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पड़ोस से जारी आतंकवाद से निपटने में साथ देगा अमेरिका, हुआ समझौता
वाशिंगटन : अमेरिका के दौरे पर पेंटागन पहुंचे रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और अमेरिकी रक्षा मंत्री एश्टन कार्टर ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण समझौते पर हस्ताक्षर किए। समझौते के बाद पर्रिकर ने कहा कि 'अमेरिका ने भारत के पड़ोस से जारी आतंकवादी गतिविधियों से निपटने में पूरा साथ देने का भी वादा किया है।'
ज्ञात हो कि इस समझौते से दोनों देश रक्षा क्षेत्र में साजो-सामान संबंधी निकट साझेदार बन जाएंगे। इसके तहत दोनों देशों की सेनाएं मरम्मत एवं आपूर्ति के के लिए एक दूसरे के संसाधन और सैनिक अड्डों का इस्तेमाल कर सकेंगी। जाहिर है कि दोनों ही देशों ने इस समझौते को करते हुए चीन की बढ़ती समुद्री ताकत को ध्यान में रखा है।
रक्षा प्रौद्योगिकी एवं व्यापार सहयोग पर जोर
समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद जारी साझा बयान में कहा गया, कि उन्होंने इस महत्व पर जोर दिया कि यह व्यवस्था रक्षा प्रौद्योगिकी एवं व्यापार सहयोग में नए और अत्याधुनिक अवसर प्रदान करेगा। अमेरिका ने भारत के साथ रक्षा व्यापार और प्रौद्योगिकी को साझा करने को निकटम साझेदारों के स्तर तक विस्तार देने पर सहमति जताई है। बयान में कहा गया है कि दोनों देशों के बीच रक्षा संबंध उनके साझा मूल्यों एवं हितों पर आधारित है।
संयुक्त अभियानों में एक-दूसरे की करेंगे मदद
एक सवाल के जवाब में रक्षा मंत्री पर्रिकर ने कहा, इसका सैन्य अड्डा बनाने से कोई लेना-देना नहीं है। मूल रूप से यह एक-दूसरे के बेड़ों को साजो-सामान संबंधी सहयोग उपलब्ध कराने, जैसे ईंधन की आपूर्ति करने से या साझा अभियानों, मानवीय मदद एवं अन्य राहत अभियानों के लिए जरूरी चीजें उपलब्ध कराने से जुड़ा है। उन्होंने कहा, मूल रूप से यह इस बात को सुनिश्चित करेगा कि दोनों नौसेनाएं हमारे संयुक्त अभियानों एवं अभ्यासों में एक-दूसरे के लिए मददगार साबित हो सकें।
एक साथ काम करने को बनाएगा आसान
अमेरिकी रक्षा मंत्री कार्टर ने कहा कि यह हमारे एक साथ काम करने को संभव एवं आसान बनाता है। उन्होंने कहा, इस समक्षौते के तहत हम एक-दूसरे को पूरी तरह से साजो-समान संबंधी पहुंच एवं सुगमता मुहैया कराते हैं। यह किसी भी तरह से सैन्य अडडे स्थापित करने वाला समक्षौता नहीं है। लेकिन यह संयुक्त अभियानों से जुड़े साजो-सामान की आपूर्ति बेहद आसान बनाता है। यह समझौता न सिर्फ जरूरी सहयोग को वित्तीय मदद देने के लिए अतिरिक्त माध्यम उपलब्ध कराता है, बल्कि इसके तहत अलग-अलग मामलों के लिए दोनों देशों की सहमति भी जरूरी है।