×

Hajj Me Bhagdad: 2004 में हुई सऊदी अरब में भगदड़, जिसमें 250 लोगों की हुई मौत

Hajj Yatra Me Bhagdad: फरवरी के महीने में दुनियाभर से करीब 20 लाख लोग हज यात्रा करने सऊदी अरब पहुंचे हुए थे। इस दौरान एक दर्दनाक घटना घटी, जिसमें 250 से अधिक हज यात्रियों की मौत हो गई।

Akshita Pidiha
Written By Akshita Pidiha
Published on: 2 Feb 2025 11:48 AM IST
Hajj Me Bhagdad: 01 फरवरी, 2004 में हुई सऊदी अरब में भगदड़, जिसमें 250 लोगों की हुई मौत
X

Hajj Me Bhagdad (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Hajj Yatra Stampede 2004: 1 फरवरी, 2004 को सऊदी अरब (Saudi Arabia) में हज यात्रा (Hajj Yatra) के दौरान एक दर्दनाक घटना घटी, जिसमें 250 से अधिक हज यात्रियों की मौत (Pilgrims Death) हो गई और 244 से अधिक लोग घायल हो गए। यह भगदड़ मक्का के मीना क्षेत्र में हुई, जहाँ जुमरात पुल पर शैतान को कंकड़ मारने की रस्म (रमी अल-जमरात) अदा की जा रही थी। हर साल लाखों श्रद्धालु इस रस्म को पूरा करने के लिए यहाँ एकत्र होते हैं। लेकिन इस बार की भीड़ विनाशकारी साबित हुई।

घटना का विवरण (2004 Hajj Stampede Full Story In Hindi)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

यह घटना हज यात्रा के अंतिम चरण में हुई, जब लाखों श्रद्धालु मीना में इकट्ठा होकर रमी अल-जमरात की रस्म अदा कर रहे थे। यह रस्म इस्लामिक मान्यता के अनुसार, शैतान को कंकड़ मारकर उसकी बुराइयों से मुक्ति पाने का प्रतीक मानी जाती है।

फरवरी के महीने में दुनियाभर से करीब 20 लाख लोग हज यात्रा करने सऊदी अरब पहुंचे हुए थे। इस दौरान हज यात्रियों की भीड़ मक्का के पास स्थित मीना में जमारात पुल के पास शैतान को पत्थर मारने की रस्म को अदा करने के लिए इकट्ठा हो रही थी। हजारों की संख्या में हज यात्रियों की भीड़ 15 मीटर चौड़े पुल से गुजर रही थी। यह पुल मीना की दो क्लिफ के बीच में स्थित है। पास पहुंचने पर लोगों ने शैतान के रूप में बनाए गए पिलर्स को पत्थर मारना शुरू किया। इसी दौरान लगभग 400 मीटर की दूरी तक लोगों की भीड़ एक-तरफ बढ़ने लगी। जैसे-जैसे श्रद्धालु आगे बढ़ रहे थे, पुल के संकरे मार्ग में भीड़ इतनी ज्यादा हो गई कि वहाँ से निकलने का कोई रास्ता नहीं बचा। अचानक संतुलन बिगड़ने और घबराहट के कारण भगदड़ मच गई।

कई लोग गिर गए और भारी भीड़ के दबाव में कुचलने से उनकी मौत हो गई। जुमरात पुल पर स्थिति इतनी भयावह थी कि बचाव कार्य करने में भी कठिनाई हो रही थी। कई घायल लोग तत्काल चिकित्सा सहायता न मिलने के कारण भी मारे गए।

भगदड़ के मुख्य कारण (2004 Mina Stampede Reasons)

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

अत्यधिक भीड़– हज यात्रा में हर साल लाखों लोग शामिल होते हैं। लेकिन 2004 में भीड़ का स्तर अनुमान से कहीं अधिक था।

संकीर्ण पुल और मार्ग– जुमरात पुल अपेक्षाकृत संकीर्ण था, जिससे बड़ी संख्या में लोगों का एक साथ गुजरना मुश्किल हो गया।

घबराहट और अफवाहें– जब श्रद्धालु तेजी से कंकड़ मारने के लिए बढ़ रहे थे, तभी किसी ने भीड़ में धक्का-मुक्की शुरू कर दी, जिससे भगदड़ मच गई।

