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इमरान के पास सिर्फ बहादुर शाह बनने का विकल्प | Yogesh Mishra Blog
अनुच्छेद 370 के खात्मे के बाद कश्मीर के लोगों में भले ही प्रतिक्रियाएं इमरान खान की अपेक्षा के अनुरूप न हुई हों। लेकिन वह भी अपनी आर्थिक तंगी के इस दौर में कश्मीर को लेकर जो प्रतिक्रियाएं व्यक्त कर रहे हैं, यह भी अपेक्षा के अनुकूल नहीं है।
हवाई जहाज की हर यात्रा के समय एयर होस्टेस सुरक्षा नियमों की लंबी चौड़ी इबारत पढ़ती है। जिसमें यह बताया जाता है कि आक्सीजन का दबाव कम होने पर आक्सीजन मास्क खुद ब खुद नीचे आ जाएंगे। दूसरे यात्रियों की सहायता करने से पहले अपना मास्क खुद लगा लें। अपने क्रिकेट से लेकर राजनीतिक जीवन तक अनंत बार हवाई यात्राएं कर चुके पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को यह छोटा सा पाठ अब भी समझ में नहीं आ रहा है।
आज जब विपत्तियों का पहाड़ उनके सामने है। दुनिया भर से आर्थिक सहायता की दरकार उन्हें है। आक्सीजन मास्क के रूप में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने उनके सामने सहायता की गाजर लटका रखी है। तब उन्हें भारत के हिस्से का कश्मीर याद आ रहा है! अनुच्छेद 370 के खात्मे के बाद कश्मीर के लोगों में भले ही प्रतिक्रियाएं इमरान खान की अपेक्षा के अनुरूप न हुई हों। लेकिन वह भी अपनी आर्थिक तंगी के इस दौर में कश्मीर को लेकर जो प्रतिक्रियाएं व्यक्त कर रहे हैं, यह भी अपेक्षा के अनुकूल नहीं है।
इतनी समझ तो होनी चाहिए थी
बीते 70 सालों से जनसंघ, जो आज भाजपा है, 370 के खिलाफ बोलती रही है। ऐसे में दूसरी बार प्रचंड बहुमत की सरकार के समय इसके खात्मे की उम्मीद का होना बेमानी नहीं होना चाहिए। इसकी समझ इमरान को भी होनी चाहिए। बावजूद इसके इमरान ने असेम्बली का विशेष अधिवेशन बुलाया। कहा. उनके पास दो ही रास्ते हैं, टीपू सुल्तान बनना या फिर बहादुर शाह जफर बनना। हम हर स्तर पर संघर्ष करेंगे, बदले हालात में अगर जंग हुई तो हम खून के आखिरी कतरे तक लड़ेंगे। भारत में मुसलमान संकट में हैं, दुनिया इस पर चुप है।
भारत का आंतरिक मामला
एक ऐसे समय जब रूस ने इस मुद्दे पर भारत के समर्थन में हाथ बढ़ा दिया हो, संयुक्त राष्ट्र संघ ने पाकिस्तान की पैरवी को खारिज कर दिया हो। जम्मू कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने का फैसला करके भारत ने यह ऐलान कर दिया हो कि कश्मीर भारत का आंतरिक मामला है। संसद में भारत के गृहमंत्री यह साफ कर चुके हों कि जब वह जम्मू कश्मीर की बात करते हैं, तब उसमें पाक अधिकृत कश्मीर भी आता है। इसके लिए वह जान भी दे देंगे।
चीन व तालिबान भी साथ नहीं
चीन की सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी का मुख पत्र ग्लोबल टाइम्स यह लिखता हो कि चीन भारत पाकिस्तान के बीच विवाद में हस्तक्षेप नहीं करेगा। तालिबानी नेताओं ने भी कश्मीर के मसले पर पाकिस्तान की मदद से इनकार कर दिया हो। अगर दुनिया ने खामोशी ओढ़ रखी है तो इसका मतलब भी इमरान खान को समझना चाहिए। इमरान की पार्टी के घोषणा पत्र "द रोड टू न्यू पाकिस्तान" में कश्मीर मुद्दा गायब है। मुस्लिम लीग, पीपीपी और पीटीआई जैसे राजनीतिक दलों के एजेंडे से भी गायब है।
इमरान के पास सिर्फ एक विकल्प
ऐसे में इमरान के सामने विकल्प सिर्फ बहादुरशाह जफर बनने का बचता है। कश्मीर भारत पाक के बीच दो युद्धों का कारण रहा है। दोनों देश परमाणु हथियार संपन्न हैं। कश्मीर में जितनी अशांति रही है, उससे ज्यादा अशांति पाक अधिकृत कश्मीर में है। यह भी सच है कि ऐतिहासिक प्रतिद्वंद्वियों के बीच तनाव हर बार नई ऊंचाइयां छूता है। इस बार भी छुएगा। लेकिन इस तनाव का असर पाकिस्तान पर ज्यादा दिखने वाला है। क्योंकि भारत से द्विपक्षीय व्यापारिक रिश्ते तोड़ते ही वहां टमाटर तीन सौ रुपए किलो हो गया है। दूध 108 रुपये लीटर, केला 130 रुपए दर्जन, सरसों का तेल 246 रुपये लीटर, अदरक और लहसुन 4 सौ और 320 रुपये किलो। कपड़ा और आर्गेनिक केमिकल उद्योग मुंह के बल गिरेंगे। भारतीय सामान चीनी और कोरियाई उत्पादों की तुलना में तीस से पैंतीस फीसदी सस्ता मिलता है।
