ष्य रखा है। इस क्रम में आगे बढ़ते हुए यूरोप के देश कोयले पर अपनी निर्भरता घटाने और पवन टरबाइन तथा सोलर ऊर्जा अपनाने में लगे हुए हैं। कोयला त्यागने और ग्रीन ऊर्जा अपनाने के बीच के गैप को प्राकृतिक गैस के जरिये भरा जाना है। पेरिस समझौते के मुताबिक भारत 2030 तक कार्बन उत्सर्जन 33-35 प्रतिशत तक कम करेगा। नवीकरणीय ऊर्जा को 175 गीगावॉट तक बढ़ाएगा।


100 करोड़ रुपये हर साल देने का वादा

पर्यावरण मंत्रालय (Ministry of Environment) के मुताबिक सीओपी 26 की इस बार बैठक में ग्लोबल वार्मिंग (Global warming) के स्तर के लिए रोडमैप, जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने के लिए विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन को कम करने के प्रभावी उपायों को लागू करने, कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए 100 करोड़ रुपये हर साल देने के वादे की प्रतिबद्धता जैसे विषय सम्मेलन के एजेंडे में हैं। भारत जहां हर साल 10 से 11 गीगावॉट सौर ऊर्जा उत्पादन में बढ़ोतरी कर पाता है । वहीं चीन 55 से 60 गीगावॉट की क्षमता बढ़ा लेता है। चीन में बिजली की खपत (Bijli ki khapat) भारत के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा है। 2018-19 के आंकड़ों के मुताबिक भारत में प्रति व्यक्ति बिजली की खपत करीब 1181 किलोवॉट प्रतिघंटा घंटा थी। वहीं, चीन में यह 4906 किलोवॉट प्रति घंटा थी। वैश्विक औसत 3260 किलोवॉट था। चीन ने सौर ऊर्जा की अपनी क्षमता को तेज़ी से बढ़ाया है, जो उसके जलवायु परिवर्तन के लक्ष्य को थोड़ा आसान बनाते हैं। सोलर मॉड्यूल का निर्माण भी चीन में ही होता है। भारत 80 प्रतिशत मॉड्यूल चीन से आयात करता है।

नेट-ज़ीरो में किसी देश का कुल कार्बन-उत्सर्जन शून्य हो जाएगा

नेट-ज़ीरो या कार्बन न्यूट्रल होने का अर्थ है जितना संभव हो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना। नेट-ज़ीरो में किसी देश का कुल कार्बन-उत्सर्जन शून्य हो जाएगा। यानी जो भी मानव जनित कार्बन उत्सर्जन हो रहा है , वह खत्म हो जाए। इस तरह वातावरण में जाने वाली कार्बन की मात्रा शून्य होगी । जिससे ग्लोबल वॉर्मिंग के ख़तरे से निपटा जा सकेगा। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिये स्वच्छ ऊर्जा के प्रयोग को बढ़ाने और वृक्षारोपण जैसे उपाय अपनाने होंगे।चीन पहले ही घोषणा कर चुका है कि वह 2060 तक कार्बन न्यूट्रल हो जाएगा। चीन ने यह भी कहा है कि उसका उत्सर्जन 2030 से पहले अपने चरम पर पहुंच जाएगा। दूसरे सबसे बड़े कार्बन उत्सर्जक देश अमेरिका ने नेट-ज़ीरो तक पहुंचने के लिए 2050 तक का लक्ष्य रखा है। अमेरिका का कहना है कि वह 2035 तक अपने पावर सेक्टर को डी-कार्बोनाइज़ कर देगा।

