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Earthquake in Nepal: तबाही के इलाके पर खड़ा है नेपाल, कभी भी हो सकती है बड़ी त्रासदी
Earthquake in Nepal: नेपाल में भूकंप आना आम बात है। यह दुनिया का 11वां सबसे अधिक भूकंप-प्रवण देश है।अक्सर ही भूकंप के झटके इस पर्वतीय राष्ट्र को थर्राते रहते हैं।
Earthquakes in Nepal: नेपाल की राजधानी काठमांडू में 22 अक्टूबर को 6.1 तीव्रता का शक्तिशाली भूकंप आया और 20 घर क्षतिग्रस्त हो गए। यह दुनिया के सबसे भूकंपीय रूप से सक्रिय देशों में से एक में आया नवीनतम झटका था। नेपाल के बागमती और गंडकी प्रांत के अन्य जिलों में भी झटके महसूस किये गये और विभिन्न हिस्सों में भूस्खलन भी हुआ। कुछ ही दिन पहले, 16 अक्टूबर को नेपाल के सुदुरपश्चिम प्रांत में 4.8 तीव्रता का भूकंप आया था।
नेपाल में भूकंप आना आम बात है। यह दुनिया का 11वां सबसे अधिक भूकंप-प्रवण देश है।अक्सर ही भूकंप के झटके इस पर्वतीय राष्ट्र को थर्राते रहते हैं। भूकम्प से पहाड़ हिलते हैं तो चट्टानों लुढ़कती गिरती हैं, मिट्टी धसक जाती है। पहाड़ों के बड़े हिस्से नीचे चले आते हैं, जिसके नतीजतन सड़कें, पुल आदि ध्वस्त हो जाते हैं, नदियों का रास्ता बदल जाता है। यह लगातार चलने वाला सिलसिला है। नेपाल 2015 में आये 7.8 तीव्रता के भूकंप और उसके बाद आए झटकों से अब तक नहीं उबर पाया है जिसमें व्यापक तबाही हुई थी और लगभग 9,000 लोग मारे गए थे।
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क्यों आते हैं इतने भूकंप?
दरअसल नेपाल अपनी बनावट, अपनी लोकेशन के कारण भूकंप के प्रति इतना संवेदनशील है। इसे समझने के लिए, थोड़ा भूविज्ञान पर गौर करना होगा।
हमारी पृथ्वी में गहरे भीतर बड़ी टेक्टोनिक प्लेटें हैं, जो पृथ्वी की परत बनाती हैं। ये प्लेटें या भूभाग, जिनमें संपूर्ण महाद्वीप शामिल हैं, लगातार सरकते रहते हैं और हर समय एक-दूसरे से टकराते रहते हैं। जब भी यह टक्कर होती है, उस टकराव के ऊपर वाले क्षेत्र हिल जाते हैं, जिसे भूकम्प कहा जाता है। तभी भूकम्प जमीन के मीलों नीचे केंद्रित होता है।
नेपाल की बात करें तो यह दो विशाल टेक्टोनिक प्लेटों - इंडो-ऑस्ट्रेलियाई और एशियाई प्लेटों की सीमा पर स्थित है। इन प्लेटों के टकराव के कारण ही हिमालय पर्वत का निर्माण हुआ है। चूंकि आज भी इन प्लेटों में टक्करें जारी हैं सो भूकम्प आते रहते हैं।
हिमालय का निर्माण
नेपाल की दक्षिणी सीमा पर स्थित सिंधु-यारलुंग सिवनी क्षेत्र लगभग 4 से 5 करोड़ वर्ष पहले यूरेशियन प्लेट से टकराया था। उसके फलस्वरूप हिमालय पर्वत श्रृंखला का निर्माण हुआ। आज, भारतीय उपमहाद्वीप सिंधु-यारलुंग सिवनी क्षेत्र पर स्थित है और यूरेशियन प्लेट में यूरोप और एशिया का अधिकांश भाग शामिल है। भारतीय प्लेट हिंदूकुश से अरुणाचल प्रदेश तक फैली हुई है, और पूरा क्षेत्र टेक्टोनिक रूप से सक्रिय रहता है। जब इंडिया प्लेट एशिया की ओर अपना रास्ता बढ़ाती है, तो उस बिंदु पर अत्यधिक दबाव बनता है जहां दोनों भूभाग मिलते हैं। नतीजतन, एक भूभाग दूसरे के ऊपर खिसक जाता है, जिससे एक शॉक-वेव उत्पन्न होती है जिसे भूकंप कहा जाता है।
पांच सेंटीमीटर प्रति वर्ष
