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पड़ोस में आग, बांग्लादेश में बेहद खतरनाक हालात, जानिए आखिर क्या हुआ?

Bangladesh News : संयुक्त राष्ट्र महासचिव के प्रवक्ता स्टीफन दुजारिक ने बांग्लादेश सरकार से शांतिपूर्ण समाधान की तलाश करने और प्रदर्शनकारियों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन के अधिकार को मान्यता देने का आग्रह किया है।

Neel Mani Lal
Published on: 18 July 2024 3:34 PM IST
पड़ोस में आग, बांग्लादेश में बेहद खतरनाक हालात, जानिए आखिर क्या हुआ?
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Bangladesh : बांग्लादेश में छात्रों ने सरकारी नौकरियों में आरक्षण के खिलाफ जबर्दस्त आंदोलन छेड़ दिया है। देश भर में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए हैं, जिसमें कम से कम छह लोगों की मौत हो गई है और 400 से अधिक लोग घायल हो गए हैं। छात्रों ने पूरे देश में पूर्ण शटडाउन का आह्वान किया है। अस्पताल जैसी आपात सेवाओं को छोड़ कर सब कुछ बन्द करवाने पर छात्र तुले हुए हैं। सरकार ने भी सभी सार्वजनिक और निजी विश्वविद्यालयों को अनिश्चित काल के लिए बंद कर दिया है। स्थिति ऐसी है कि संयुक्त राष्ट्र महासचिव के प्रवक्ता स्टीफन दुजारिक ने बांग्लादेश सरकार से शांतिपूर्ण समाधान की तलाश करने और प्रदर्शनकारियों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन के अधिकार को मान्यता देने का आग्रह किया है।

दरअसल, बांग्लादेश उच्च न्यायालय द्वारा 5 जून को दिए गए एक फैसले के बाद विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए, इस फैसले में स्वतंत्रता सेनानियों और उनके वंशजों के लिए सरकारी नौकरियों में 30 फीसदी कोटा बहाल कर दिया गया था, जिसे 2018 में छात्रों और शिक्षकों के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर आंदोलन के बाद निरस्त कर दिया गया था। प्रधानमंत्री शेख हसीना ने इस फैसले के बाद आग में घी डालने का काम किया और प्रदर्शनकारियों को ‘रजाकार’ करार दे दिया। ये ‘देशद्रोही’ के लिए एक अपमानजनक बांग्ला शब्द है - उन्होंने साथ ही कुछ और गंभीर बातें भी कहीं।

कया है पूरा मामला

- भारत की तरह बांग्लादेश में सरकारी नौकरियों का बहुत क्रेज़ और प्रतिष्ठा है। क्योंकि ये नौकरियां आय का एक स्थिर और आकर्षक स्रोत मानी जाती हैं। एपी के अनुसार, हर साल लगभग 400,000 स्नातक लगभग 3,000 ऐसी नौकरियों के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं।

- 2018 तक 56 प्रतिशत सरकारी नौकरियां विभिन्न श्रेणियों के लिए आरक्षित थीं। 30 प्रतिशत आरक्षण 1971 में बांग्लादेश की आज़ादी के लिए लड़ने वाले परिवारों के सदस्यों के लिए आरक्षित थीं।

- महिलाओं और अविकसित जिलों के लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण मिला, आदिवासी समुदायों के सदस्यों को 5 प्रतिशत और विकलांग व्यक्तियों के लिए 1 प्रतिशत आरक्षण मिला है।

- इन आरक्षणों के चलते ओपन कैटेगरी के लिए सिर्फ 44 प्रतिशत पद ही बचे रह गए।

स्वतंत्रता सेनानी कोटे का सवाल

- सरकारी नौकरियों में स्वतंत्रता सेनानियों का कोटा विशेष रूप से विवादास्पद रहा था, क्योंकि कई लोगों का मानना ​​था कि यह शेख हसीना की अवामी लीग पार्टी के प्रति वफादार लोगों के पक्ष में है। अवामी लीग ने ही पाकिस्तान के खिलाफ बांग्लादेशी मुक्ति संग्राम का नेतृत्व किया था।

- कोटा उम्मीदवारों के लिए विशेष परीक्षाएं, प्रत्येक श्रेणी के लिए अलग-अलग आयु सीमाएं और मेरिट सूची में योग्य उम्मीदवार होने के बावजूद कोटा सीटों में रिक्तियां बने रहने से लोगों, खासकर युवाओं की निराशा को और बढ़ा दिया है।

- अप्रैल 2018 में छात्रों और शिक्षकों ने आरक्षण की शर्तों को हटाने और कुल आरक्षण को घटाकर 10 प्रतिशत करने की माँग करते हुए चार महीने लंबा विरोध प्रदर्शन किया। इस दौरान हुई हिंसा में प्रदर्शनकारियों ने बांग्लादेश छात्र लीग (सत्तारूढ़ अवामी लीग की छात्र शाखा) और पुलिस के साथ भिड़ंत की थी। अंतरराष्ट्रीय आक्रोश के बाद शेख हसीना ने सभी कोटा हटाने की घोषणा की थी।

