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फेसबुक और गूगल पर 'होलोचेन' संकट
न्यूयार्क। जानते हैं कि किसी भी वेबसाइट पर पहुंचने के लिए आपको उसके नाम से पहले डब्लूडब्लूडब्लू' क्यों लगाना पड़ता है? दरअसल 1990 के दशक में ब्रिटेन के टिम बर्नर्स ली ने वल्र्ड वाइड वेब यानी डब्लूडब्लूडब्लू को ईजाद किया था। इसे डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू इंटरनेट कम्यूनिकेशन प्रोटोकॉल भी कहा जाता है। अब लगभग तीन दशक बाद इसे टक्कर देने के लिए नई तकनीक बाजार में मौजूद है। इसे होलोचेन का नाम दिया गया है।
होलोचेन के डिजाइनरों का दावा है कि यह तकनीक डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू के बाद से बनाई गई सबसे अहम तकनीक है।यह तकनीक यूजर्स को अपनी ऑनलाइन गोपनीयता बनाए रखने में मदद करती है। होलोचेन के संस्थापक और अमेरिका के सॉफ्टवेयर इंजीनियर आर्थर ब्रॉक और एरिक हैरिस ब्राउन का दावा है कि यह तकनीक हमारी कल्पना से भी अधिक निर्णायक साबित होगी।
क्या है होलोचेन?
डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू प्रोटोकॉल की तरह ही होलोचेन एक ऐसी तकनीक है जो कंप्यूटर को आपस में संपर्क करने के लिए तैयार करती है। डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू अधिकतर बड़ी कॉरपोरेट कंपनियों के सर्वर पर ही चलता है। इसके तहत आपका स्मार्टफोन या कंप्यूटर फेसबुक या गूगल जैसी बड़ी कंपनियों के सर्वर से जुडऩे के लिए रिक्वेस्ट भेजता है और फिर उन्हीं सर्वरों से डेटा का आदान-प्रदान करता है। अधिकतर कंप्यूटिंग और डाटा स्टोरेज इन्हीं कॉरपोरेट सर्वर में होता है, जिसे कॉरपोरेट क्लाउड भी कहते हैं।
इसके उलट होलोचेन तकनीक को पूरी तरह से पर्सनल कंप्यूटर और स्मार्टफोन के ही डिस्ट्रिब्यूटिड नेटवर्क पर चलाने के लिए बनाया गया है। इसका मतलब है कि होलोचेन में डेटा स्टोरेज किसी बड़े कॉरपोरेट सर्वर में नहीं होता, बल्कि नेटवर्क में जुड़े स्मार्टफोन और कंप्यूटरों में होता है। इसे पीयर टू पीयर टेक्नोलॉजी कहते हैं।
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ऐप का इस्तेमाल
होलोचेन पर सभी तरह के ऐप बनाए जा सकते हैं। जैसे कि गूगल जैसा सर्च इंजन, ईमेल ऐप, फेसबुक मैंसेंजर जैसा मैसेजिंग ऐप, ट्विटर जैसा शॉर्ट टैक्सट शेयरिंग ऐप और एयर बीएनबी के जैसा रहने की जगह तलाशने वाला ऐप। होलोचेन से बनाए गए ऐप को कॉरपोरेट सर्वर से जुडऩे की जरूरत नहीं होती। सारा डाटा यूजर के कंप्यूटर में ही स्टोर होता है। इस तरह से कॉरपोरेट सर्वर चलाने वाली बड़ी कंपनियों के पास यूजर का डाटा पहुंचता ही नहीं तो फिर इसके अवैध इस्तेमाल की चिंता भी नहीं।
प्राइवेसी को बचाने वाली तकनीक
पिछले 15 सालों पर गौर करें तो लगता है कि ऑनलाइन दुनिया में प्राइवेसी जैसे खत्म ही हो गई है। वेब अब ऐसा जाल बन गया है जिसे पूरी तरह से केवल कुछ गिने चुने कॉरपोरेट समूह ही नियंत्रित कर रहे हैं। साथ ही यूजर्स के निजी डाटा को मुनाफा कमाने के लिए प्रयोग कर रहे हैं। विज्ञापनों के जरिए ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाने के लिए फेसबुक, ट्विटर, गूगल और बड़ी कंपनियां सोशल मीडिया पर यूजर्स की ओर से होने वाली हर हरकत पर नजर रख रही हैं। इन कंपनियों को यूजर्स की पंसद के वेब सर्च, ऑनलाइन वीडियो, फोटो, जीपीएस लोकेशन, ईमेल, यहां तक कि उनके एक-एक शब्द का पता रहता है। होलोचेन के डिजाइनर एरिक हैरिस ब्राउन इस बारे में कहते हैं, फेसबुक के धंधे में हम स्वयं एक उत्पाद हैं और फेसबुक हमारे प्रोफाइल को उत्पाद बनाकर बेच रहा है।
ब्रॉक और ब्राउन की टीम पर्सनल डाटा को कॉरपोरेट सर्वर तक न पहुंचाकर यूजर्स को अपनी जानकारी का नियंत्रण देना चाह रही है। ब्रोक कहते हैं, होलोचेन एजेंट सेंटरिक है, डेटा सेंटरिक नहीं। होलोचेन में यूजर्स एजेंट है और इसमें यूजर्स ही फैसला लेते हैं कि डेटा कहां जाएगा और किसे दिखेगा।
होलोचेन की तकनीक को पिछले दस सालों से विकसित किया जा रहा है। 2008 में जापान के सातोशी नकामोतो ने ब्लॉकचेन और बिटकॉइन तकनीक के बारे में बताते हुए अपनी रिपोर्ट प्रकाशित की थी। कम ही लोग जानते हैं कि होलोचेन पर उससे भी पहले से काम चल रहा था। ब्लॉकचेन को लेकर पिछले 10 सालों में दुनिया ने काफी उत्सुकता दिखाई है। लेकिन अब इसकी पैरवी करने वालों को भी समझ आने लगा है कि इस तकनीक में कुछ गंभीर कमियां हैं। इसे ऐसे डिजाइन किया गया है कि एक चेन के अंदर होने वाली सारी गतिविधियों का लेखा-जोखा यूजर को स्टोर करना पड़ता है। इतना ही नहीं, अपने खाते में नई गतिविधियों को जोडऩा, समय के साथ कंप्यूटेशन पावर के लिहाज से बेहद खर्चीला हो जाता है।
होलोचेन के डिजाइनरों का दावा है कि उन्होंने इन कमियों के बिना तकनीक को डिजाइन करने में सफलता पाई है। ब्रॉक के मुताबिक, ब्लॉकचेन के मुकाबले होलोचेन में होने वाली गतिविधियां समय और ऊर्जा के हिसाब से 10 हजार गुना सस्ती और कारगर होंगी। होलोचेन के डिजाइनरों की टीम ने 2018 की शुरुआत में आईसीओ (इनिशियल कॉइन ऑफरिंग) लॉन्च किया था और इसकी मदद से लाखों डॉलर जुटा कर होलोचेन का बीटा वर्जन भी लॉन्च किया।
ब्रूक और ब्राउन का कहना है कि उनका मकसद अमीर होना नहीं, बल्कि जनता को ताकतवर बनाना है। अब वे दुनिया भर में 'हैकेथॉन' आयोजित करने जा रहे हैं। ये ऐसी प्रतियोगिताएं हैं जिनके जरिए वे सॉफ्टवेयर डेवलपरों को खोजेंगे जो होलोचेन पर आधारित ऐप बना सकें। माना जा रहा है कि जब पहला ऐसा कारगर ऐप बना जाएगा, तब निश्चित ही होलोचेन को रोकना नामुमकिन हो जाएगा।