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पाकिस्तान में मशहूर 'बदायूं पेड़ा', स्वाद लेने के लिए आते है दूर-दराज से लोग
उत्तर प्रदेश का बदायूं पाकिस्तान में अपने खास किस्म के ‘पेड़े’ के लिये बहुत मशहूर है। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनवा प्रांत के मरदान शहर में ‘बदायूनी पेड़ा हाउस’ में ओरीजिनल स्वाद वाले पेड़े लेने के लिये दूर दूर से लोग आते हैं।
इस्लामाबाद : उत्तर प्रदेश का बदायूं पाकिस्तान में अपने खास किस्म के ‘पेड़े’ के लिये बहुत मशहूर है। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनवा प्रांत के मरदान शहर में ‘बदायूनी पेड़ा हाउस’ में ओरीजिनल स्वाद वाले पेड़े लेने के लिये दूर दूर से लोग आते हैं।
यह मशहूर दुकान किसी भी पारंपरिक मिठाई दुकान जैसी भी है। मरदान की एक सड़क पर यह छोटी सी दुकान है लेकिन यहां रोजाना 200 किलो पेड़े बिक जाते हैं।
दुकान के मालिक 78 वर्षीय महमूद अली खान के अनुसार वह इस धंधे के मूल संस्थापक नहीं हैं। वह तो 8 साल के थे जब भारत का बंटवारा हुआ था। उस समय सात भाइयों में से दो ने पाकिस्तान जाने का फैसला किया था। इन दोनों का कहना था कि वे पाकिस्तान जाकर वहां के हालात देखेंगे फिर बाकी परिवारवालों के लिये इंतजाम करेंगे। पाकिस्तान में वे दोनों कुछ काम तलाश नहीं कर पाए तो सबसे बड़े भाई इब्रे अली खान ने मरदान में पेड़े की दुकान चलाने का फैसला किया।
महमूद आगे बताते हैं कि कुछ समय बाद उनकी मां ने कहना शुरू किया कि पूरे परिवार को एक साथ रहना चाहिए। उनका कहना था कि या तो पाकिस्तान गये दोनों बेटे वापस सिरौली (बरेली का एक गांव) वापस आ जाएं या यहां से बाकी सभी लोग पाकिस्तान चले जाएं।
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नहीं आता था हलवाई का काम
बंटवारे के नियम के अनुसार पाकिस्तान चले गए दोनों भाई भारतीय नागरिक की हैसियत से भारत नहीं लौट सकते थे। उनके पास पाकिस्तानी पासपोर्ट भी नहीं था। इसके बाद चारों भाई पाकिस्तान में ही मिठाई का ही धंधा करने लगे जबकि किसी को हलवाई का काम करना नहीं आता था। सबसे बड़े भाई को मिठाई के नाम पर सिर्फ खोवा बनाना आता था जो उन्होंने अपने परिवार की महिलाओं को बनाते हुये देखा भर था।
बदायूं में सीखा पेड़ा बनाना
कुछ साल बाद पाकिस्तानी पासपोर्ट मिलने पर दो भाई महफूज और मोहम्मद भारत लौटे और सिरौली में मिठाई की दुकानों पर कम करके मिठाई बनाना सीखा। बाद में वे बदायूं में मम्मन खान की मशहूर दुकान में काम करने लगे। कुछ रिश्तेदारों ने बड़ी मान मनौव्वल के बाद मम्मन खान को दोनों भाइयों को काम सिखाने को राजी किया। मम्मन को महफूज ने वचन दिया था कि वे पेड़े का धंधा पाकिस्तान में ही करेंगे। इसके बाद ही मम्मन खान ने अपनी गोपनीय कला उन्हें सिखाई। दो महीने तक सीखने के बाद दोनों भाई मरदान लौट गए।
साल 1964 तक सभी भाई पाकिस्तान में जाकर बस गए। महमूद अली खान का बेटा अहमर महमूद अब मिठाई की दुकान चलाता है। महमूद कहते हैं कि उन्हें खुद नहीं पता कि उनके भाई लोग पाकिस्तान आखिर क्यों गए। महमूद कहते हैं कि ‘जब मैं बरेली जाता हूं तो सोच-सोच कर परेशान होता हूं कि परिवार के कुछ लोग पाकिस्तान क्यों चले गए। वहां हमें जो प्यार मिलता है वह अलग तरह का प्यार महसूस होता है। कभी-कभी मैं अपने पिता से पूछता हूं कि उन्होंने इस जगह को छोड़ने का फैसला क्यों किया। हम यहीं रहते तो कितना अच्छा होता।