न्यायालय का निर्णय और व्यापक विरोध

- 5 जून 2024 को बांग्लादेश के सर्वोच्च न्यायालय के उच्च न्यायालय प्रभाग ने सभी आरक्षणों, विशेष रूप से विवादास्पद 30 प्रतिशत स्वतंत्रता सेनानियों के कोटे को निरस्त करने वाले 2018 के आदेश को पलटने का आदेश दिया।

- इसके खिलाफ़ जून में ढाका में शुरुआती विरोध प्रदर्शन हुए, लेकिन 17 जून को ईद-उल-अजहा त्योहार खत्म होने के बाद देश में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए।


- प्रदर्शनकारियों ने 7 जुलाई को देशव्यापी बांग्ला बंद का आह्वान किया। जबकि सर्वोच्च न्यायालय के अपीलीय प्रभाग ने एक महीने के लिए आदेश के कार्यान्वयन पर रोक लगा दी।

इस बार क्या है छात्रों की मांग

- प्रदर्शनकारियों ने इस बार सभी ग्रेडों से भेदभावपूर्ण कोटा हटाने, संविधान में निर्धारित पिछड़ी आबादी के लिए कुल आरक्षण को 5 प्रतिशत तक सीमित करने और इस बदलाव को सुनिश्चित करने के लिए संसद में एक विधेयक पारित करने की मांग की है। वास्तव में, यह डिमांड स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों वाले कोटे को हटाने के बराबर है, जबकि शारीरिक रूप से विकलांग और आदिवासी लोगों के लिए कोटा लाभ बरकरार रखा गया है।

हिंसा क्यों भड़की?

- विरोध प्रदर्शनों ने हिंसक रूप तब ले लिया जब देश भर के विभिन्न विश्वविद्यालयों में कोटा विरोधी प्रदर्शनकारियों और बांग्लादेश छात्र लीग तथा पुलिस के बीच झड़पें हुईं। इसमें तीन छात्रों सहित कम से कम छह लोगों की मौत हो गई।

- हिंसा की तीव्रता के कारण बांग्लादेश भर में सभी शैक्षणिक संस्थानों को अनिश्चित काल के लिए बंद कर दिया गया। 18 जुलाई को होने वाली उच्चतर माध्यमिक परीक्षा भी रद्द कर दी गई है। देश भर में विभिन्न स्थानों पर बॉर्डर गार्ड को तैनात किया गया है।

हसीना का रजाकार वाला कमेंट

- आरोप है कि अब तक शेख हसीना की सरकार ने हालात को शांत करने के लिए कुछ खास नहीं किया है। इसके बजाय, उनकी टिप्पणियों ने स्थिति को और खराब ही किया है।

- पीएम शेख हसीना ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा है कि - "क्या स्वतंत्रता सेनानियों के बच्चे और पोते प्रतिभाशाली नहीं हैं? क्या केवल रजाकारों के बच्चे और पोते ही प्रतिभाशाली हैं?" पिछले कई सालों से हसीना की पार्टी अवामी लीग अक्सर अपनी सरकार के आलोचकों और असंतुष्टों को "रजाकार" कह कर संबोधित करती रही है।


- रजाकार (शाब्दिक रूप से स्वयंसेवक) 1971 में पाकिस्तान के जनरल टिक्का खान द्वारा स्थापित एक अर्धसैनिक बल था, जिसका उद्देश्य इस्लामाबाद को पूर्वी पाकिस्तान पर नियंत्रण करने में मदद करना था, और अवामी लीग के नेतृत्व में चल रहे मुक्ति आंदोलन को रोकना था।

- पाकिस्तानी सशस्त्र बलों के साथ मिलकर काम करते हुए रजाकारों ने बांग्लादेश युद्ध के दौरान किए गए कुछ सबसे बर्बर जुल्म ढाए थे। बांग्लादेशी लोगों में पाकिस्तान के इन सहयोगियों को पाकिस्तानी सेना और नौकरशाही से भी ज्यादा आक्रोश के साथ याद किया जाता है।

- प्रदर्शनकारियों ने व्यंग्यात्मक रूप से इस शब्द को अपनाने का प्रयास किया है। नारे लगाए जा रहे हैं कि : "आप कौन हैं? मैं कौन हूँ? रजाकार, रजाकार!" "चैते गेलम ओधिकार, बोने गलाम रजाकार” (हमें अपने अधिकारों के लिए पूछने पर देशद्रोही कहा जा रहा है), इन नारों के चलते हालात और भी खराब हो गए हैं।



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Rajnish Verma

Rajnish Verma

Content Writer

वर्तमान में न्यूज ट्रैक के साथ सफर जारी है। बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की पढ़ाई पूरी की। मैने अपने पत्रकारिता सफर की शुरुआत इंडिया एलाइव मैगजीन के साथ की। इसके बाद अमृत प्रभात, कैनविज टाइम्स, श्री टाइम्स अखबार में कई साल अपनी सेवाएं दी। इसके बाद न्यूज टाइम्स वेब पोर्टल, पाक्षिक मैगजीन के साथ सफर जारी रहा। विद्या भारती प्रचार विभाग के लिए मीडिया कोआर्डीनेटर के रूप में लगभग तीन साल सेवाएं दीं। पत्रकारिता में लगभग 12 साल का अनुभव है। राजनीति, क्राइम, हेल्थ और समाज से जुड़े मुद्दों पर खास दिलचस्पी है।

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