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Facts About Glacier: ग्लेशियर कैसे बनते हैं, देखें ये वीडियो रिपोर्ट

Facts about Glacier:ग्लेशियर हर साल, बर्फ के जमा होने से बने पहाड़ों या परतों को कहा जाता है, ग्लेशियर ऊंचाई या धुर्वीय वाले ऐसे स्थानों पर बनते हैं, जहां का तापमान शून्य से नीचे रहता है और हर साल बर्फ जमा होती रहती है,

Akshita Pidiha
Published on: 26 May 2023 7:35 PM IST

Facts about Glacier: पूरे विश्व की यदि बात की जाए तो सम्पूर्ण पृथ्वी का दसवाँ भाग पर ग्लेशियर है। ग्लेशियर हर साल, बर्फ के जमा होने से बने पहाड़ों या परतों को कहा जाता है, ग्लेशियर ऊंचाई या धुर्वीय वाले ऐसे स्थानों पर बनते हैं, जहां का तापमान शून्य से नीचे रहता है और हर साल बर्फ जमा होती रहती है, बर्फबारी होने से पुरानी बर्फ दबने लगती है। जिससे उसका घनत्व बढ़ता जाता है। और हल्के क्रिस्टल से ठोस बर्फ के गोले में बदलत जाती है। दरअसल, आप जैसे-जैसे उचाईयों पर बढ़ते हैं टेंपरेचर में कमी आती है। हर 165 मीटर की ऊँचाई पर 1 डिग्री टेंपरेचर गिर जाता है और जब टेंपरेचर कम होता है तो हवा में भी नमी आती है। वहीं जब ये नम हवा हिमालय से टकराती है तो बर्फ का स्रोत बन जाती है। जिसे ग्लेशियर कहा जाता है। ये ग्लेशियर जब पिघलते हैं तो यहीं से नदियों का निर्माण होता है। ग्लेशियर को हम हिंदी में हिमनद भी कहते हैं। जिसका मतलब है बर्फ की नदी, जब ये धीरे--धीरे पिघलते हैं तब तक ये ठीक रहते हैं।लेकिन जब ये अचानक से टूट जाते हैं तो स्थिति काफी विकराल हो जाती है। इससे नदियों का जलस्तर आचानक से काफी ज्यादा बढ़ जाता है। पहाड़ी इलाका होने की वजह से इसका बहाव भी काफी तेज होता है। यही कारण है कि इसके रास्ते में जो भी चीजें आती हैं उसे बस यह तबाह करते हुआ आगे बढ़ जाती है।

ग्लेशियर के प्रकार

अल्पाइन ग्लेशियर या घाटी

ग्लेशियर का पहाड़

जिन इलाकों में ज्यादा ठंड पड़ती है उन इलाकों में हर साल बर्फ जमा होती रहती है। सर्दियों में बर्फबारी होने पर पहले से जमा हुई बर्फ जमने लगती है। जिससे उसका घनत्व और भी बढ़ता जाता है। जब छोटे छोटे बर्फ के टुकड़े ग्लेशियर में बदलने लगते हैं। वही ग्लेशियर नई बर्फबारी होने से नीचे दबने लगते हैं और कठोर हो जाते हैं, इस प्रक्रिया को फर्न कहते हैं। ऐसा होते होते यह ठोस बर्फ की बहुत विशाल मात्रा में जमा होने लगती है। बर्फबारी अधिक होने के कारण फर्न पर बिना दबाव पड़े तापमान के ही पिघलने लगती है और हिमनद का रूप लेकर घाटियों में बहने लगती है। यह तब तक विकराल रूप नहीं लेती है जब तक यह हिमस्खलन का रूप नहीं बदलती।

ग्लेशियर से मानवीय जीवन पर असर

ज्यादा मात्रा में ग्लेशियर पिघलने से आसपास के इलाकों में बाढ़ का खतरा अधिक बढ़ जाता है।

जिसके कारण खेती एवं स्थानीय निवास पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ सकता है। जिसके मानव जीवन पर संकट भी आ सकता है।

यदि कहीं गर्म इलाके के पास कहीं ग्लेशियर पिघलता है तो वहां के लोगों को उसका लाभ मिलता है।

बहुत ज्यादा ग्लेशियर पिघलने पर पूरे विश्व के मौसम पर इसका असर पड़ता है।

कई देशों ने करार के रूप में कार्बन उत्सर्जन की मात्रा को नियंत्रण करने का फैसला लिया है जिससे पर्यावरण में सुधार लाया जा सके।

