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दुखद : जिंदगी में कभी हार न मानने वाला जीनियस चला गया

raghvendra
Published on: 16 March 2018 12:59 PM IST
दुखद : जिंदगी में कभी हार न मानने वाला जीनियस चला गया
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अगर डॉक्टर किसी से कह दे कि उसकी जिंदगी के सिर्फ दो साल बाकी हैं तो शायद उसकी जिंदगी के सारे सपने टूट जाएंगे। शायद ही वह व्यक्ति अपनी ऊर्जा व उत्साह के साथ बाकी जिंदगी जी सके मगर महान वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग का व्यक्तित्व ऐसा था कि उन्होंने जिंदगी की जंग लडक़र जिंदगी में बड़ा मुकाम हासिल किया। जिंदगी में कभी हार न मानने वाले बीसवी सदी के बड़े वैज्ञानिकों में एक स्टीफ हॉकिंग नहीं रहे।

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गंभीर बीमारी के बावजूद एक योद्धा की तरह जिंदगी जीने वाले हॉकिंग ने 76 साल की उम्र में आखिरी सांस ली। वे एक ऐसी बीमारी से पीडि़त थे जिसके चलते उनके शरीर के कई हिस्सों को लकवा मार गया था, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और विज्ञान के क्षेत्र में नई खोज कर आने वाली पीढिय़ों को बहुत कुछ दिया। उनके बच्चों लुसी, रॉबर्ट और टिम ने बेहद दुख के साथ सबको उनके निधन की जानकारी देते हुए कहा कि हमारे पिता का आज निधन हो गया।

वो बेहतरीन वैज्ञानिक और असाधारण इंसान थे। उनकी विरासत आने वाले कई सालों में जीवित रहेगी। माना जाता है कि हॉकिंग का आईक्यू 160 से भी ज्यादा था। आम तौर पर इंसान का आईक्यू लेवर 100 के आसपास होता है। इसका मतलब यह है कि हॉकिंग विलक्षण प्रतिभा के धनी थे।

मुसीबतों पर पाई विजय

हॉकिंग की जिंदगी उतार-चढ़ाव से भरी रही मगर उन्होंने अपनी जिंदगी में यह जरूर साबित किया कि यदि किसी में प्रतिभा और कुछ करने का जज्बा है तो बड़ी से बड़ी मुसीबतें भी उसका रास्ता नहीं रोक सकतीं। 21 साल का एक नौजवान जब दुनिया बदलने का ख्वाब देख रहा था तभी कुदरत ने अचानक ऐसा झटका दिया कि वो अचानक चलते-चलते लडख़ड़ा गया।

हॉकिंग को जब शारीरिक दिक्कतें शुरू हुईं तो पहले तो लगा कि कोई मामूली दिक्कत होगी मगर डॉक्टरों ने गहराई से जांच के बाद एक ऐसी बीमारी का नाम बताया जिसने इस युवा वैज्ञानिक के होश उड़ा दिए। 21 साल की उम्र में यदि किसी युवा से यह कह दिया जाए कि उसकी जिंदगी महज दो-तीन साल और है तो उसकी क्या मानसिकता होगी,इसे आसानी से समझा जा सकता है।

कॉलेज के दिनों में उन्हें घुड़सवारी और नौका चलाने का शौक था, लेकिन इस बीमारी ने उनका शरीर का ज्यादातर हिस्सा लकवे की चपेट में ले लिया। वैसे हॉकिंग की किस्मत ने साथ दिया और ये बीमारी धीमी रफ्तार से बढ़ी, जिसकी वजह से हॉकिंग विज्ञान के क्षेत्र में नए खुलासे करने में कामयाब हुए।

हमेशा व्हील चेयर पर रहने वाले हॉकिंग किसी भी आम इंसान से इतर दिखते थे। बेस्टसेलर रही किताब ए ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ टाइम हॉकिंग ने शारीरिक अक्षमताओं को पीछे छोड़ते हु्ए यह साबित किया कि अगर इच्छा शक्ति हो तो इंसान कुछ भी कर सकता है।

अपनी खोज के बारे में हॉकिंग ने कहा था कि मुझे सबसे ज्यादा खुशी इस बात की है कि मैंने ब्रह्मांड को समझने में अपनी भूमिका निभाई। लोगों के लिए इसके रहस्य की परतें खोलीं और इस पर किये गये शोध में अपना योगदान दे पाया। मुझे उस समय काफी गर्व महसूस होता है जब लोगों की भीड़ मेरे काम को जानना चाहती है।

हॉकिंग ने दुनिया को बहुत कुछ दिया

यह जानना जरूरी है कि हॉकिंग ने दुनिया को क्या दिया? जिस समय दुनिया भर में ब्लैक होल के बारे में कई तरह की भ्रांतियां व मतभेद थे, उस समय हॉकिंग ने इस बारे में कई महत्वपूर्ण तथ्य दुनिया के सामने रखे। ब्लैक होल अंतरिक्ष में मौजूद एक ऐसा गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र होता है जिसमें प्रकाश समेत हर चीज को अपने अंदर खींचने की क्षमता होती है।

हॉकिंग ने कहा था था ब्लैक होल्स से एक खास तरह का रेडिएशन निकलता है और छोटे आकार के ब्लैक होल्स से निकलने वाले रेडिएशन की ताकत दस लाख हाइड्रोजन बम के बराबर होती है। ब्रह्मांड की उत्पत्ति पर भी हॉकिंग की खोज महत्वपूर्ण है। उन्होंने बताया था कि ब्रह्मांड में मिनी ब्लैक होल्स भी होते हैं। इनके अंदर बहुत ज्यादा ऊर्जा होती है। आकार में ब्लैक होल से काफी छोटा होने के बावजूद ये ऊर्जा के बहुत बड़े स्रोत होते हैं। ये भविष्य में हमारी ऊर्जा की जरुरतें भी पूरा कर सकते हैं।

