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Ebrahim Raisi: अमेरिका के कट्टर दुश्मन चुने गए ईरान के प्रेसिडेंट, जानिए इब्राहिम रायसी के बारे में

Ebrahim Raisi: रायसी ईरान की न्यायपालिका के प्रमुख हैं और सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातोल्लाह खामनेई के बेहद खास माने जाते हैं।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani LalPublished By Dharmendra Singh
Published on: 19 Jun 2021 2:15 PM IST (Updated on: 19 Jun 2021 2:46 PM IST)
Ebrahim Raisi
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 इब्राहिम रायसी ( फाइल फोटो: सोशल मीडिया)

Iran Vs US: ईरान में राष्ट्रपति भले ही रबर स्टाम्प की तरह होता है लेकिन फिर भी इस पद के चुनाव से कुछ संकेत जरूर निकलते हैं। इस बार के चुनाव में अति कट्टरपंथी इब्राहिम रायसी की जीत हुई है और इससे ईरान में अब कट्टरपंथी तत्वों की पकड़ और भी मजबूत हो जाएगी जिसका असर देश के बदतर हालातों को और पीछे ले जाएगा।

रायसी ईरान की न्यायपालिका के प्रमुख हैं और सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातोल्लाह खामनेई के बेहद खास माने जाते हैं। रायसी का राजनीतिक सफर काफी लंबा और विवादों भरा रहा है। निजी तौर पर उनके खिलाफ अमेरिका ने प्रतिबंध लगा रखे हैं और उनके साथ किसी भी तरह के संपर्क या संबंध की सख्त मनाही है।
रायसी के प्रेसिडेंट बनने पर अमेरिका को उनके खिलाफ प्रतिबंध हटाने होंगे क्यों बतौर प्रेसिडेंट उनसे बातचीत के लिये ये जरूरी होगा। ईरान के नाभिकीय प्रोग्राम पर बातचीत आगे बढ़ाने के लिए ये मजबूरी है।
रायसी पर प्रतिबंध इसलिए लगाए गए थे क्योंकि उनपर हजारों ईरानी असंतुष्टों की हत्या का आरोप है। मानवाधिकार के नाम पर अमेरिका ने रायसी को दुश्मन माना है और प्रतिबंध लगा रखे हैं। अब प्रतिबंध हटने की स्थिति में ईरानी असंतुष्टों और नरमपंथियों को गहरा झटका लगेगा।


रायसी का पूरा करियर कानून और न्यायपालिका से जुड़ा रहा है। मार्च 2019 में अयातोल्लाह खामनेई ने उनको देश की न्यायपालिका का प्रमुख नियुक्त किया था। इसके पहले वह न्यायपालिका के उप प्रमुख, देश के महाअभियोजक रह चुके हैं।
60 वर्षीय रायसी को ईरान के ग्रीन मूवमेंट के सख्ती से दमन का जिम्मेदार माना जाता है। ये मूवमेंट 2009 के चुनाव के खिलाफ हुआ था। अमेरिका ने उन पर यह प्रतिबंध 1988 में राजनीतिक कैदियों की सामूहिक हत्या के लिये तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आलोचना झेलने वाली ईरानी न्यायपालिका के मुखिया के तौर पर लगाया था। असंतुष्टों का आरोप है कि रायसी एक क्रूर व्यक्ति हैं। उनपर अदालत में ही यातना कक्ष बनाने का भी आरोप लग चुका है।

खामनेई के उत्तराधिकारी

रायसी को ईरान के सुप्रीम लीडर अयातोल्लाह खामनेई का उत्ताराधिकारी माना जा रहा है। सरकार मीडिया के अलावा ईरानी सेना के रिवल्यूशन गार्ड द्वारा चलाए जाने वाले मीडिया संस्थाओं का भी उन्हें समर्थन हासिल है। रायसी 2017 में ध्रुवीकरण के बीच राष्ट्रपति चुनाव में खड़े हुए थे लेकिन मौजूदा राष्ट्रपति हसन रूहानी से हार गए। रायसी को एक करोड़ 60 लाख वोट मिले थे जबकि उनके प्रतिद्वंदी ने दो करोड़ 40 लाख वोट पाकर जीत दर्ज की थी।


कट्टरपंथियों की मजबूत पकड़
रायसी की जीत का मतलब है की ईरानी सरकार पर कट्टरपंथियों की पकड़ और मजबूत हो गई है। ईरान में राष्ट्रपति पद के लिए हर चार साल में चुनाव होता है। चुनाव जीतने वाला व्यक्ति एक बार में अधिकतम दो कार्यकाल तक राष्ट्रपति बन सकता है। ईरान के संविधान के मुताबिक़, राष्ट्रपति ईरान में दूसरा सबसे ज़्यादा ताक़तवर व्यक्ति होता है। लेकिन राष्ट्रीय मसलों पर अंतिम फ़ैसला सर्वोच्च नेता का ही होता है।
ईरान के चुनाव का खाका गार्जियन कॉउंसिल तैयार करती है। यही कॉउंसिल तय करती है कि कौन चुनाव में खड़ा होगा। गार्जियन काउंसिल दरअसल कानूनविदों और मौलानाओं की एक संस्था है जिसके सदस्य चुने हुए नहीं होते हैं। इस काउंसिल ने 600 उम्मीदवारों में से सिर्फ सात को चुनाव लड़ने की स्वीकृति दी थी। जिन लोगों को चुनाव लड़ने से रोक दिया गया उनमें संसद के पूर्व स्पीकर अली लारीजानी भी थे।
चुनावी अभियान का अंत होने से ठीक पहले बाकी बचे सात उम्मीदवारों में से भी तीन और उम्मीदवारों ने अपना नाम वापस ले लिया। अब प्रतियोगिता में रायसी के अलावा दो और अति-रूढ़िवादी उम्मीदवार ही बचे। इनके खिलाफ इकलौते सुधारवादी उम्मीदवार थे केंद्रीय बैंक के अध्यक्ष अब्दुलनासिर हेम्मति। ऐसे में तय था कि आगे क्या होने वाला है। यही वजह है कि जनता में मतदान को लेकर जरा भी उत्साह नहीं था।

भारी आर्थिक संकट

ईरान में कई लोग सालों से चल रहे आर्थिक संकट झेलते झटकते से हतोत्साहित हो चुके हैं। यह संकट अमेरिकी प्रतिबंधों की वजह से उत्पन्न हुआ था और महामारी की वजह से और गंभीर हो गया है। चुनाव भी ऐसे समय पर हो रहे हैं जब ईरान दुनिया की बड़ी ताकतों के साथ अपनी परमाणु संधि को फिर से जीवित करने के लिए बातचीत कर रहा है। अब देखने वाली बात है कि अमेरिका का बिडेन प्रशासन कैसा रुख अपनाता है। ये ईरान के प्रति अमेरिका की नीति की भी परीक्षा होगी।




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Dharmendra Singh

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