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Coronavirus: समुद्र में भटक रहे एक लाख लोग, UN ने बताया मानवीय संकट

कोरोना वायरस महामारी के कारण एक लाख लोग समुद्र में भटक रहे हैं और महीनों से जमीन देखने को तरस गए हैं।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani LalPublished By Shreya
Published on: 20 July 2021 8:08 PM IST
Coronavirus: समुद्र में भटक रहे एक लाख लोग, UN ने बताया मानवीय संकट
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जहाज (कॉन्सेप्ट फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Shipping Industry In Trouble: कोरोना वायरस महामारी (Corona Virus Pandemic) के कारण एक लाख लोग समुद्र में भटक रहे हैं और महीनों से जमीन देखने को तरस गए हैं। महामारी के कारण बंद सीमाओं के चलते इन लोगों को कोई देश अपने बंदरगाह में पैर रखने की इजाजत नहीं दे रहा है। संयुक्त राष्ट्र (United Nations) ने इस स्थिति को मानवीय संकट करार दिया है।

एक जहाज के कैप्टन बताते हैं कि वे पिछले सात महीने से apna अजहाज लेकर यहां से वहां भटक रहे हैं। कप्तान और उनके चालक-दल के 20 सदस्य भारत से अमेरिका होते हुए चीन पहुंचे और हफ्तों तक वहीं फंसे रहे। वहां उन्हें अपने जहाज से सामान उतारना था लेकिन जहाजों की भीड़ के कारण नंबर ही नहीं आया। अब वह ऑस्ट्रेलिया के रास्ते पर हैं।

बताया जाता है कि मालवाहक जहाजों पर काम करने वाले एक लाख से ज्यादा लोग इस वक्त दुनिया के अलग-अलग समुद्रों में फंसे हुए हैं। आमतौर पर ये लोग तीन से नौ महीने तक एक बार में यात्रा करते हैं लेकिन इंटरनेशनल चेंबर ऑफ शिपिंग के मुताबिक इन एक लाख लोगों को अपने तय समय कहीं ज्यादा हो चुका है, जबकि ये समुद्र में ही हैं। इन्हें आमतौर पर मिलने वाला ब्रेक भी नहीं मिला है। दूसरी ओर एक लाख से ज्यादा नाविक ऐसे हैं जो जहाज पर नहीं जा पा रहे हैं और बेरोजगार हैं।

(कॉन्सेप्ट फोटो साभार- सोशल मीडिया)

डेल्टा वायरस के चलते नई पाबंदियां

कोरोना वायरस का डेल्टा वेरिएंट एशिया के कई देशों में कहर बरपा रहा है। ऐसे में कई देशों ने समुद्री जहाजों को अपने यहां आने पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी है। एशिया में 17 लाख से ज्यादा नाविक इन पाबंदियों से प्रभावित हुए हैं। इंटरनेशनल चेंबर ऑफ़ शिपिंग का अनुमान है कि नाविकों में से सिर्फ ढाई फीसदी को ही वैक्सीन मिली है।

संयुक्त राष्ट्र ने इस स्थिति को एक मानवीय संकट बताया है और सरकारों से आग्रह किया है कि नाविकों को जरूरी कामगार माना जाए। दुनिया के व्यापार में 90 फीसदी सामान की आवाजाही समुद्र के रास्ते ही होती है, इसलिए यह संकट व्यापारों पर भी कहर बनकर टूटा है क्योंकि तेल से लेकर खाद्य पदार्थों और इलेक्ट्रॉनिक सामानों तक तमाम चीजों की सप्लाई प्रभावित है।

फिलहाल कोई उम्मीद नहीं

फिलहाल हालत बदलने की कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही है। एक जहाज के चालक दल के लोग 11 महीने तक समुद्र में फंसे रहे थे। समुद्र में जहाज पर रहने का मतलब है छोटे छोटे केबिन में रहना। कुछ समय के बाद ये सजा जैसा हो जाता है। बहुत ज्यादा समय तक समुद्र में रहना बहुत मुश्किल होता है।

आईसीएस के महानिदेशक गाय प्लैटन कहते हैं कि दुनिया के एक तिहाई कमर्शियल नाविक भारत और फिलीपीन से ही आते हैं और दोनों ही देश इस वक्त कोरोना की मार झेल रहे हैं। वह कहते हैं कि समुद्र में यह दूसरा संकट तैयार हो रहा है। पिछली बार 2020 में भी ऐसा ही हुआ था जब दो लाख नाविक महीनों तक समुद्र में फंसे रहे थे।