ग्लेशियर पृथ्वी पर पानी का सबसे बड़ा सोर्स हैं। इनकी उपयोगिता नदियों के स्रोत के तौर पर होती है।

चूँकि ग्लेशियर लगातार धरती के बढ़ते तापमान के कारण पिघलते जा रहे हैं तो इसकी आंच उन तक भी पहुँच रही है। सदियों सदियों तक ऐसे ही दबे रहने के कारण उन ग्लेशियर में पहले के कई वायरस भी निवास करते हैं जो उनके पिघलते ही बाहर आ जाएंगे और मानव सभ्यता के लिए विनाशकारी सिद्ध होंगे।

ग्लेशियर से खतरा

ग्लेशियर टूटने या पिघलने से जो दुर्घटनाएं होती हैं वह बड़ी आबादी पर असर डालती हैं। यह बर्फीली चोटियां बहुत खतरनाक होती हैं जो कभी भी गिर सकती हैं। ग्लेशियर हमेशा एक जगह स्थिर होते हैं और धीरे-धीरे नीचे की ओर सरकते रहते हैं। ग्लेशियर में बड़ी-बड़ी दरारें होती हैं जो ऊपर से बर्फ की एक पतली परत से ढक जाती है। इन चट्टानों के पास जाने पर वजन पडते ही बर्फ की पतली परत टूट जाती है, जिससे खतरा बढ़ जाता है। यदि इस तरह जब भूकंप या कंपन होता है तब भी इन चोटियों पर जमी बर्फ सरक कर नीचे आ जाती है, जिसे अवलॉन्च कहते हैं। कई बार तो तेज ध्वनि और विस्फोट के कारण भी एवलॉन्च आते हैं।

ग्लेशियर को पिघलने से रोकने के लिए क्लीन एनर्जी की ओर बढ़ता देश

ग्लेशियर के पिघलने का कारण दुनिया में कार्बन डाई ऑक्साइड और ग्रीनहाउस गैसों के काफी ज्यादा मात्रा में उत्सर्जन है। कल, कारखाने, व्हीकल, एसी इत्यादि इन गैसों का उत्सर्जन करते हैं। जिससे धरती का तापमान बढ़ता है तो ग्लेशियर पिघलने लगते हैं। कार्बन समेत ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए ही देश अब क्लीन एनर्जी की ओर बढ़ रहे हैं। इनमें सोलर एनर्जी, विंड टरबाइन, एटॉमिक एनर्जी इत्यादि प्रमुख हैं। ग्लेशियर का अपनी गति से पिघलना एक सामान्य प्रक्रिया है ।जिसे दुनिया को पानी की आपूर्ति होती है । लेकिन ग्लोबल वार्मिंग के कारण इसका तेजी से पिघलना ही आने वाले समय में बहुत बड़ी समस्या को पैदा कर देता है। जैसे बाढ़ का आना, हिमस्खलन का होना जैसी प्राकृतिक आपदाएं।

ग्लेशियर टूटने के कारण

गुरुत्वाकर्षण बल

सिरों या किनारो पर अत्यधिक दबाव से कटाव के कारण।

ग्लोबल वार्मिंग।

बर्फ के नीचे भूकंप के झटके।

पिघले या जमा पानी का दबाव।

ग्लेशियर कैसे पिघलता है ?

वैज्ञानिकों ने अपने ताजा अध्ययन में पाया है कि ग्लोबल वार्मिंग भी ग्लेशियर टूटने का मुख्य कारण हैं। पृथ्वी पर ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियर अत्यधिक तेजी से पिघलते हैं, जिसके कारण उसका एक हिस्सा टूट जाता है, एवं वातावरण में अत्यधिक ऐसी गैसों का दबाव बढ़ गया है, जिसके कारण हमारे पर्यावरण को क्षति पहुंच रही है, प्रतिदिन लाखों-करोड़ों वाहनों से जो धुआं निकलता है एवं अन्य विषैली गैसों का मिश्रण वातावरण में होता है।

इसी के साथ साथ इनके लगातार पिघलने के कारण नदियों व समुंद्र का जल स्तर भी बढ़ता जा रहा है जिस कारण समुंद्र की सतह ऊपर उठती जा रही है। इस कारण सुनामी, बाढ़ इत्यादि का खतरा भी बढ़ रहा है। तो यदि हमने समय रहते इस समस्या का समाधान नहीं किया और दुनिया भर की सरकारें नही जागीं तो यह मानव सभ्यता ज्यादा समय तक जीवित नहीं रह पायेगी।



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Akshita Pidiha

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