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मानवाधिकारों के खिलाफ हैं भारत के नए आईटी नियम- संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट

India's New IT Rules: संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूतों ने भारत सरकार को भेजी रिपोर्ट में नए आईटी नियमों के ख़ास प्रावधानों पर गहरी चिंता जताते हुए इनको वापस लेने या इनपर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani LalPublished By Shreya
Published on: 20 Jun 2021 2:09 PM IST
मानवाधिकारों के खिलाफ हैं भारत के नए आईटी नियम- संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट
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सोशल मीडिया एप्स (कॉन्सेप्ट फोटो साभार- सोशल मीडिया)

India's New IT Rules: संयुक्त राष्ट्र (United Nations) की एक रिपोर्ट में भारत के नए इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी नियमों (New IT Rules) पर गहरी चिंता जताई गयी है और इन नियमों को अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकारों (International Human Rights) के विपरीत बताया है।

संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूतों ने भारत सरकार को भेजी रिपोर्ट में नए आईटी नियमों के ख़ास प्रावधानों पर गहरी चिंता जताते हुए इनको वापस लेने या इनपर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है। ये दूत संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद् द्वारा नियुक्त किये गए हैं। केंद्र सरकार ने सोशल मीडिया मध्यस्थों, ओटीटी स्ट्रीमिंग प्लेटफ़ॉर्म और डिजिटल न्यूज़ मीडिया के रेगुलेशन के लिए नई नियमावली जारी की है। और इस पर खासकर ट्विटर से तनातनी भी जारी है।

क्या है पत्र में

संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूतों ने 11 जून को सरकार को भेजे अपने पत्र में लिखा है कि वर्तमान स्वरूप में आईटी नियम अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार मानदंडों का पालन नहीं करते हैं। आठ पन्ने के इस पत्र को आईरीन खान (विचार एवं अभिव्यक्ति के अधिकार की रक्षा पर विशेष दूत), क्लेमेंट न्यालेत्सोसी (शांतिपूर्ण एकत्रीकरण एवं संगठन के अधिकार पर विशेष दूत) तथा जोसेफ कान्नाताची (निजता के अधिकार पर विशेष दूत) ने लिखा है।

संयुक्त राष्ट्र फ्लैग (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

पत्र में लिखा है कि किसी पोस्ट के मूल लेखक को ढूंढना, मध्यस्थों की जिम्मेदारी और डिजिटल मीडिया पर निगरानी जैसे प्रावधान निजता के अधिकार और अभिव्यक्ति एवं बोलने की आज़ादी के अधिकार का उल्लंघन करते हैं। ये अधिकार नागरिक तथा राजनीतिक अधिकारों सम्बन्धी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिज्ञापत्र में समाहित हैं। यूएन के विशेष दूतों ने लिखा है कि आईटी नियमों में 'फेक न्यूज़', 'गुमराह करना' और 'चोट पहुंचाना' जैसे अस्पष्ट शब्दों का इस्तेमाल किया गया है।

पत्र में कहा गया है कि सरकार को नए नियमों की गहन समीक्षा करनी चाहिए और सभी सम्बन्धित पक्षों के संग विचार विमर्श करना चाहिए। पत्र में लिखा है कि नए नियमों के अनुपालन में मध्यस्थ प्लेटफ़ॉर्म (ट्विटर, फेसबुक आदि) अपनी जवाबदेही से बचने के लिए सरकार के हर आग्रह को मान कर पोस्ट आदि हटाने लगेंगे। अधिकारियों को भी मानवाधिकार उल्लंघन की रिपोर्ट करने वाले पत्रकारों को सेंसर करने का अधिकार मिल जाएगा। नियम में जो सजाएं गिनाई गईं हैं उनसे कंटेंट की रोकथाम को ही बल मिलेगा और इसका गंभीर असर अभिव्यक्ति की आज़ादी पर पड़ेगा।

ये दूत संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद् द्वारा नियुक्त किये गए हैं। और इनका अकाम संप्रभु देशों, लोकतान्त्रिक रूप से चुनी गयी सरकारों और सरकार की नीतियों की निगरानी करना होता है।

सरकार का जवाब

संयुक्त राष्ट्र को सरकार ने अपना जवाब भी भेज दिया है जिसमें कहा गया है कि आईटी नियम सोशल मीडिया के सामान्य यूजर्स के शक्तिकरण के लिए बनाये गए हैं। जवाब में ये भी कहा गया है कि सरकार ने नए नियमों पर 2018 में ही सिविल सोसाइटी और सम्बंधित पक्षों से विचार विमर्श किया था।

जेल में बंद एक्टिविस्ट पर भी लिखा था पत्र

संयुक्त राष्ट्र के एक विशेष दूत ने दिल्ली दंगों के सिलसिले में जेल में बंद एक्टिविस्टों के मामले पर भी चिंता व्यक्त की थी। 'मानवाधिकार रक्षकों की स्थिति' पर यूएन विशेष दूत मैरी लावोर ने कुछ दिन पहले ट्वीट किया था कि सीएए के खिलाफ प्रदर्शन में नताशा नरवाल और देवांगना कलिता को जेल में बंद किया जाना बेहद चिंताजनक है।

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