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Coal Prices High: चीन में कोयला रिकॉर्डतोड़ महंगा, सर्दियां शुरू होते ही बिजली संकट और गहराया
Coal prices high: ठण्ड का मौसम शुरू होने के साथ घरों और दफ्तरों को गर्म रखने के लिए बिजली की मांग में काफी बढ़ोतरी हो जाती है।
Coal prices high: कोयले की कमी (koila me kami) , ईंधनों के बढ़े हुए दाम (increased fuel prices) और महामारी के बाद बढ़ रही औद्योगिक मांग (industrial demand) की वजह से दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन में बिजली संकट (cheen me bijli sankat) बहुत बढ़ गया है। इसका असर अन्य देशों पर भी पड़ेगा।
दरअसल, ग्लोबल ऊर्जा संकट (global energy crisis) के बीच अब सर्दी का मौसम शुरु (sardi ka mausam shuru) हो चुका है। चीन में भी ठंड (cheen men thand) बढ़ गई है।.इन सबके बीच पावर प्लांट्स कोयले की जमाखोरी (power plants coal) में लग गए हैं। जिसकी वजह से कोयले के दामों में रिकॉर्ड उछाल आ गया है। ठण्ड का मौसम शुरू होने के साथ घरों और दफ्तरों को गर्म रखने के लिए बिजली की मांग में काफी बढ़ोतरी हो जाती है, यह हर साल का सिलसिला है। इस बार चूंकि कोयले का संकट है, सो बिजली सप्लाई पर गहरा असर पड़ने की संभावना है। मौसम विज्ञानियों का पूर्वानुमान है कि अगले 2-3 दिनों में चीन के कुछ केंद्रीय और पूर्वी इलाकों में औसत तापमान में 16 डिग्री तक की गिरावट आ सकती है। इतनी ठण्ड हो जाने पर बिजली की डिमांड में एकदम से उछाल आयेगा।
बिजली की कटौती (power cut)
चीन के 30 प्रांतों में से 17 में बिजली की आपूर्ति में राशनिंग पहले से ही लागू की जा चुकी है, जिसकी वजह से कुछ फैक्ट्रियों को मजबूरन उत्पादन रोकना पड़ा है। इसका असर ग्लोबल सप्लाई चेन पर पड़ा है। चीन से होने वाला एक्सपोर्ट कुछ हद तक बाधित है।
चीन में पूर्वोत्तर के तीन प्रान्तों - जिलिन, हेलोंगजियांग और लियाओनिंग तथा इनर मंगोलिया और गांसु जैसे उत्तरी प्रांतों में बिजली की सबसे ज्यादा कटौती की गई है। इसकी वजह यह है कि इन प्रान्तों में मौसम सामान्य से ज्यादा ठंडा हो गया है। लोगों ने ठंड से निपटने के लिए घरों और दफ्तरों को गर्म करना शुरू कर दिया गया है। सरकार बार बार उपभोक्ताओं को भरोसा दिला रही है कि ठंड से बचने के लिए आवश्यक बिजली मिलती रहेगी । लेकिन आशंका है कि बिजली संकट अगले साल की शुरुआत तक चलता रहेगा।
दाम कंट्रोल करने की कवायद (price control exercise)
दरअसल, हीटिंग सिस्टम के लिए मुख्य रूप से कोयले का इस्तेमाल किया जाता है। चूँकि कोयले की सप्लाई प्रभावित हुई है इसलिए दाम चढ़े हुए हैं। ऐसे में चीन ने कोयले के दामों को कम करने के लिए अब कई कदम उठाए हैं। देश के अंदर कोयले के उत्पादन को बढ़ा दिया गया है, बिजली की ज्यादा खपत करने वाले उद्योगों और फैक्ट्रियों को बिजली की आपूर्ति में कटौती की जा रही है। एक्सपर्ट्स का अनुमान है कि कोयले की कमी और आवासीय उपभोक्ताओं को प्राथमिकता दिए जाने की वजह से चौथी तिमाही में औद्योगिक बिजली खपत में 12 प्रतिशत गिरावट आएगी।
बिजली क्षेत्र के सुधार
चीन एक दशक से बिजली क्षेत्र में कई सुधार ला रहा है। इसी क्रम में हाल में एक बड़ी घोषणा की गयी है कि सरकार अब कोयले से मिलने वाली बिजली के दामों में 20 प्रतिशत तक के उतार-चढ़ाव की अनुमति देगी। इससे बिजली संयंत्रों को बिजली उत्पादन की बढ़ी हुई कीमतों का बोझ व्यावसायिक और औद्योगिक उपभोक्ताओं पर डालने का मौका मिलेगा। अनुमान लगाया जा रहा है कि नई नीति के तहत स्टील, एल्युमीनियम, सीमेंट और केमिकल्स के उत्पादकों को ज्यादा दामों का सामना करना पड़ सकता है। इससे इन इंडस्ट्री के मुनाफे पर भी असर पड़ेगा। इसका असर इन उत्पादों के दामों में वृद्धि के रूप में भी नजर आ सकता है। यह असर सिर्फ चीन तक सीमित नहीं रहेगा क्योंकि वहां से बहुत सा माल एक्सपोर्ट होता है। यानी अंततः कोयले और बिजली संकट का असर महंगाई पर पड़ेगा।
कार्बन न्यूट्रल बनने का लक्ष्य (carbon neutral banane ka lakshay)
चीन का टारगेट है कि वह वर्ष 2060 तक कार्बन न्यूट्रल बन जाए। इस वजह से वह प्रदूषण फैलाने वाले कोयले पर अपनी निर्भरता कम करने की कोशिश कर रहा है। हवा, सौर और पनबिजली के इस्तेमाल को भी बढ़ाना चाह रहा है। लेकिन अबकी कई साला तक कोयले पर निर्भरता बनी रहेगी।?चीन की बिजली की जरूरतों का एक बड़ा हिस्सा कोयले से ही पूरा होगा।
सच्चाई तो यही है कि चीन ही एकलौता ऐसे देश नहीं है जो बिजली की आपूर्ति के संकट से जूझ रहा है। कुछ देशों में तो ईंधन की कमी और बिजली कटना भी देखा गया है। इस संकट ने स्पष्ट कर दिया है कि जीवाश्म ईंधन पर ग्लोबल इकॉनमी की निर्भरता को कम करना जरूरी है। लेकिन इस सवाल का जवाब नहीं मिल पा रहा है कि ईंधन की वैकल्पिक व्यवस्था को कैसे लागू किया जाए कि इकॉनमी चरमरा न जाए। कार्बन न्यूट्रल की राह में फिलहाल तो ढेरों समस्याएँ खड़ी हुईं हैं।