अव्यवस्थित प्रबंधन– प्रशासन द्वारा पर्याप्त सुरक्षा इंतजाम नहीं किए गए थे, जिससे स्थिति को संभालना मुश्किल हो गया।

रास्तों का अभाव– भगदड़ के दौरान लोगों के पास बाहर निकलने का कोई वैकल्पिक मार्ग नहीं था, जिससे हालात और खराब हो गए।

घटना के बाद का प्रभाव (Hajj Yatra Bhagdad Ke Prabhav)

इस घटना ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया। सऊदी सरकार ने तुरंत राहत और बचाव कार्य शुरू किए और घायलों को अस्पतालों में भर्ती कराया गया। इस त्रासदी के बाद हज प्रबंधन पर गंभीर सवाल उठने लगे। सरकार ने कई बड़े सुधारों की घोषणा की।

शैतान पर पत्थर मारने का कारण

(फोटो साभार- सोशल मीडिया)

मीना में शैतान को पत्थर मारने की रस्म (रमी अल-जमरात) इस्लामिक परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह रस्म हज के अनुष्ठानों में से एक है। इसे हजरत इब्राहिम (अ.स.) से जोड़ा जाता है। इस रस्म के पीछे धार्मिक मान्यता यह है कि जब हजरत इब्राहिम (अ.स.) को अल्लाह के आदेश पर अपने बेटे हजरत इस्माइल (अ.स.) की कुर्बानी देने का निर्देश मिला, तब शैतान ने उन्हें बहकाने की कोशिश की। लेकिन हजरत इब्राहिम (अ.स.) ने उस पर कंकड़ मारकर उसे भगाया। इसी घटना की याद में हज यात्री मीना में तीन खंभों (जमरात) पर पत्थर मारते हैं, जो प्रतीकात्मक रूप से शैतान का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस रस्म का उद्देश्य बुराई और पापों से दूर रहने तथा अल्लाह के प्रति पूर्ण समर्पण का संदेश देना है।

प्रतिक्रियाएँ और सुधारात्मक कदम

सुरक्षा व्यवस्था में सुधार– हज सुरक्षा को लेकर सऊदी सरकार ने नई योजनाएँ लागू कीं।

जुमरात पुल का विस्तार– भीड़ प्रबंधन के लिए इस पुल का विस्तार किया गया और कई निकासी मार्ग बनाए गए।

इलेक्ट्रॉनिक ट्रैकिंग सिस्टम– हज यात्रियों की संख्या को नियंत्रित करने और निगरानी रखने के लिए आधुनिक तकनीकों को अपनाया गया।

समय विभाजन– अलग-अलग देशों के हज यात्रियों को समय-सीमा में विभाजित करके भीड़ को नियंत्रित किया जाने लगा।

सख्त प्रशासनिक कदम– हज के दौरान भीड़ प्रबंधन के लिए पुलिस और स्वयंसेवकों की संख्या बढ़ाई गई।

1 फरवरी, 2004 की यह घटना हज इतिहास की सबसे भयावह त्रासदियों (Worst Tragedies In World) में से एक थी। इसने यह साबित कर दिया कि विशाल धार्मिक आयोजनों के दौरान बेहतर योजना और भीड़ प्रबंधन कितना आवश्यक है। इस त्रासदी के बाद किए गए सुधारों ने भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।हालांकि, हज यात्रा आज भी लाखों श्रद्धालुओं के लिए एक पवित्र और महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान बना हुआ है, लेकिन इस घटना ने यह सबक सिखाया कि सुरक्षा उपायों को कभी भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

धक्का-मुक्की बढ़ने से कुछ लोग कुचलकर मारे गए, जबकि जो लोग अभी भी पुल के किनारे खड़े थे, वे धक्का लगने से नीचे गिर गए। उनकी जान चली गई। हालात इस कदर बेकाबू हो चुके थे कि लोगों को शांत करना मुश्किल हो गया। यह पूरा घटनाक्रम 27 मिनट तक चला और तब तक 244 लोग अपनी जान से हाथ धो चुके थे।

हालाँकि, हज यात्रा आज भी लाखों श्रद्धालुओं के लिए एक पवित्र और महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान बना हुआ है। लेकिन इस घटना ने यह सबक सिखाया कि सुरक्षा उपायों को कभी भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।



Shreya

Shreya

Next Story