संयुक्त राष्ट्र नाविकों के लिए एक बार में अधिकतम 11 महीने की यात्रा की ही इजाजत देता है। लेकिन एक सर्वे के मुताबिक फिलहाल नौ प्रतिशत मर्चेंट सेलर ऐसे हैं जो अधिकतम सीमा पार कर चुके हैं। मई में ऐसे नाविकों की संख्या 7 प्रतिशत थी। सामान्य दिनों में प्रति माह औसतन 50 हजार नाविक जहाज पर जाते और लौटते रहते हैं लेकिन अब पूरा गणित गड़बड़ हो गया है।

इस साल के संकट की वजह साउथ कोरिया, ताइवान और चीन जैसे प्रमुख नौवहन देशों द्वारा कई तरह की पाबंदियां लगाया जाना है। इन देशों में ही विश्व के सबसे व्यस्त कंटेनर पोर्ट स्थित हैं। इन देशों द्वारा लगी गयी पाबंदियों में नाविकों के लिए अनिवार्य टेस्टिंग से लेकर बंदरगाह में जहाज खड़ा करने पर पूर्ण प्रतिबन्ध तक शामिल है।

मालवाहक जहाज (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

एशिया में बुरी स्थिति

साईनर्जी मैरीन ग्रुप के चीफ एग्जीक्यूटिव राजेश उन्नी के अनुसार एशिया में बुरी स्थिति है नाविकों की बदली के लिए कुछ हद तक सिर्फ जापान और सिंगापुर ही जा सकते हैं। इंटरनेशनल ट्रांसपोर्ट वर्कर्स फेडरेशन के एक सर्वे के मुताबिक इस संकट का नतीजा ये हुआ है कि करीब आधे नाविक इस इंडस्ट्री को छोड़ने की सोच रहे हैं। इससे पता चलता है कि दुनिया के 50 हजार मालवाहक जहाजों की इंडस्ट्री में श्रमिक संकट आ सकता है।

अगर ऐसा हुआ तो ग्लोबल सप्लाई चेन अस्तव्यस्त हो जायेगी। अभी ही उपभोक्ता वस्तुएं ढोने वाले कंटेनर जहाजों की कमी है और बंदरगाहों में कई कई हफ़्तों तक जगह नहीं मिलती है जिसके प्रभाव रिटेल इंडस्ट्री में देखे जा रहे हैं। माल ढुलाई की दरें आसमान छू रही हैं और उसका परिणाम वस्तुओं के दामों पर पड़ा है।

इंटरनेशनल ट्रांसपोर्ट वर्कर्स फेडरेशन के महासचिव स्टेफेन कॉटन कहते हैं कि नाविक अपनी शारीरिक और मानसिक सीमाओं तक धकेले जा चुके हैं। इंडस्ट्री के अनुमान बताते हैं कि महामारी से पहले की अपेक्षा 25 फीसदी कम नाविक जहाजों को ज्वाइन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हमने ग्लोबल ब्रांड्स को सतर्क कर दिया है कि वे किसी भी स्थिति का सामना करने को तैयार रहें क्योंकि थके हुए नाविक कब टूट जायेंगे कुछ कहा नहीं जा सकता।

(कॉन्सेप्ट फोटो साभार- सोशल मीडिया)

महामारी की शुरुआत से ही संकट

ग्लोबल शिपिंग इंडस्ट्री कुल 14 ट्रिलियन डालर की नौवहन सप्लाई चेन का हिस्सा है। और महामारी की शुरुआत से ही शिपिंग इंडस्ट्री संकट झेल रही है। चीन में पिछले साल की शुरुआत में हुए लॉकडाउन के चलते एशिया के सबसे बड़े शिपिंग बंदरगाहों पर असर पड़ा था। इसके बाद यूरोप के बड़े बंदरगाहों में कंटेनरों की किल्लत हो गयी।

फिर सुएज नाहर में एक बड़े जहाज के फंसने से आवागमन ठप हो गया। तमाम तरह के संकटों के चलते माल ढुलाई की लागत बहुत तेजी से बढ़ गयी है। जिस कंटेनर की कीमत जून 2020 में 1785 डालर थी वह एक साल में 6217 डालर पहुंच गयी।

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