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Hindu Identity In Danger: हिन्दू संघर्ष समिति ने श्रीलंका में दमन का किया विरोध, शिव मंदिर की जगह बना रहे बौद्ध विहार

Hindu Identity In Danger: हिन्दू संघर्ष समिति श्रीलंका में हिन्दू पहचान को समाप्त करने व मुग़ल साम्राज्य की भाँति मंदिरों पर बौद्ध पहचान थोपने की कड़ी निंदा करती है ।

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Newstrack Network
Published on: 26 Sept 2022 3:48 PM IST
Hindu Sangharsh Samiti opposes suppression of Hindu culture in Sri Lanka, identity of Hindu symbols in danger
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हिन्दू संघर्ष समिति ने श्रीलंका में हिन्दू संस्कृति के दमन का किया विरोध: Photo- Newstrack

Lucknow: हिन्दू संघर्ष समिति श्रीलंका (Sri Lanka) में हिन्दू पहचान को समाप्त करने व मुग़ल साम्राज्य की भाँति मंदिरों का अतिक्रमण कर उन पर बौद्ध पहचान थोपने की कड़ी निंदा करती है । श्रीलंका में चल रहे सांस्कृतिक नरसंहार से वहाँ हिन्दू प्रतीकों व मानहिंदुओं की पहचान ख़तरे में है। चीन के क़र्ज़ जाल में फँस कर अपने इतिहास के उच्चतम आर्थिक संकट में फँसा श्रीलंका (Sri Lanka in financial crisis) अब अल्पसंख्यकों के दमन के लिये चीन के नक़्शे कदम पर चल पड़ा है । वहॉं की उग्र व सम्प्रदायिक पूर्वाग्रह से ग्रसित बौध्द धार्मिक नेतृत्व ने हिन्दुओं की संस्कृतिक पहचान को ख़त्म कर उनके मंदिरों व अन्य ऐतिहासिक महत्व के स्थानों पर अतिक्रमण (Encroachment of Hindu Temples)कर उनकी हिन्दू पहचान पर सिंहली बौध्द चरित्र थोपना शुरू कर दिया है ।

हैरानी की बात ये है कि कई स्थानों पर माननीय न्यायालय द्वारा हिन्दू धर्मस्थानो के मूल चरित्र को बिगाड़ने पर ऐसे तत्वों व सरकार को फटकार लगाई है । कई मामले में न्यायालय के आदेश के बावजूद उसे अनसुना कर उसके विरोध में सेना के सहयोग से बौध्द महंत व पुजारी हिन्दू समाज के ऐतिहासिक,सॉंस्कृतिक व धार्मिक स्थलों का मूल स्वरूप बिगाड़कर उस पर ज़बरदस्ती बौद्ध स्तूप और बौद्ध उपासना स्थल बना रहे है । वो साफ़ तौर पर क़ानून को ठेंगे पर रखकर व न्यायालय की साफ़ तौर पर अवमानना करते समांतर सरकार ( state with in state ) के तौर पर बर्ताव कर रहे है ।

ज़ख़्मों को कुरेद कर उस पर नमक छिड़कने का हो रहा काम

संघर्ष समिति ने कहा ये स्पष्ट रूप से श्रीलंका के तमिल हिन्दुओं के मानवाधिकार व धार्मिक स्वतंत्रता पर लाक्षित सांप्रदायिक हमला है और अब भी अगर इस सॉंस्कृतिक नरसंहार को राज्य प्रायोजित आतंक ना कहा जाये तो क्या कहा जाये । ये बार बार तमिल हिन्दुओं के ज़ख़्मों को कुरेद कर उस पर नमक छिड़कने के समान है ।

श्रीलंका में तमिल हिंदुओं को वर्तमान में एक प्राचीन हिंदू मंदिर के स्थान पर उत्तर-पूर्वी प्रांत मुल्लातिवु में एक बौद्ध विहार के निर्माण को लेकर तनावपूर्ण स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। इससे समस्त द्वीप निवासी हिन्दुओं में एक तीव्र रोष है ।

संघर्ष समिति ने स्पष्ट किया श्रीलंका में 2009 में गृहयुद्ध की समाप्ति के बाद से, कट्टरपंथी बौद्ध भिक्षुओं द्वारा समर्थित श्रीलंकाई सरकार ने पुराने हिंदू मंदिरों के स्थलों पर बौद्ध पूजा स्थलों के निर्माण का एक कार्यक्रम शुरू किया है। ये एक तरह से सुनियोजित सांस्कृतिक नरसंहार है इसके बाद वो तमिल बहुल क्षेत्रों का जनसंख्यकीय स्वरूप बदलने हेतु तमिल हिंदू क्षेत्रों में सिंहली बौद्धों को बसाने के लिए आसपास के खेतों को हासिल करने का प्रयास किया जाता है ताकि वहॉं सिंहली लोगों की कॉलोनी बनाई जा सके ।

हिंदू चरित्र को दबाना और सिंहली बौद्ध चरित्र को थोपना

इसका उद्देश्य श्रीलंका के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के तमिल हिंदू चरित्र को दबाना और सिंहली बौद्ध चरित्र को थोपना है। भारत सरकार के प्रबल आग्रह के बावजूद अभी भी श्रीलंकाई राजनैतिक नेतृत्व वहॉं के तमिलों को मुख्य धारा में लाने के बजाये उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक बनाकर उत्पीडित किया जा रहा है। इससे पूर्व भी राजपक्षे सरकार ने राज्य प्रायोजित सिंहली उपनिवेशवाद को आगे बढ़ाने के लिए पूर्वी प्रांत में पुरातत्व विरासत प्रबंधन के लिए एक राष्ट्रपति कार्य दल नियुक्त किया, जिसमें पूरी तरह से सिंहली परिषद शामिल थी और तमिल हिन्दुओं का प्रतिनिधित्व शून्य था।

