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जर्मनी में खतरनाक रूप से बढ़ रहे हैं सलाफी

seema
Published on: 26 Oct 2018 12:30 PM IST
जर्मनी में खतरनाक रूप से बढ़ रहे हैं सलाफी
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जर्मनी में खतरनाक रूप से बढ़ रहे हैं सलाफी

बर्लिन। 'मेरे साथ दोहराओ', सलाफियों का प्रचार करने वाला पिएरे फोगल माइक पकड़े ये कह रहा है। वह है तो जर्मन लेकिन अब सलाफी बन चुका है। जर्मन शहर ओफनबाख के बाजार में वो लोगों का ध्यान खींच रहा है। ये 2010 का वाकया है पर आज भी यूट्यूब पर इस तरह के वीडियो मिल जाएंगे। 2016 तक इस तरह के दृश्य आम थे। सफेद कुर्ता और ढीला ढाला पायजामा पहने दाढ़ी वाले पुरुष जर्मनी के बाजारों में कुरान बांटा करते थे। ये जर्मन में अनुवादित होते थे और ऐसा अकसर पश्चिमी जर्मनी के शहरों में किया जाता था। इस मुहिम को नाम दिया गया था 'लाइज' यानी झूठ। ये लोग खुलेआम कट्टरपंथी इस्लाम का प्रचार करते थे। तथाकथित 'इस्लाम सेमीनार' में लोगों का धर्मपरिवर्तन किया जाता था। ये अपनी बनाई एक अलग ही दुनिया में जी रहे थे।

अब बाजारों में 'लाइज' के स्टैंड देखने को नहीं मिलते क्योंकि 2016 में जर्मन सरकार ने उस संस्था पर प्रतिबंध लगा दिया जो कुरान बांटने के कार्यक्रम आयोजित करती थी। इस संस्था का नाम था 'डी वारे रेलीगिओन' यानी सच्चा धर्म। जर्मनी की संवैधानिक अदालत ने उस वक्त लिखा था कि यह संस्था ऐसी विचारधारा का प्रतिनिधित्व करती है जो संविधान के मूल्यों के विपरीत है, ये हथियार उठा कर जिहाद करने की वकालत करती है, देश भर में ऐसे लोगों की भर्ती करती है जो जिहादी हैं या फिर जिहाद से प्रेरित हो कर सीरिया और इराक जाना चाहते हैं।

आज ये कट्टरपंथी सलाफी खुलेआम तो कहीं नहीं दिखते लेकिन ये गायब भी नहीं हुए हैं। कट्टरपंथ के खिलाफ काम करने वाली जर्मन संस्था 'हयात' के कान ओरहोन इस बारे में कहते हैं, 'अब अधिकतर गतिविधियां लोगों की नजरों से छिप कर होती हैं। इंटरनेट में इस संस्था का कोई पता नहीं दिया गया है, सिर्फ एक फोन नंबर ही है। संस्था लोगों की पहचान गुप्त रखने के लिए प्रतिबद्ध है। ओरहोन ऐसे लोगों के साथ काम करते हैं जो सलाफी हैं या कट्टरपंथी जिहादी हैं लेकिन वापस लौटने को तैयार है।

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जर्मन राज्य नॉर्थराइन वेस्टफेलिया के संघीय संवैधानिक न्यायालय के अध्यक्ष बुरखार्ड फ्रायर का कहना है कि सलाफियों को यही सिखाया जाता है कि कैसे प्रचार करना है और नए लोगों को खुद से जोडऩा है। उनका कहना है कि सार्वजनिक रूप से अब भले ही ऐसा ना होता हो लेकिन छिप छिप कर ऐसा अब भी हो रहा है।

जर्मनी के और किसी भी प्रांत में इतने सलाफी नहीं रहते हैं जितने नॉर्थराइन वेस्टफेलिया में। सरकारी आंकड़ों के अनुसार नॉर्थराइन वेस्टफेलिया राज्य में करीब 3000 सलाफी रहते हैं. इनमें से 800 की पहचान हिंसक के रूप में की गई है। इस राज्य में मौजूद सलाफियों में से 12 फीसदी महिलाएं हैं। अगर उन लोगों की बात की जाए जो जिहाद का झंडा लिए सीरिया और इराक जा चुके हैं, तो उनमें महिलाओं की संख्या 28 फीसदी है। इसलिए अब सलाफी महिलाओं और उनके बच्चों पर सरकार नजर बनाए रहती है। पिछले सालों में जर्मनी में जितने भी इस्लाम प्रेरित आतंकी हमले हुए हैं या फिर हमलों की कोशिशें हुई हैं, वो उन्हीं लोगों ने की हैं, जो सलाफियों के संपर्क में आ कर चरमपंथी बने।