पहले 1362 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता था

जब 1947 में देश आजाद हुआ था, उस समय सिर्फ 1362 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता था। लगातार बिजली की मांग होने के बावजूद भारत में प्रति व्यक्ति सबसे कम बिजली की खपत होती है। पूरी दुनिया में औसतन बिजली की खपत 2429 यूनिट है , जबकि भारत में यह 734 यूनिट है। कनाडा में बिजली की खपत सबसे अधिक 18, 347 यूनिट है , जबकि अमरीका में यह 13,647 यूनिट और चीन में 2456 यूनिट है। भारत में उद्योग और व्यापार की तुलना में बिजली की खपत घरेलू और कृषि में ज्यादा होती है। वर्ष 1970-71 में उद्योग जगत 61.6 फीसदी बिजली खपत करता था, जो वर्ष 2008-09 में घटकर 38 फीसदी हो गया। भारत में स्वतंत्रता के समय से ही बिजली की भयंकर कमी रही है । जबकि इसके उत्पादन में आठ फीसदी की दर से बढ़ोतरी होती रही है। नीति आयोग के अनुसार पीक समय में बिजली की कमी दस फीसदी होती है । जबकि समान्यतया 7 फीसदी बिजली की कमी होती है। भारत में कुल संघीय पूंजी का 15 फीसदी या उससे अधिक राशि बिजली उत्पादन पर खर्च किया जाता है।

भारत में मांग के अनुसार वैकल्पिक उर्जा का विस्तार नहीं हुआ है । लेकिन अब बिजली संकट गहराने के बाद एक बार फिर वैकल्पिक उर्जा पर चर्चा शुरू हो गई है। एक वर्ष पूर्व री-इन्वेस्ट के तीसरे संस्करण के दौरान प्रतिनिधि राष्ट्रों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि भारत नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में विश्व में चौथे स्थान पर पहुंच गया है। दुनिया के सबसे तेज नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन वाले देशों में तीव्र गति से आगे बढ़ रहा है।भारत की नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन क्षमता वर्तमान में बढ़ते हुए 136 गीगावॉट हो गई है है। जो कि हमारी कुल ऊर्जा क्षमता का 36 प्रतिशत है। 2022 तक, अक्षय क्षमता का हिस्सा बढ़कर 220 गीगा वॉट हो जाएगा। भारत लगातार नवीनीकरणीय क्षेत्र में निवेश का पसंदीदा स्थल बनता जा रहा है। पिछले 6 वर्षों के दौरान भारत में नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में लगभग 5 लाख करोड़ रुपये यानी 64 अरब डॉलर से अधिक का निवेश किया गया है।

भारत में 67 फीसदी कोयला बिजली बनाने में खर्च

पेरिस समझौते के अनुसार भारत ने संकल्प लिया है कि 2030 तक बिजली उत्पादन की हमारी 40 फीसदी स्थापित क्षमता ऊर्जा के स्वच्छ स्रोतों पर आधारित होगी। साथ ही यह भी निर्धारित किया गया है कि 2022 तक 175 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता स्थापित की जाएगी। इसमें सौर ऊर्जा से 100 गीगावाट, पवन ऊर्जा से 60 गीगावाट, बायो-पावर से 10 गीगावाट और छोटी पनबिजली परियोजनाओं से 5 गीगावाट क्षमता शामिल है। भारत के पास जल, सौर और पवन ऊर्जा के जरिए करीब 1.4 लाख मेगावाट बिजली उत्पादन क्षमता है।भारत की कुल बिजली उत्पादन क्षमता में कोयला और लिग्नाइट का हिस्सा 56 फीसदी है।गैस से 6.5 फीसदी और डीजल से 0.1 फीसदी बिजली का उत्पादन किया जाता है। 12 फीसदी बिजली का उत्पादन पनबिजली संयंत्रों से और 25 फीसदी बिजली का उत्पादन पवन, सोलर और अन्य रिन्यूएबल स्रोतों से किया जाता है। देश में अब भी केवल 1.7 फीसदी परमाणु बिजली का उत्पादन किया जाता है। भारत में कोयला भण्डार 285 अरब टन का है। इस मामले में भारत चीन और अमेरिका के बाद तीसरे नंबर पर है। भारत में निकला 67 फीसदी कोयला बिजली बनाने में खर्च होता है।