इंडो-ऑस्ट्रेलियाई और एशियाई प्लेटें हर साल लगभग 5 सेमी की दर से एक दूसरे के ऊपर और नीचे धकेलती जा रहे हैं। हालाँकि ये बहुत ज़्यादा नहीं है, लेकिन जब यह एनर्जी या फ़ोर्स इकट्ठा हो जाती है, तो भूकंप के रूप में सामने आती है, जो काफी विनाशकारी साबित होता है।
मिट्टी की परत
भूकम्प में जमीन की सतह के नीचे मिट्टी की परत का भी योगदान होता है। घनी आबादी वाली काठमांडू घाटी के नीचे मिट्टी की 300 मीटर गहरी परत है। जब गहरे कई मील नीचे भूकम्प आता है तो उसकी तरंगें मिट्टी की इन्हीं परतों के जरिये फैलती हैं। और मिट्टी की परत का द्रवीकरण होता है। ऐसा तब होता है जब कंपन के कारण ठोस ज़मीन भुरभुरा कर रेत जैसी किसी चीज़ में बदल जाती है।
भूकंप की विनाश क्षमता का परिमाण ही एकमात्र माप नहीं है, भूकंप की तीव्रता भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। भूकंप का केंद्र जितना करीब होगा, जमीन के ऊपर प्रभाव उतना ही बड़ा होगा। भूकंप आने का स्थान भी मायने रखता है। 2015 का भूकम्प का केंद्र मात्र 12 किलोमीटर नीचे था इसीलिए इसका व्यापक प्रभाव हुआ।
कमजोर इमारतें
नेपाल दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक है और भूकंपों की तैयारी के लिए बहुत कम काम किया गया है। चूंकि नेपाल में इमारतों आदि का निर्माण कमजोर बुनियाद पर है इसलिए तेज़ भूकंपों का विनाशकारी परिणाम होता है। इससे नेपाल की स्थिति और भी जटिल हो जाती है। इन सबके अलावा, बढ़ती जनसंख्या भी प्राकृतिक आपदा में अपना योगदान दे देती है। भूकम्प जापान में सबसे ज्यादा आते हैं । लेकिन वहां ऐसा इंफ्रास्ट्रक्चर है, ऐसी इमारतें बनती हैं जिसकी वजह से बड़ा नुकसान नहीं होता। नेपाल में ऐसा कुछ नहीं है। दूसरी बात नेपाल की पर्वतीय संरचना है जहां बड़ी आबादी निवास करती है।
आगे भी आते रहेंगे भूकम्प
हाल में आया नेपाल का भूकंप विज्ञानियों के लिए कोई आश्चर्य की बात नहीं है। वैज्ञानिकों ने लंबे समय से भविष्यवाणी की है कि हिमालय के नीचे बहुत अधिक दबाव बन रहा है, क्योंकि यह यूरेशियन प्लेट और भारतीय प्लेट की टेक्टोनिक रूप से सक्रिय सीमा पर स्थित है। वैज्ञानिकों ने पिछली सदी में देखा है कि भारतीय प्लेट उत्तर की ओर अपनी गति जारी रखे हुए है, जिससे यूरेशियन प्लेट के साथ संघर्ष हो रहा है और हिमालय पर दबाव पैदा हो रहा है, जो संभवतः एक या कई बड़े भूकंपों के माध्यम से जारी किया जाएगा, जिनकी तीव्रता रिक्टर स्केल पर आठ से अधिक होगी। कई वैज्ञानिकों ने भविष्यवाणी की है कि हिमालय क्षेत्र में 'कभी भी' बड़ा भूकंप आएगा। लेकिन कोई निश्चित समय सीमा नहीं बताई जा सकती। चूंकि ये पूरा क्षेत्र गहन आबादी वाला है इसलिए कोई भूकंपीय घटना बड़ी त्रासदी बन सकती है। इसलिए वैज्ञानिकों का जोर भूकम्पीय रूप से सोच समझ कर निर्माण कार्य करने पर रहता है।
नेपाल के बड़े भूकंप
- 15 जनवरी, 1934 को नेपाल - बिहार - बंगाल सीमा पर आया भूकम्प इतिहास के सबसे भयानक भूकंपों में से एक था। इसकी तीव्रता 8.0 थी और 30,000 लोग मारे गए थे।
- 29 जुलाई, 1980 को शाम को पश्चिमी नेपाल और उत्तराखंड की सीमा पर भूकम्प आया जिसकी तीव्रता 6.5 थी। इसमें 6500 जानें गईं थीं।
- 21 अगस्त, 1988 को भारतीय सीमा के पास नेपाल में भूकंप आया और उत्तरी बिहार का अधिकांश भाग प्रभावित हुआ। इसमं 900 से ज्यादा जानें गईं।