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ये जरूर है कि हर सलाफी आतंकवादी नहीं होता लेकिन हर इस्लामी आतंकवादी सलाफी जरूर रहा है। सलाफी विचारधारा इस्लाम की वो शाखा है जो दकियानूसी विचारों को बढ़ावा देती है। इसे मानने वाले कुरान के हर शब्द को ज्यों का त्यों मानते हैं और उनका पूरा ध्यान इसी बात पर होता है कि पैगंबर मोहम्मद और उनके अनुयायी कैसे इस्लाम का पालन किया करते थे। इनमें कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इस्लाम की अपनी व्याख्या के अनुसार निजी जीवन बिताते करते हैं और आध्यात्मिक स्तर पर इसका पालन करते हैं। लेकिन एक बहुत बड़ा तबका ऐसा है जिन्हें राजनीतिक सलाफी कहा जा सकता है, जो एक कट्टरपंथी धार्मिक तंत्र स्थापित करना चाहते हैं।

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महिलाओं के विपरीत पुरुषों पर दोष साबित करना आसान होता है क्योंकि वो लड़ाई में सक्रिय रहे, उन्हें प्रोपेगैंडा वीडियो में देखा जा सकता है, और वो लोग सोशल मीडिया पर अपनी करतूतों का बखान कर चुके होते हैं। जर्मनी की जेलों में चरमपंथी इस्लामियों की तादाद बढ़ती जा रही है। वर्ष 2013 से सीरिया और इराक से लौटे 24 चरमपंथियों पर मुकदमे शुरू किए जा चुके हैं। सुरक्षा की दृष्टि से देखा जाए तो इन लोगों को जेल में रखना एक बड़ा खतरा है। जेल में रहने का मतलब है कि लोग उनसे मिलने आएंगे या उनके मुस्लिम बंधु उन्हें चिठियाँ लिखेंगे। इंटरनेट के जरिए इन लोगों और इनके परिवारों के लिए चंदा भी जमा किया जाता है। कान ओरहोन तो जेलों को सलाफियों की बढ़ती ताकत की सबसे बड़ी वजह मानते हैं।

सलाफियों का गढ़ बॉन

नॉर्थराइन वेस्टफेलिया में सलाफियों के कई गढ़ हैं जिनमें पश्चिमी जर्मनी की पूर्व राजधानी बॉन शामिल है। यहां सलाफी अकसर सुर्खियों में छाए रहते हैं। 2012 में यहां इस्लामियों के प्रदर्शनों ने काफी सुर्खियां बटोरी थीं। 2008 में बॉन के ही दो भाई यासीन और मुनीर चुका पाकिस्तान और अफगानिस्तान के सीमावर्ती इलाके में पहुंचे और वहां से उन्होंने धमकी भरे वीडियो पोस्ट किए जिनमें उन्होंने जर्मनी में आतंकी हमले करने की चेतावनी भी दी। बॉन में ही अबू दुयाना भी रहता है, जो कुरान बांटने वाली मुहिम लाइज की स्थापना करने वाले दो व्यक्तियों में से एक है। बॉन में ही इस मुहिम के 'स्टार ' लोगों को आकर्षित करते रहे हैं, जैसे कि लाल बालों वाला पूर्व जर्मन बॉक्सर पिएरे फोगल, जो धर्म बदल कर सलाफी बन गया। पिएरे फोगल अब यूट्यूब और फेसबुक पर धर्म का प्रचार करता है। वैसे बॉन में हर 10वां व्यक्ति मुस्लिम है।

बुरखार्ड फ्रायर के अनुसार 2003-2004 की तुलना में, जब जर्मनी में सलाफीवाद की शुरुआत हुई थी, अब काफी कुछ बदल चुका है. उस वक्त सिर्फ जर्मन भाषी लोगों को निशाना बनाया जाता था। वह कहते हैं कि शुरुआत बतौर मिशनरी इस विचारधारा के प्रचार के साथ हुई थी। तब इस प्रचार में हिस्सा लेने वाले अधिकतर लोग धर्म के लिहाज से 'अनपढ़' थे। वक्त के साथ साथ यह मोर्चा हिंसक होता गया, और हद तब हो गई जब लोगों ने सीरिया जाना शुरू कर दिया। उनका लक्ष्य सिर्फ हमारे लोकतंत्र को बदलना ही नहीं था, बल्कि मध्य पूर्व में खिलाफत की स्थापना करना भी था।

फ्रायर का कहना है कि इस्लामिक स्टेट के खात्मे के साथ एक और बदलाव हुआ है, इस बीच पूरे पूरे परिवार सलाफी विचारधारा वाले हो गए हैं। इन्हें ना ही किसी खिलाफत की जरूरत है और ना बाहर से किसी सीख की। इसका नतीजा यह है कि देश में चरमपंथ बढ़ रहा है। (डीडब्लू)



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सीमा शर्मा लगभग ०६ वर्षों से डिजाइनिंग वर्क कर रही हैं। प्रिटिंग प्रेस में २ वर्ष का अनुभव। 'निष्पक्ष प्रतिदिनÓ हिन्दी दैनिक में दो साल पेज मेकिंग का कार्य किया। श्रीटाइम्स में साप्ताहिक मैगजीन में डिजाइन के पद पर दो साल तक कार्य किया। इसके अलावा जॉब वर्क का अनुभव है।

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