ताजा घटना मुल्लातिवु जिले की है, जहां एक 3000 BC पुराना शिव अथि अय्यनार मंदिर कुरुन्थुर-मलाई में एक पहाड़ी पर स्थित था, जहां से आसपास के ग्रामीण इलाकों का सुरम्य दृश्य दिखाई देता था। इस क्षेत्र में 2021 की शुरुआत में, 6 वीं शताब्दी के पल्लव-युग का शिव लिंग खुदाई में निकला था जिससे निःसंदेह इस हिंदू पूजा स्थल की प्राचीनता साबित होती है । इस पौराणिक व धार्मिक महत्व के स्थल पर अतिक्रमण करने व इसका मूल हिन्दू चरित्र व स्वरूप बिगाड़ने हेतु बौद्ध भिक्षुओं, सेना और पुरातत्व विभाग ने पहली बार 2018 में भूमि को हथियाने का प्रयास किया। उन्होंने फरवरी 2021 में वहां हिंदू मंदिर को तोड़ा। जब हिन्दू पक्ष इसके ख़िलाफ़ में गया तो मजिस्ट्रेट कोर्ट ने फैसला सुनाया कि इस जगह के धार्मिक चरित्र में और कोई बदलाव नहीं किया जाना चाहिए।

मंदिर के परिसर में एक बौद्ध स्तूप बनाने का प्रयास जारी

उस फैसले के बावजूद, न्यायालय की साफ़ तौर पर अवमानना करते हुयें उन्होंने मंदिर के परिसर में एक बौद्ध स्तूप बनाने का प्रयास जारी रखा । उनके इस कुत्सित प्रयास में शामिल होकर सरकार ने आसपास के 600 एकड़ कृषि भूमि के अधिग्रहण की योजना की मंशा ज़ाहिर की इस पर स्थानीय तमिल हिंदू आबादी ने जून 2022 में बुद्ध की मूर्ति के निर्माण और स्तूप का निर्माण शुरू होने पर जोरदार विरोध किया।

मजिस्ट्रेट कोर्ट ने जुलाई 2022 में एक आदेश जारी किया कि निर्माण बंद कर दिया जाए और आंशिक रूप से निर्मित स्तूप को हटा दिया जाए। सेना, बौद्ध भिक्षुओं और पुरातत्व विभाग ने सितंबर, 2022 में निर्माण फिर से शुरू किया। यह साफ़ तौर न्यायालय की अवमानना और कानून का उल्लंघन था। दिनोंदिन स्थानीय तमिल हिंदू आबादी का विरोध प्रदर्शन जारी रहा। स्तूप अब लगभग पूरा हो चुका है। अदालत ने मांग की है कि पुरातत्व आयुक्त अक्टूबर में अदालतों को रिपोर्ट करें और बताएं कि उन पर अदालत की अवमानना का आरोप क्यों नहीं लगाया जाना चाहिए। स्थिति तनावपूर्ण है।

अपने शोध में, एक तमिल इतिहासकार, अकादमिक, लेखक और जाफना विश्वविद्यालय के वर्तमान चांसलर प्रोफेसर शिवसुब्रमण्यम पथमनाथन ने निष्कर्ष निकाला कि कुरुन्थुर रिजर्व निश्चित रूप से एक तमिल-हिंदू ऐतिहासिक स्थल है।

शिव को समर्पित थिरुकोनेश्वरम का प्राचीन तीसरी शताब्दी का हिंदू मंदिर

त्रिंकोमाली में इस बीच शिव को समर्पित थिरुकोनेश्वरम का प्राचीन तीसरी शताब्दी का हिंदू मंदिर (द्वीप पर भगवान शिव के पांच प्राचीन मंदिरों में से एक) भी इसी प्रकार बौध्द सांप्रदायिकता की आग में झुलसने जा रहे है ।

इस प्राचीन मंदिर के तमिल और संस्कृत साहित्यिक संदर्भ हैं। ये ऐताहसिक व पौराणिक महत्व रखता है क्योंकि पहले रावण द्वारा यहॉं लगातार पूजा की गई है और लंका विजय के बाद भगवान राम ने भी यहॉं पर भगवान शिव की अर्चना की है ।

बौद्ध मंदिरों का निर्माण किया जा रहा है

यह हिंदू मंदिर एक पहाड़ी पर स्थित है, जहां से आसपास के समुद्र का नजारा दिखता है। 1500 के दशक में पुर्तगालियों द्वारा नष्ट कर दिया गया, तमिल हिंदू आबादी ने आजादी के बाद इसे फिर से बनाया। युद्ध के दौरान, मंदिर और आसपास के क्षेत्रों को एक सैन्य क्षेत्र घोषित किया गया था। सैन्य सहायता के साथ, सिंहली बौद्धों ने युद्ध के दौरान पहाड़ी के दूसरी तरफ बौद्ध मंदिरों का निर्माण किया।

सिंहली बौद्ध दुकानदारों को तत्काल आसपास की भूमि पर स्थायी रूप से बसाने का प्रयास करके सरकार ने अब प्राचीन हिंदू मंदिर परिसर के करीब अतिक्रमण करना शुरू कर दिया है। इसका मकसद एक बार फिर से जगह के हिंदू चरित्र को बदलना है। स्थानीय हिंदू आबादी अशांत है और इन प्रयासों का विरोध कर रही है।



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Shashi kant gautam

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