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फांसी के साल भर बाद जुर्म से बरी
इस्लामाबाद : पाकिस्तान में न्यायपालिका किस तरह काम करती हैं इसका एक मंजर देखिए : मध्य पाकिस्तान के एक गांव के निवासी गुलाम कादिर (37)की बेटी सलमा को बंदूक की नोक पर अगवा कर लिया जाता है। पेशे से बिजली मिस्त्री कादिर ने अपने एक ग्राहक सैन्य अफसर से मदद मांगी जिसके बाद उसकी बेटी अपहर्ता के चंगुल से आजाद हो पाती है। सलमा ने बताया कि अकमल नामक व्यक्ति ने उसका अपहरण किया था और उसके साथ रेप भी किया गया। कादिर केस दर्ज कराने के लिए पुलिस के चक्कर लगाता है लेकिन पुलिस कोई मदद नहीं करती।
एक रात कादिर के पास फोन आता है। कॉल करने वाला कहता है - 'हमसे आ कर मिलो, हम सब कुछ सुलझा देंगे।'
गुलाम कादिर अपहर्ता अकमल और उसके पिता के पास मामला सुलझाने के लिए जाता है। अकमल के पिता अब्दुल कादिर और गुलाम कादिर दो प्रतिद्वंद्वी परिवारों से हैं।
गुलाम कादिर के परिवावरवालों के अनुसार, कादिर को बांध कर पीटा गया। उसे धमकी दी गई कि वो पुलिस व अधिकारियों के पास जाना बंद कर दे। मामला बढऩे पर कादिर के परिवारवाले मौके पर पहुंचते हैं, दोनों ओर से गोलियां चलतीं हैं और तीन लोगों - अकमल, अब्दुल कादिर और सलमा की मौत हो जाती है।
पुलिस कादिर, उसके भाई गुलाम सरवर और 6 अन्य को मर्डर के आरोप में गिरफ्तार कर लेती है। अदालत दोनों भाइयों को 2005 में फांसी की सजा सुनाती है। बाकी लोग रिहा कर दिए जाते हैं। दस साल तक दोनों भाई जेल में पड़े रहते हैं, अपनी बेकसूरी की दुहाई देते अपीलें करते रहते हैं।
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अंतत: 6 अक्टूबर 2016 को सुप्रीम कोर्ट ऐलान करता है कि न्याय नहीं हुआ था और दोनों भाईयों को अपराधी घोषित करने के मुकम्मल सबूत नहीं थे। कोर्ट कहता है कि दोनों को बरी किया जाता है, वो आजाद हैं। लेकिन, दोनों भाई तो इस दुनिया से साल भर पहले ही आजाद हो चुके हैं। 13 अक्टूबर 2015 को दोनों को फांसी पर लटकाया जा चुका है!
फांसी का इंतजार कर रहे 4688 बंदी
2014 में पेशावर के एक स्कूल में हुए हमले के बाद पाकिस्तान ने देश में फांसी की सजा पर लगा प्रतिबंध हटा दिया था। इस हमले में 140 बच्चे मारे गए थे। उसके बाद से देश में496 बंदियों को फांसी पर लटकाया जा चुका है। जबकि जेलों में बंद4688 बंदी फांसी का इंतजार कर रहे हैं। आंकड़ों के अनुसार विश्व में सजा-ए-मौत पाया हर चौथा कैदी पाकिस्तानी है। हर आठवीं फांसी पाकिस्तान में होती है।
पाकिस्तान में 27 तरह के अपराधों की सजा फांसी है। इनमें हाईजैकिंग, रेप, ईशनिंदा, ड्रग्स का धंधा शामिल हैं। 2017 में ही पाकिस्तान में 200 से ज्यादा लोगों को सजा-ए-मौत सुनाई गई।
पाकिस्तान की न्यायिक प्रक्रिया हमेशा से सवालों के घेरे में रही है। लंबित मामलों के पहाड़ और अप्रशिक्षित अभियोजकों के चलते सही व निष्पक्ष सुनवाई न होने के मामले बढ़ते जा रहे हैं।
गुलाम कादिर का भतीजा 48 वर्षीय मोहम्मद असलम कहते हैं - 'पेशावर हमले के बाद लग रहा है कोर्ट सभी को फांसी पर लटकाने पर उतारू हैं। इस देश में गरीबों के लिए कोई न्याय नहीं है, हो सकता है अमीरों के लिए होता हो।
गिरफ्तारी के साथ ही शुरू हो जाती हैं समस्याएं
पाकिस्तान में पुलिस बर्बरता और निर्दयता से जुर्म कबूल करवाती है। किसी आपराधिक केस में अन्य तरह के सबूत एकत्र करने की बजाए आरोपित से जुर्म कबूलवाने पर ही सबसे ज्यादा जोर रहता है। इसके बाद ऐसे आरोपित जो वकील करने की हैसियत नहीं रखते उन्हें कोर्ट से ऐसे वकील मिलते हैं जो न कभी आरोपित से मिलने जेल जाते हैं और न किसी सबूत को किठ्ठïा करते हैं। जेल में बंद आरोपित से कौन मिल सकता है इस बारे में आज भी पाकिस्तान में 1940 वाले नियम फॉलो किए जा रहे हैं। सोशल मीडिया के इस दौर में जनता का नजरिया इस कदर बदल गया है कि 'जुर्म साबित न होने ता निर्दोष' - यह बेसिक सिद्धांत गौण हो गया है। बहरहाल, पाकिस्तान के अलावा यूरोप व अन्य देशों में बसे एक्टिविस्ट्स पाकिस्तान की न्याय प्रक्रिया बदलने के लिए आवाजें उठा तो रहे हैं लेकिन कहीं किसी बदलाव की कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही।