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कोरोना ने फिर चौंकाया: दुनिया में सामने आया पहला ऐसा मामला, वैज्ञानिकों ने किया अलर्ट
शोधकर्ताओं ने कोरोना के चलते पहला ऐसा मामला दर्ज किया है, जिसमें मरीज के बाजू में ब्लड क्लॉटिंग देखी गई है।
Coronavirus: कोरोना वायरस महामारी एक बार फिर से पूरी दुनिया पर अपना कहर बरपा रही है। रोजाना नए मामले रिकॉर्ड तोड़ रहे हैं, जबकि मृतकों के आंकड़ों में भी बड़ा उछाल देखने को मिला है। अकेले भारत में कोविड-19 के अब तक ढाई करोड़ से अधिक मामले सामने आ चुके हैं और करीब 287156 लोग काल के गाल में समा चुके हैं।
जहां एक तरफ कोरोना वायरस के खिलाफ दुनियाभर में जंग जारी है तो वहीं दूसरी ओर संक्रमण के नए नए लक्षण भी सामने आ रहे हैं, जिन्हें दुनियाभर के वैज्ञानिक समझने की कोशिश कर रहे हैं। इस बीच एक ऐसा मामला सामने आया हैं, जिसमें कोरोना के चलते मरीज के बाजू में खतरनाक ब्लड क्लॉटिंग देखी गई है।
पहली बार बाजू में हुई ब्लड क्लॉटिंग
आपको बता दें कि यह ऐसा पहला मामला सामने आया है, जब कोरोना वायरस की वजह से मरीज की बांह पर ब्लड क्लॉटिंग हुई हो। इससे पहले भी कोरोना संक्रमित मरीजों के शरीर में ब्लड क्लॉटिंग देखी जा चुकी है, लेकिन वो शरीर के निचले हिस्से में। ऐसा पहली बार है जब कोरोना के चलते मरीज के बाजू में खून का थक्का जमा हो।
यह मामला सामने आया है न्यू जर्सी के रटगर्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं की स्टडी में। रिसर्चर्स का कहना है कि इस अध्ययन से यह जानने में मदद मिलेगी कि महामारी की वजह से होने वाला इंफ्लेमेशन शरीर को किस तरह नुकसान पहुंचा रहा है। इसके साथ ही ये भी जानने को मिलेगा कि बार बार होने वाले ब्लड क्लॉटिंग का इलाज किस तरह किया जा सकता है।
85 वर्षीय मरीज को हुई समस्या
वायरसेस पत्रिका में छपी स्टडी के मुताबिक, 85 साल के एक मरीज के बाजू में ये ब्लड क्लॉटिंग देखी गई है। शोधकर्ता पायल पारिख बताती हैं कि बुजुर्ग मरीज बाजू में सूजन की समस्या लेकर डॉक्टर के पास आया था। जब जांच की गई तो पता चला कि मरीज के हाथ के ऊपर हिस्से में खून का थक्क जमा हुआ है। उसके कोरोना रिपोर्ट भी पॉजिटिव आई शोधकर्ता पायल पारिख थी, हालांकि उसमें कोरोना के कोई लक्षण नहीं थे।
स्टडी में शोधकर्ता डॉक्टर पायल पारिख बताती हैं कि मरीज का ऑक्सीजन लेवल सामान्य था, लेकिन उसके हाथ में खून का थक्का जमा हुआ है, जिसके चलते उसे भर्ती करना पड़ा। उनका कहना है कि ब्लड क्लॉट के मामले शरीर में इंफ्लेमेशन के चलते या फिर उन लोगों में देखने को मिलते हैं, जो ज्यादा चल फिर नहीं पाते हैं। ऐसे में एक्टिव व स्वस्थ लोगों में कम देखे गए हैं।
स्टडी के बताया गया है कि ज्यादा ब्लड क्लॉट के मामले पैरों में देखे गए हैं। बाजू में ब्लड क्लॉटिंग होने के मामले कम ही देखे गए हैं। जो करीब 10 फीसदी हैं। इसके साथ ही ये भी बताया गया है कि इनमें से नौ प्रतिशत मामले ऐसे होते हैं, जिनमें ब्लड क्लॉटिंग बार-बार उभर जाता है।
अध्ययन में सामने आई चिंताजनक बात
स्टडी में एक चिंताजनक बात भी सामने आई है। अध्ययन के मुताबिक, 30 फीसदी मरीजोम में ब्लड क्लॉट फेफड़ों तक पहुंच जाता है जो खतरनाक साबित हो सकता है और यह काफी चिंताजनक है। स्टडी में पारिख ने कहा कि इसके चलते सूजन, दर्द और थकान भी बनी रह सकती है।
स्टडी बताती है कि अगर कोई मरीज बिना वजह सूजन की शिकायत डॉक्टर के पास लेकर जाता है तो उसका डीप वेन थ्रोम्बोसिस और कोरोना वायरस की जांच करानी चाहिए। डॉक्टर पारिख का कहना है कि अगर आपको पहले डीप वेन थ्रोम्बोसिस यानी नसों में खून जमने की शिकायत है या फिर ऐसी कोई पुरानी बीमारी है, जिस वजह से ब्लड क्लॉटिंग हो जाती है तो फिर कोरोना पॉजिटिव होने पर ये फिर से उभर सकता है, जो खतरनाक भी साबित हो सकता है। ऐसे में काफी ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है।
कोरोना पर रिसर्च जारी
जाहिर है कि कोरोना वायरस महामारी से पूरी दुनिया बीते करीब एक साल से जंग लड़ रही है, लेकिन महामारी कहर खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है। इस बीच दुनियाभर के कई देशों में कोरोना को लेकर रिसर्च अभी भी जारी है। वैज्ञानिक कोरोना की दवा से लेकर उस पर अध्ययन करने में जुटे हुए हैं।
आपको बता दें कि अब कोरोना तेजी से बच्चों को भी अपनी चपेट में लेने लगा है। वैज्ञानिकों की ओर से चेतावनी दी गई थी कि तीसरी लहर की दस्तक के बाद बच्चे भी कोरोना की चपेट में आने लगेंगे। लेकिन भारत के कुछ राज्यों में बच्चों में कोरोना के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। कर्नाटक में तो बीते 15 दिनों में 19 हजार से ज्यादा बच्चे कोविड पॉजिटिव पाए गए हैं।