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Corona Vaccine की कीमत कम होने के आसार नहीं, मोटा मुनाफा कमा रही कंपनियां
Corona Vaccine: एक अनुमान है कि अगर फार्मा कम्पनियां अपने एकाधिकार के जरिये की जा रही मुनाफाखोरी छोड़ दें तो वैक्सीन की कीमतें 5 गुना कम हो जायेंगी।
वैक्सीनेशन (फोटो- न्यूजट्रैक)
Corona Vaccine: कोरोना वैक्सीनेशन की लागत को वैक्सीन कंपनियों ने कई गुना महंगा कर रखा है। कंपनियों के एकाधिकार के चलते जम कर मुनाफाखोरी की जा रही है और सरकारें मनमाने दामों पर वैक्सीन खरीद करती चली जा रही हैं। वैक्सीनों का भी कोई एक दाम नहीं है, हर देश के लिए अलग अलग कीमत पर डील हुईं हैं।
एक अनुमान है कि अगर फार्मा कम्पनियां अपने एकाधिकार के जरिये की जा रही मुनाफाखोरी छोड़ दें तो वैक्सीन की कीमतें 5 गुना कम हो जायेंगी। अंतर्राष्ट्रीय संस्था ऑक्सफेम से जुड़े 'द पीपुल्स वैक्सीन अलायन्स' के एक विश्लेषण से पता चला है कि फाइजर (Pfizer) और मॉडर्ना (Moderna) अपनी कोरोना वैक्सीन की अनुमानित उत्पादन लागत से 41 अरब डालर ज्यादा रकम विभिन्न सरकारों से चार्ज कर रही हैं।
मिसाल के तौर पर कोलंबिया जैसे देश ने वैक्सीनों की अनुमानित कीमत (Vaccine Ki Kimat) से 375 मिलियन डालर ज्यादा अदा किये हैं। सेनेगल जैसे अफ्रीकी देश ने चीन की सीनोफार्म वैक्सीन के लिए प्रति डोज़ 20 डालर की कीमत अदा की। इजरायल ने भी फाइजर की वैक्सीन के लिए 28 डालर प्रति डोज़ खर्च किये हैं।
फाइजर और मॉडर्ना ने अभी तक अपनी कोरोना वैक्सीनों की 90 फीसदी बिक्री अमीर देशों को की है और संभावित उत्पादन लागत से 24 गुना ज्यादा तक रकम चार्ज की है। भारत समेत तमाम मध्यम व अल्प आय वाले देश मांग कर रहे हैं कि फाइजर और मॉडर्ना जैसी कम्पनियाँ अपने पेटेंट में छूट दें और तकनीक उपलब्ध कराएँ ताकि कोरोना वैक्सीनों का निर्माण इन देशों में किया जा सके। लेकिन कम्पनियाँ तकनीक के हस्तांतरण को तैयार ही नहीं हैं। जिसकी वजह पूरी तरह कमर्शियल है।
कितनी है लागत
द पीपुल्स वैक्सीन अलायन्स के मुताबिक दुनिया की किसी भी फार्मा कंपनी ने ये खुलासा नहीं किया है कि वैक्सीनों पर रिसर्च, डेवेलपमेंट और निर्माण की सही सही लागत क्या है। फिर भी, एमआरएनए वैक्सीन की उत्पादन टेक्नोलॉजी पर अलग अलग शोधकर्ताओं और लन्दन के इम्पीरियल कॉलेज द्वारा की गयी स्टडी से एक अनुमानित लागत का पता लगाया गया है।
फाइजर और मॉडर्ना की वैक्सीनें एमआरएनए तकनीक पर आधारित हैं। ऐसी वैक्सीनों की उत्पादन तकनीक के विश्लेषण से पता चलता है कि ये वैक्सीनें 1.20 डालर (करीब 89 रुपये) प्रति डोज़ की लागत से बन सकती हैं। लेकिन गरीब देशों को वैक्सीन उपलब्ध कराने वाली 'कोवैक्स' स्कीम के तहत इसी तकनीक के वैक्सीन पर पांच गुना ज्यादा कीमत चुकाई जा रही है। इसके बावजूद 'कोवैक्स' को पर्याप्त स्टॉक नहीं मिल पा रहा है। वहीं अमीर देश कंपनियों के मनमाने दाम दे कर वैक्सीनें खरीदते चले जा रहे हैं।
