Bangladesh: पिता की हत्या...निर्वासन, देश लौटने पर प्रतिबंध से जानलेवा हमले तक, जानिए शेख हसीना का राजनीतिक सफर

Bangladesh: यहां यह जानना अहम है कि शेख हसीना कौन हैं? उनका राजनीतिक इतिहास क्या है? सत्ता में आने के बाद से उन्हें किसका और कितना विरोध झेलना पड़ा है? साथ ही 18 साल पहले ऐसी कौन सी घटना उनके साथ घटी थी, जिसे आज के संदर्भ में भी देखा जा सकता है।

Ashish Kumar Pandey
Published on: 5 Aug 2024 3:33 PM GMT (Updated on: 5 Aug 2024 3:58 PM GMT)
Sheikh Hasina ( Social- Media- Photo)
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Sheikh Hasina ( Social- Media- Photo)

Bangladesh: सरकारी नौकरियों में आरक्षण को लेकर बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार के खिलाफ हुए विरोध-प्रदर्शनों के बीच भड़की हिंसा देखते ही देखते उग्र हो गई और इसका असर यह रहा कि प्रधानमंत्री शेख हसीना को सोमवार को इस्तीफा तक देना पड़ गया। इतना ही नहीं हसीना एक सैन्य हेलीकॉप्टर के जरिए बांग्लादेश छोड़कर दिल्ली के हिंडन एयरबेस पहुंची। यहां से वह लंदन के लिए रवाना होंगी। दूसरी ओर बांग्लादेश की सेना ने देश में जल्द से जल्द शांति स्थापित करने और अंतरिम सरकार का गठन करवाने पर जोर दिया है।

यहां सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि शेख हसीना के साथ यह स्थिति कोई पहली बार नहीं है। अपने पिता शेख मुजीब-उर-रहमान की हत्या से लेकर 2008-09 के हिंसक प्रदर्शनों के बाद भी हसीना के सामने कुछ ऐसी ही स्थितियां सामने आई थीं। हालांकि, हसीना हर बार इन चुनौतियों को चुनौती देते हुए उसे मात देने में सफल रहीं और सत्ता में लौट आईं।ऐसे में यहां यह जानना बेहद अहम है कि शेख हसीना कौन हैं? क्या है उनका राजनीतिक? सत्ता में आने के बाद से उन्हें किसका और कितना विरोध झेलना पड़ा है? साथ ही 18 साल पहले ऐसी कौन सी घटना घटी थी, जिसे आज के संदर्भ में भी देखा जा सकता है। तो आइये जानते हैं यहां...


सबसे पहले कौन हैं शेख हसीना?

शेख हसीना का जन्म 1947 में हुआ था। शेख हसीना बांग्लादेश की राजनीति का सबसे प्रभावी और विवादित चेहरा भी हैं। हसीना ने कई दशकों के अपने राजनीतिक अनुभव के साथ जहां जबरदस्त ऊंचाइयां हासिल की हैं तो वहीं उनके साथ कई विवाद भी जुड़ते चले गए।देखा जाए तो शेख हसीना का जीवन और राजनीति सीधे तौर पर बांग्लादेश के इतिहास और पृष्ठभूमि से जुड़ा हुआ है। उनके पिता शेख मुजीब-उर-रहमान 1971 में बांग्लादेश को पाकिस्तान से आजादी दिलाने वाला चेहरा थे। इससे साफ है कि बांग्लादेश के स्वतंत्रता आंदोलन को शेख हसीना ने काफी करीब से अनुभव किया। इस आंदोलन ने उनकी राजनीतिक विचारधारा को भी आकार देने का काम किया। अपने पिता के ही शासन के दौरान शेख हसीना ने ईडन कॉलेज में उपाध्यक्ष पद का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। उन्होंने पिता की ही पार्टी में छात्र इकाई का जिम्मा भी संभाला।


1975 में छोड़ा देश, लौटीं तो रच दिया इतिहास

शेख हसीना को 1975 में पिता मुजीब-उर-रहमान और अपने परिवार की हत्या की घटना के बाद बांग्लादेश छोड़कर भागना पड़ा था। कई सालों तक देश से बाहर रहने के बाद आखिरकार वह 1980 के दशक में एक बार फिर बांग्लादेश लौटीं और यहां की राजनीति में अपना कदम रखा।

शेख हसीना पर अपने पिता का कितना असर रहा, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने बांग्लादेश में अपने राजनीतिक दल का नाम भी आवामी लीग ही रखा। वे 1981 में पार्टी की अध्यक्ष बनीं और विपक्ष की नेता के तौर पर शुरुआत की। राजनीति में उनकी यही लड़ाई रंग लाई और आखिरकार 1996 में वे पहली बार बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बनीं। उनके पहले कार्यकाल को देश के लिए जबरदस्त सुधारों वाला समय माना जाता है। इस दौरान ही देश में आर्थिक उदारवाद का उदय हुआ। बांग्लादेश में जबरदस्त विदेशी निवेश आया और लोगों के रहन-सहन में भी सुधार हुआ।


