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पाकिस्तान: सदियों पुराने मंदिर में आग लगाने वाले मुस्लिमों को हिंदू करेंगे माफ

बीते साल 30 दिसंबर को भीड़ ने मंदिर और पास स्थित 'समाधि' स्थल में तोड़फोड़ के बाद आग लगी दी थी। इस भीड़ की अगुवाई कुछ स्थानीय मौलवियों और कट्टरपंथी इस्लामवादी पार्टी जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम ने की थी।

Newstrack
Published on: 14 March 2021 9:09 PM IST
पाकिस्तान: सदियों पुराने मंदिर में आग लगाने वाले मुस्लिमों को हिंदू करेंगे माफ
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हिंदू समुदाय ने दरियादिली दिखाते हुए पुराने मंदिर को तोड़ने और आग लगाने वाली भीड़ को माफ करने का निर्णय लिया है।

नई दिल्ली: पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में मुस्लिमों की भीड़ ने एक सदी पुराने मंदिर को तोड़ दिया और उसमें लगा दी थी। अब हिंदू समुदाय ने दरियादिली दिखाते हुए पुराने मंदिर को तोड़ने और आग लगाने वाली भीड़ को माफ करने का निर्णय लिया है। इस विवाद को खत्म करने के लिए स्थानीय मौलवियों और हिंदू समुदाय के बीच शनिवार को बैठक हुई थी। आपोरियों ने मंदिर पर हुए इस हमले और 1997 में हुई ऐसी ही एक और घटना के लिए माफी मांगी है।

दोनों पक्षों में सहमति के बाद हिंदू समुदाय ने आरोपियों की माफी देने का निर्णय लिया है। बैठक में शामिल मौलवियों ने देश के संविधान के मुताबिक, हिंदुओं और उनके अधिकारों को पूर्ण सुरक्षा का आश्वासन दिया है। अब आरोपियों को रिहा कराने के लिए बैठक में हुई सुलह को सुप्रीम कोर्ट में पेश किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट में सुलह बयान को दर्ज कराया जाएगा।

जानिए क्या है पूरा मामला

बीते साल 30 दिसंबर को भीड़ ने मंदिर और पास स्थित 'समाधि' स्थल में तोड़फोड़ के बाद आग लगी दी थी। इस भीड़ की अगुवाई कुछ स्थानीय मौलवियों और कट्टरपंथी इस्लामवादी पार्टी जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम ने की थी। यह घटना खैबर पख्तूनख्वा के करक जिले के टेरी गांव में घटी थी। मामले में करीब 50 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था।

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भीड़ ने हिंदू संत श्री परम हंस जी महाराज की ऐतिहासिक समाधि को तोड़ दिया था। पुलिस ने कहा था कि भीड़ इस बात से नाराज थी कि एक हिंदू नेता घर बनवा रहे थे और वो घर इस समाधि से सटा हुआ था। पुलिस अधिकारी का कहना है कि उस इलाके में कोई हिंदू आबादी नहीं रहती है। स्थानीय लोगों की नाराजगी इस बात से थी कि जिस जगह पर यह निर्माण कार्य किया जा रहा था वो उसे इस समाधि स्थल का ही हिस्सा मानते थे।

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हिंदू संत श्री परम हंस जी महाराज की समाधि पर पहले भी विवाद हुआ था। इस इलाके के कट्टरपंथी शुरू से ही इस समाधि स्थल का विरोध करते रहे थे। साल 1997 में इस समाधि पर पहली बार स्थानीय भीड़ ने हमला किया था। लेकिन बाद पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद खैबर पख्तूनख्वा की प्रांतीय सरकार ने इसका पुनर्निमाण कराया था।

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