आस्ट्रा ज़ेनेका की वैक्सीन की बात करें तो यह वेक्टर आधारित है यानी इसको बनाने में वायरस का इस्तेमाल किया गया है। ये वैक्सीन ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी और आस्ट्रा ज़ेनेका कंपनी ने मिल कर डेवलप की है लेकिन इसकी निर्माण लागत कितनी आ रही है, इसका खुलासा नहीं किया गया है। इस साल मार्च में आस्ट्रा ज़ेनेका ने ये जरूर कहा था कि उसकी एक डोज़ की कीमत 5 डालर (करीब 370 रुपये) है और इसमें लागत ही निकल पा रही है। कंपनी ने कहा था कि इतनी कम कीमत रख कर उसने 2 अरब पौंड (2 ख़राब रुपये) की कमाई का त्याग किया है।
अन्य वैक्सीनों की कीमत
विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक विश्लेषण के अनुसार कोरोना महामारी आने से पहले अन्य सभी वैक्सीनों के लिए विकासशील देशों ने औसतन एक डोज़ के लिए 0.80 डालर कीमत चुकाई है। हालाँकि सभी वैक्सीनें अलग-अलग होती हैं और नई वैक्सीनों की उनसे तुलना नहीं की जा सकती है लेकिन आज बाजार में उपलब्ध कोरोना की सबसे सस्ती आस्ट्रा ज़ेनेका वैक्सीन गैर कोरोना वैक्सीनों से चार गुना ज्यादा कीमत की है। जॉनसन एंड जॉनसन की वैक्सीन 13 गुना और फाइजर-मॉडर्ना व चीन की सीनोफ़ार्म वैक्सीन तो 50 गुना ज्यादा महंगी हैं।
अभी तो और बढ़ेंगे दाम
विश्लेषकों का कहना है कि वैक्सीनों के दाम तभी घट सकते हैं जब बाजार में ज्यादा प्रतिस्पर्धा हो। कोरोना के मामले में ऐसा भी नहीं हो रहा है। विभिन्न सरकारों ने बहुत बड़ी तादाद में कोरोना वैक्सीनें खरीदी हैं, बड़े पैमाने पर प्रोडक्शन हो रहा है लेकिन लागत घट नहीं रही है। सरकारें भी इस बारे में कोई कार्रवाई नहीं कर रही हैं और कंपनियां जो दाम मांग रही हैं, उन्हें वो दिए जा रहे हैं। आने वाले वर्षों में कोरोना वैक्सीन के बूस्टर की जरूरत पड़ेगी, यानी डिमांड अभी कई साल घटने वाली नहीं है। फार्मा कम्पनियाँ बूस्टर डोज़ की बड़ी कीमत की संभावना देख रही हैं। फाइजर के सीईओ ने तो कहा भी है कि भविष्य में वैक्सीन के दाम 175 डालर प्रति डोज़ तक हो सकते हैं। यानी अभी वैक्सीनों के दाम घटने की बजाए बढ़ते ही जायेंगे।
ऑक्सफेम की हेल्थ पालिसी मैनेजर एना मैरियट का कहना है कि फार्मा कम्पनियाँ इस वैश्विक संकट के दौर में भी दुनिया को बंधक बनाये हुए हैं। ये इतिहास में मुनाफाखोरी का सबसे खतरनाक मामला है।
यूएनएड्स के कार्यकारी निदेशक विनी ब्यान्यिमा का कहना है कि फार्मा कंपनियों के एकाधिकार और उनके द्वारा जबर्दस्त मुनाफाखोरी के चलते इंसानियत को कोरोना जैसी महामारी का सामना करना पड़ रहा है।
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