हसीना की इस योजना ने उन्हें काफी आगे बढ़ाया

शेख हसीना के नेतृत्व में देश दुनियाभर में कपड़ा उद्योग में अहम केंद्र बन गया। हसीना का शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी काफी जोर रहा। उनकी स्कूल के बच्चों को मुफ्त किताबें मुहैया कराने की योजना ने उन्हें काफी आगे बढ़ाया। हालांकि, इन उपलब्धियों के बावजूद हसीना का कार्यकाल भी विवादों से दूर नहीं रहा। उनके प्रशासन को न्यायपालिका के साथ टकराव के लिए जाना गया। शेख हसीना पर न्यायलयों की स्वतंत्रता और स्वायत्ता के साथ खिलवाड़ करने के भी आरोप लगे। यही नहीं इसके लिए कई देशों ने भी उनकी आलोचना की। दूसरी तरफ विपक्षी दलों ने भी हसीना पर तानाशाही के आरोप लगाए। आखिरकार 2001 में उन्हें विपक्षी पार्टी और विरोधी खालिदा जिया के हाथों पराजय का सामना करना पड़ा।


2006-08 का राजनीतिक संकट और सेना का दखल

2024 में शेख हसीना के साथ जो घटनाक्रम हो रहा है, वह कोई आज नया नहीं है। कुछ ऐसा ही 2006 में भी हुआ था, जब अक्टूबर में अचानक ही सत्ता पर काबिज बांग्लादेशी नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की सरकार चुनाव का एलान करने के बाद कार्यवाहक शासन की तरफ चली गई थी। इस दौरान शेख हसीना सरकार ने बीएनपी सरकार पर बांग्लादेश के चीफ जस्टिस की सेवानिवृत्ति की उम्र को असंवैधानिक तरीके से बढ़ाने का आरोप लगाया था। इस घटनाक्रम ने देखते ही देखते हिंसक रूप ले लिया और आवामी लीग के नेतृत्व में पूरे देश में जबरदस्त प्रदर्शन हुए। हालांकि, बाद में सेना ने 2007 में कार्यवाहक सरकार का समर्थन किया। हालांकि, इससे स्थिति और बिगड़ गई और आलम यह हुआ कि कार्यवाहक सरकार ने शेख हसीना को एक दौरे के बाद देश लौटने से भी रोक दिया। बाद में मानवाधिकार संगठनों की तरफ से पूरे घटनाक्रम की आलोचना और अलग-अलग देशों के दबाव के कारण हसीना को लौटने की अनुमति मिली। लेकिन पूरा विवाद यहीं खत्म नहीं हुआ। लौटने के बाद शेख हसीना को भ्रष्टाचार के आरोप में जेल भेज दिया गया।


और फिर सत्ता में हुई वापसी

बांग्लादेश में 90 दिन के अपने तय समय से ज्यादा शासन करने के बाद आखिरकार सेना द्वारा स्थापित कार्यवाहक सरकार ने देश में चुनाव कराने का निर्णय लिया। 29 दिसंबर 2008 को हुए चुनाव में आवामी लीग और उसकी साथी पार्टियों के गठबंधन ने दो-तिहाई सीटों पर शानदार जीत दर्ज की। वहीं, इससे पहले 2006 तक सत्ता में रही बीएनपी और जमात-ए-इस्लामी को विपक्ष में बैठना पड़ा। 2009 में शेख हसीना एक बार फिर बांग्लादेश की प्रधानमंत्री के तौर पर लौटीं।


15 साल का बेरोकटोक शासन

यहां सबसे बड़ी बात यह है कि इस पूरे घटनाक्रम के बाद से ही शेख हसीना तीन कार्यकाल में कुल मिलाकर 15 साल बांग्लादेश पर शासन कर चुकी हैं। हालांकि, उनकी जीत को लेकर विपक्ष ने कई बार चुनावी प्रक्रिया में गड़बड़ी और राजनीतिक दलों के साथ-साथ स्वतंत्र संस्थाओं को धमकाने के भी आरोप लगाए हैं। आलोचकों ने शेख हसीना सरकार में विपक्ष को दबाने के प्रयासों की भी शिकायत की है। हालांकि, उनके समर्थकों ने बांग्लादेश में जारी विकास कार्यों और आर्थिक सुधारों की बदौलत उनकी छवि को प्रगतिशील करार देना जारी रखा।


दो बार जानलेवा हमलों से भी बच चुकी हैं

शेख हसीना दो बार जानलेवा हमलों से भी बच चुकी हैं। इनमें पहला हमला उन पर 1975 में हुआ था, जब उनके पिता मुजीब के साथ उनके पूरे परिवार की हत्या हो गई थी। संयोग से शेख हसीना देश से बाहर होने के कारण से बच गई थीं। हालांकि, उन पर दूसरा हमला सीधा हुआ था। 2004 में उन पर ग्रेनेड फेंका गया था, जिसमें वह बुरी तरह जख्मी हो गई थीं। इस हमले में दो दर्जन से ज्यादा लोगों की जान गई। हालांकि, शेख हसीना इस हमले में बच गईं।

Shalini Rai

Shalini Rai

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