दोनो देशों के अल्पसंख्यकों की तुलना नहीं
भारत को अभी हाल फिलहाल पाकिस्तान की तरह कटोरा लेकर घूमने की जरूरत नहीं है। मुसलमान भारत में पाकिस्तान ही नहीं दुनिया के किसी भी मुस्लिम देश से अधिक स्वतंत्र है। शेख अब्दुल्ला ने आल जम्मू एंड कश्मीर मुस्लिम कांफ्रेंस के नाम से अपना दल बनाया था, बाद में सेक्युलर दिखने के लिए इसका नाम नेशनल कांफ्रेंस कर दिया। आखिर शेख अब्दुल्ला को यह जरूरत कश्मीर के आवाम के लिए ही तो पड़ी थी। पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की जो हालत है उसकी तुलना भारतीय अल्पसंख्यक समुदायों से नहीं की जा सकती। ये प्रधानमंत्री को छोड़ कर हर बड़ी गद्दी पर काबिज हो चुके हैं। नरेंद्र मोदी की भाजपा में भी इनकी नुमाइंदगी है।
यहां हैं विशेषाधिकार
पिछले ही साल भारत की सबसे बड़ी प्रशासनिक सेवाओं में सबसे अधिक मुस्लिम चुनकर आए हैं। अल्पसंख्यक संस्थानों को विशेषाधिकार हासिल हैं। जिस जम्मू कश्मीर के लिए इमरान घड़ियाली आंसू बहा रहे हों। वह भारत के तमाम विकसित राज्यों से भी विकसित है। वजह यह है कि जम्मू कश्मीर में हर आदमी पर केंद्र सरकार तकरीबन 14 हजार 255 रुपए देती है। जबकि शेष भारत के नागरिकों पर यह धनराशि तीन हजार छह सौ इक्यासी रुपए मात्र बैठती है।
370 का लाभ क्या था
जिस 370 को केंद्र सरकार ने हटाया है उससे आम आदमी का क्या भला होता रहा है यह बात जम्मू कश्मीर में राजनीति करने वाले सियासी दल ही नहीं, संसद में इसका विरोध करने वाले दल भी नहीं बता सके। जम्मू कश्मीर की राजनीति सिर्फ घाटी के नेताओं के हाथ तक ही सीमित क्यों रही। जिस तरह पाकिस्तान स्यापा पीट रहा है, इससे यह साफ है कि 370 खत्म होने से पाकिस्तान के तमाम हितों को भी नुकसान पहुंचा है। पाकिस्तान को आतंकवाद के लिए जमीन मिलनी बंद हो जाएगी। पाकिस्तान में पल रहे आतंकियों को मुंह तोड़ जवाब देने के लिए केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद दिल्ली की सरकार सीधे फैसले ले सकेगी।
प्रसंगवश
एक बार मैं जम्मू कश्मीर की यात्रा पर गया था तब वहां कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस की सरकार थी। हमारे टैक्सी ड्राइवर ने एयरपोर्ट से निकलने के बाद से ही कई आलीशान कोठियां दिखाईं। बताया किसकी हैं। जब अनंतनाग पहुंचे तब उसने कहा कि यह मिनी पाकिस्तान है। साथ ही उसने कहा, अगर छह आठ लोग जम्मू कश्मीर से हटाकर दूसरे राज्यों की जेल में डाल दिये जाएं तो समूचे राज्य में अमन कायम हो जाएगा। जो बात एक ड्राइवर को समझ आ गई थी वह बात हमारी सरकारों को समझने में सत्तर साल लग गए, हम अलगाववादियों से बात करते रहे।
प्रभाव देखने का समय
आज जब जम्मू कश्मीर के लिए एक नई इबारत लिखी गई है तब पाकिस्तान की तरह उसका विरोध करने की जगह, उसके प्रभाव देखने का समय है। इसके लिए भी कुछ साल दिया ही जाना चाहिए, क्योंकि जम्मू कश्मीर में तीस सालों से जो कुछ चल रहा है। उसका भुक्तभोगी समूचा देश रहा है। अब तक उसे देश के 109 कानूनों से काट कर रखा गया था। मुख्यधारा से अलग रखा गया था।
अंत में
एक बार जम्मू-कश्मीर के लोगों को मुख्यधारा के साथ जुड़कर जीने दीजिए, उन्हें एहसास हो जाएगा अंतर क्या है। यह अंतर ही 370 पर लिये गए फैसले को सही साबित करने का पैमाना होगा। जब बड़ी नदी में छोटी नदियां आकर मिलती हैं, तब न केवल धार बड़ी होती है बल्कि हर तरह के प्राणी को जीने का अधिकार मिल जाता है।