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"India Deep Sea Mission": गहरे समुद्र में गोता लगाएगा भारत, होगी कीमती धातुओं की खोज
"India Deep Sea Mission" भारत को समुद्र तल में पड़े भंडार का छोटा सा भी हिस्सा मिल गया तो अगले 100 साल की ऊर्जा आवश्यकता की पूर्ति हो सकती है।
"Deep Sea Mission": भारत अब उन चुनिंदा देशों में शामिल होने जा रहा है जो गहरे समुद्र में जाने की क्षमता रखते हैं। भारत अब अपना "डीप सी मिशन"("Deep Sea Mission") लांच करने वाला है। इस मिशन को हरी झंडी मिल गई है और अब समुद्र में 6000 मीटर की गहराई तक गोता लगाने वाले यान को डेवलप किया जाएगा। ये समुद्र तल में गोताखोरों को ले जाएगा और वहां कीमती धातुओं की खोज की जाएगी। अगर भारत ने ऐसे पनडुब्बी यान को बनाने में सफलता हासिल कर ली तो वह चुनिंदा देशों के ग्रुप में शामिल हो जाएगा। अभी बहुत कम देश ऐसा यान और मिशन सफलतापूर्वक तैयार कर पाए हैं।
2018 से चल रही थी बात
डीप सी मिशन पर बात 2018 से चल रही थी। अब इसे केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी मिल गई है। इस मिशन पर अगले पांच साल में 4077 करोड़ रुपए खर्च होंगे। भू विज्ञान मंत्रालय इस मिशन का नोडल मंत्रालय होगा। डीप सी मिशन के छह हिस्सों में प्रमुख है मानवयुक्त यान डेवलप करना जो तीन लोगों को लेकर समुद्र में 6000 मीटर की गहराई तक जा सके। ये यान सेंसर और विशेष औजारों से लैस होगा। तथा हिन्द महासागर की तलहटी में धातुओं की खोज के लिए एकीकृत खनन सिस्टम डेवलप करना होगा। इसके अलावा ओशन क्लाइमेट चेंज एडवाइजरी सर्विसेज को डेवलप किया जाएगा। मौसम विज्ञान के लिए ये महत्वपूर्ण होगा और कई पूर्वानुमान लगाने में सहायक साबित होगा। डीप सी मिशन का अगला हिस्सा होगा गहरे समुद्र में वनस्पतियों और जीव जंतुओं की खोज करना। ये पता किया जाएगा कि इनका इस्तेमाल करके क्या लाभ उठाया जा सकता है। इसके अलावा डीप सी मिशन का उद्देश्य ओशन बायोलॉजी और ओशन इंजीनियरिंग के क्षेत्र में एक्सपर्ट्स तैयार करना भी है।
बताया जाता है कि यूएन सी बेड ऑथोरिटी ने समुद्र में कीमती धातुओं की खोज के लिए भारत को मध्य हिन्द महासागर में 75 हजार वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र आवंटित किया है। समुद्र की तलहटी में ऐसी चट्टानें पड़ी हैं जिनमें आयरन, मैंगनीज, निकल और कोबाल्ट का भंडार हो सकता है। समुद्र तल में ऐसी चट्टानों का 380 मिलियन मीट्रिक टन का भंडार होने का अनुमान है। इनकी खोज के लिए संयुक्त राष्ट्र का एक अभियान बनाया गया है। भारत को समुद्र तल में पड़े भंडार का छोटा सा भी हिस्सा मिल गया तो अगले 100 साल की ऊर्जा आवश्यकता की पूर्ति हो सकती है। भारत का समुद्री इलाका बहुत विशाल है और उसका विशिष्ट आर्थिक जोन 22 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। यानी भारत के पास अपार खोज की संभावनाएं हैं।