भारत में कोयले से चलने वाले 135 पावर प्लांट्स

देश में जितनी बिजली पैदा होती है उसमें से 70 फीसदी कोयले वाले पावर प्लांट्स ही बनाते हैं।भारत में कोयले से चलने वाले 135 पावर प्लांट्स हैं।भारत में दुनिया का चौथा सबसे बड़ा कोयले का भंडार है। कोल इंडिया, पूरी दुनिया की सबसे बड़ी कोयला खनन कंपनी है। भारत में कोयले की कुल खपत का तीन-चौथाई हिस्सा बिजली उत्पादन पर ही खर्च होता है। भारत दुनिया में कोयले का दूसरा सबसे बड़ा आयातक है। इन वजहों और जलवायु परिवर्तन के वैश्विक दबावों को देखते हुए भारत रिन्यूएबल एनर्जी को लेकर भी लगातार प्रयास कर रहा है। हालांकि भारत में जल्द ही कोई ऊर्जा स्रोत कोयले का सीधा विकल्प नहीं बन सकता है।भारत अपनी जरूरत का 45 फीसदी गैस आयात करता है।भारत के कोयला बिजली संयंत्रों में रोज़ाना 18.5 लाख टन कोयले की ज़रूरत होती है।अमेरिका के ऑफिस ऑफ डायरेक्टर ऑफ नेशनल इंटेलिजेंस (ओडीएनआई) की ताजा रिपोर्ट नेशनल इंटेलिजेंस एस्टीमेट में पूर्वानुमान जाहिर किया गया है कि ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण 2040 तक भू-राजनीतिक तनाव बढ़ेंगे जिसका अमेरिका की सुरक्षा पर भी असर होगा। ये पूर्वानुमान अमेरिका की विभिन्न जासूसी एजेंसियों द्वारा जाहिर किए गए हैं। इन 11 में अफगानिस्तान, भारत और पाकिस्तान के अलावा म्यांमार, इराक, उत्तर कोरिया, ग्वाटेमाला, हैती, होंडूरास, निकारागुआ और कोलंबिया भी शामिल हैं। अमेरिकी एजेंसियों के मुताबिक ये देश जलवायु परिवर्तन के कारण आने वालीं प्राकृतिक और सामाजिक आपदाओं को झेलने के लिए तैयार नहीं हैं।

बावजूद इसके इटली की राजधानी रोम में हुए जी 20 शिखर सम्मेलन में क्लाइमेट चेंज पर बात तो हुई । लेकिन कोई ठोस समाधान नहीं निकल सका। न कोई वादा किया गया और न कोई रोडमैप पेश किया गया। जी 20 नेताओं से कुछ ठोस समाधान की उम्मीद की जा रही थी । क्योंकि दुनिया के कुल कार्बन उत्सर्जन का 80 प्रतिशत यही देश करते हैं। 31 अक्टूबर को जारी जी-20 नेताओं के साझा बयान में कहा गया है - हम मानते हैं कि 1.5 डिग्री सेल्सियस पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव 2 डिग्री सेल्सियस के मुकाबले काफी कम होंगे। 1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए सभी देशों के सार्थक और प्रभावी कदम और प्रतिबद्धता जरूरी है। देशों को जरूरत पड़ने पर अपनी कार्बन उत्सर्जन में कटौती के लक्ष्य को बढ़ाना चाहिए। औद्योगिक युग की शुरुआत होने के बाद से पृथ्वी का तापमान बढ़ता गया है जिसके विनाशकारी प्रभाव अब खुलकर और तेजी से सामने आ रहे हैं। वैज्ञानिक पिछले काफी सालों से चेतावनी दे रहे हैं कि मानव गतिविधियां ग्लोबल वॉर्मिंग का कारण बन रही हैं।इससे जलवायु परिवर्तन उस स्तर पर पहुंच सकता है, जिसके बाद इसे रोकना असंभव हो जाएगा।मानवता खतरे में पड़ जाएगी। कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन पहले ही खतरे के निशान से ऊपर जा चुका है। ग्लोबल तापमान घटाने के लिए जीवाश्म ईंधन का उपयोग बंद करने पर जोर दिया जा रहा है। यह कहा जा रहा है कि कार्बन का उत्सर्जन बंद करने से ही स्थिति संभल सकती है। पर उसके लिए हाल फ़िलहाल किसी की तैयारी दिखती नहीं है।



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Ragini Sinha

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