इसके अलावा हॉकिंग भौतिक विज्ञान के दो विषयों को एक साथ लेकर आए और थ्योरी ऑफ एवरीथिंग को और आगे बढ़ाया। इस थ्योरी के मुताबिक विज्ञान के दो सिद्धांत कभी भी मूल रूप से एक-दूसरे का विरोध नहीं कर सकते। बसरों से दुनिया भर के वैज्ञानिक क्वांटम थ्योरी और आइंसटाइन की थ्योरी ऑफ जनरल रिलेटिविटी को जोडऩे की कोशिश कर रहे थे, लेकिन हॉकिंग को इसमें बड़ी सफलता मिली। हालांकि वे कभी भी थ्योरी ऑफ एवरीथिंग को साबित नहीं कर पाए और शायद यही कारण था कि इतना महान वैज्ञानिक होने के बावजूद उन्हें नोबल पुरस्कार नहीं मिला।

पहली पोस्ट में जिज्ञासु बनने की सलाह

साल 2014 में हॉकिंग फेसबुक पर पहली बार आए। अपनी पहली फेसबुक पोस्ट में उन्होंने अपने प्रशंसकों की लंबी जमात को जिज्ञासु बनने की सलाह दी। हॉकिंग ने लिखा कि मैं हमेशा से ही सृष्टि की रचना पर हैरान रहा हूं।

समय और अंतरिक्ष हमेशा के लिए रहस्य बने रह सकते हैं, लेकिन इससे मेरी कोशिशें नहीं रुकी हैं। एक-दूसरे से हमारे संबंध अनंत रूप से बढ़े हैं। अब मेरे पास मौका है और मैं इस यात्रा को आपके साथ बांटने के लिए उत्सुक हूं। आपको जिज्ञासु बनना चाहिए। मैं जानता हूं कि मैं हमेशा जिज्ञासु बना रहूंगा।

दुनिया को हॉकिंग की चेतावनी

वैसे निधन से पहले हॉकिंग दुनिया को आगाह कर गए हैं कि आने वाले समय में बढ़ती जनसंख्या, जलवायु परिवर्तन और उल्का पिंड से टकराव की वजह से होने वाले परिणाम से इंसान के लिए खुद को बचाना असंभव हो जाएगा। उन्होंने इंसानों को आने वाले समय में किसी दूसरे ग्रह पर बस जाने की सलाह दी।

हॉकिंग को सबसे बड़ा डर ग्लोबल वार्मिंग को लेकर था। पिछले साल जुलाई में हॉकिंग ने कहा था कि हमारे भौतिक संसाधनों का खतरनाक स्तर पर दोहन हो रहा है। हमने अपने ग्रह को जलवायु परिवर्तन के रूप में विनाशकारी तोहफा दिया है। बढ़ता तापमान, बर्फ पिघलना, जानवरों की प्रजातियों का नाश, वनों की कटाई जारी है। उनका मानना था कि अगर ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन कम नहीं किया गया तो एक दिन शुक्र ग्रह की तरह ही धरती का तापमान भी 460 डिग्री सेल्सियस होगा।

स्टीफन ने कहा था कि अब एक वैश्विक सरकार ही हमें इससे बचा सकती है। हॉङ्क्षकग ने पैरिस जलवायु समझौते को लेकर भी चेतावनी दी थी। उन्होंने कहा था कि पेरिस समझौते से अमेरिका को अलग करने का डोनाल्ड ट्रंप का फैसला धरती को तबाही को और धकेल सकता है।

बीमारी से लड़ी जंग

सापेक्षता (रिलेटिविटी), ब्लैक होल और बिग बैंग थ्योरी को समझाने में अहम भूमिका निभाने वाले हॉकिंग का जन्म 1942 में इंग्लैंड के ऑक्सफोर्ड में हुआ था। उनकेपिता रिसर्च बॉयोलॉजिस्ट थे और जर्मनी की बमबारी से बचने के लिए लंदन से वहां जाकर बस गए थे। हॉङ्क्षकग का पालन-पोषण लंदन और सेंट अल्बंस में हुआ और ऑक्सफोर्ड से फिजिक्स में फस्र्ट क्लास डिग्री लेने के बाद वो कॉस्मोलॉजी में पोस्टग्रेजुएट रिसर्च करने के लिए कैम्ब्रिज चले गए।

1963 में पता चला कि वे मोटर न्यूरॉन नामक बीमारी से पीडि़त हैं। यह पता चलने के बाद कहा गया कि वे महज दो साल और जी पाएंगे मगर हॉकिंग ने इस बीमारी से जंग लड़ी जिसका नतीजा दुनिया के सामने है। उन्होंने विज्ञान को इतना कुछ दिया कि लोग हैरत में पड़ जाते हैं कि इतनी गंभीर बीमारी के बावजूद क्या कोई इंसान ऐसा भी कर सकता है।

1988 में उनकी किताब ए ब्रीफ हिस्टरी ऑफ टाइम आई जिसने बिक्री और लोकप्रियता के नए प्रतिमान गढ़े। पूरी दुनिया में इस किताब की एक करोड़ से ज्यादा प्रतियां बिकीं। 2014 में उनके जीवन पर द थ्योरी ऑफ एवरीथिंग फिल्म बनी जिसमें एडी रेडमैन ने हॉकिंग का किरदार निभाया था।

जिंदगी कितनी भी मुश्किल क्यों न लगे,आपके पास कुछ न कुछ करने और कामयाब होने की गुंजाइश हमेशा रहती है।

स्टीफन हॉकिंग



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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