×

Inflation: पाकिस्तान से पेरू तक महंगाई का हाहाकार, राजनीतिक अस्थिरता का गहरा ख़तरा

Inflation In World 2022: दैनिक जरूरतों की वस्तुओं और ईंधन की लागत में जबर्दस्त वृद्धि हुई है। इन सबका कम्बीनेशन राजनीतिक अस्थिरता की लहर पैदा कर सकता है।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani LalPublished By Shreya
Published on: 11 April 2022 10:00 AM GMT
Inflation: पाकिस्तान से पेरू तक महंगाई का हाहाकार, राजनीतिक अस्थिरता का गहरा ख़तरा
X

महंगाई (कॉन्सेप्ट फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Inflation In World 2022: दुनिया में इन दिनों तमाम देशों में लोगों में निराशा, हताशा और गुस्सा बढ़ता जा रहा है और इसकी वजह है बेकाबू मुद्रास्फीति और महंगाई। वैश्विक खाद्य कीमतें आसमान पर हैं और लोग सड़कों पर उतर कर आक्रोश व्यक्त कर रहे हैं। श्रीलंका से लेकर बोलीविया और पाकिस्तान से लेकर स्पेन और ग्रीस तक यही हाल है। ढेरों देशों में मची सामाजिक उथलपुथल इस बात को जाहिर करती है कि रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण (Russia Ukraine War) का प्रभाव दुनिया भर में कैसे फैल रहा है, और विभिन्न देशों की सरकारें किस तरह कठिन आर्थिक परिस्थितियों पर जनता के दबाव में हैं।

महामारी, खराब मौसम और जलवायु संकट ने पहले से ही कृषि को प्रभावित किया हुआ है, जिसकी वजह से इस साल की शुरुआत में ही खाद्य पदार्थों के दाम अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गए थे। फिर यूक्रेन में रूस का आक्रमण हुआ जिससे स्थिति और भी खराब हो गई है। नतीजा ये है कि दैनिक जरूरतों की वस्तुओं और ईंधन की लागत में जबर्दस्त वृद्धि हुई है। इन सबका कम्बीनेशन राजनीतिक अस्थिरता (Political Instability) की लहर पैदा कर सकता है, क्योंकि जो लोग पहले से ही सरकारी नेताओं से निराश थे, उन्हें बढ़ती कीमतों ने और आक्रोशित कर दिया है।

इन देशों में महंगाई ने किया बुरा हाल

पिछले कई दिनों से श्रीलंका, पाकिस्तान और पेरू में अशांति कई तरह के जोखिमों को को उजागर करती है। श्रीलंका में गैस और अन्य बुनियादी सामानों की किल्लत को लेकर विरोध प्रदर्शन जारी हैं, पाकिस्तान में दो अंकों की मुद्रास्फीति ने प्रधानमंत्री इमरान खान की सरकार को ही गिरा दिया। ईंधन की बढ़ती कीमतों के कारण पेरू में हाल ही में सरकार विरोधी प्रदर्शनों में कम से कम छह लोगों की मौत हो गई है।

- जापान में मुद्रास्फीति 13 वर्षों से अधिक समय में उच्चतम स्तर पर चढ़ चुकी है जापान के घरेलू खर्च में लगातार दूसरे महीने गिरावट आई है। ब्रिटेन में एक लीटर वनस्पति तेल 1.30 पाउंड प्रति लीटर मिल रहा है, जो साल भर पहले की तुलना में 22 फीसदी ज्यादा है। सूरजमुखी का तेल 1.34 पाउंड प्रति लीटर तक पहुंच गया है। यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से लगभग हर चीज के दाम में भारी इजाफा हुआ है। लेकिन वनस्पती तेल के भाव सबसे ज्यादा चढ़े हैं।

- स्पेन में खाने-पीने की चीजों, बिजली और ईंधन की बढ़ती चली जा रही कीमतों के विरोध में देश के प्रमुख शहरों में हजारों लोग सड़क पर प्रदर्शन कर चुके हैं और जनता सोशलिस्ट प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज़ के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं।

- - ग्रीस में बढ़ती कीमतों और घटती आमदनी के विरोध में पिछले हफ्ते एक दिन की राष्ट्रव्यापी हड़ताल रही। इस हड़ताल का आयोजन ग्रीस की दो सबसे बड़ी ट्रेड यूनियनों ने किया था जिनसे करीब 25 लाख लोग जुड़े हुए हैं।

- ईंधन की बढ़ती कीमतों के विरोध में अल्बानिया में कई दिनों से कई शहरों में हजारों लोग सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं। अल्बानिया में लोगों की आमदनी पहले से ही काफी कम है और जबर्दस्त महंगाई से लोगों का जीना मुहाल हो गया है।

- करीब सवा दो करोड़ लोगों का देश श्रीलंका एक अभूतपूर्व आर्थिक और राजनीतिक संकट से उबल रहा है, प्रदर्शनकारी कर्फ्यू तोड़ कर प्रदर्शन कर रहे हैं और सरकारी मंत्री सामूहिक रूप से पद छोड़ चुके हैं। दरअसल, एक कमजोर अर्थव्यवस्था से जूझते हुए श्रीलंका को विदेशी मुद्रा के अपने भंडार को कम करने के लिए मजबूर होना पड़ा। इसने सरकार को ऊर्जा जैसे प्रमुख आयातों के लिए भुगतान करने से रोका, विनाशकारी कमी पैदा की और लोगों को ईंधन के लिए घंटों लाइन में रहने के लिए मजबूर किया। श्रीलंका के नेताओं ने देश की मुद्रा, श्रीलंकाई रुपये का भी अवमूल्यन किया है, क्योंकि वे अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से मदद पाने के प्रयास में लगे हुए हैं। लेकिन इसने महंगाई की स्थिति को और भी खराब कर दिया है। जनवरी में, यह 14 प्रतिशत तक पहुंच गयी जो कि अमेरिका में मूल्य वृद्धि की दर से लगभग दोगुना थी। श्रीलंका में उपभोक्ता वस्तुओं के दाम 25 फीसदी तक बढ़ चुके हैं।

- पेरू में महंगाई के कारण सामाजिक उथल-पुथल मची हुई है। पेरू में मुद्रास्फीति एक चौथाई सदी में अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है और 2020 की शुरुआत से पहले से ही कोरोनोवायरस महामारी की चपेट में आए इस देश के लोगों पर महंगाई बहुत भारी पड़ रही है। देश भर के गरीब ग्रामीण कस्बों में पेरूवासी कम कीमतों की मांग के लिए सड़कों पर उतर आए हैं, कभी-कभी हिंसक प्रदर्शन भी हो रहे हैं। पेरू ने भी अपने राजमार्गों पर नियंत्रण हासिल करने के लिए सेना को तैनात किया है। ये हाल तब है जब पेरू में पिछले एक साल में महंगाई 7 फीसदी से कम रही है, लेकिन आवश्यक वस्तुओं की कीमतें तेजी से बढ़ी हैं। युद्ध शुरू होने के बाद से वृद्धि तेज हो गई है। पेरू की राष्ट्रीय सांख्यिकी एजेंसी के अनुसार, पिछले एक साल में खाद्य, आवास, ऊर्जा और ईंधन मुद्रास्फीति में 11 फीसदी से अधिक की वृद्धि हुई है। खाद्य तेल और चीनी में क्रमशः 50 फीसदी और 35 फीसदी की वृद्धि हुई है। सरकार ने लागत कम करने के लिए कुछ आपातकालीन उपाय किए हैं, जिसमें पेट्रोल पर अधिकांश करों को माफ करना और गरीब निवासियों को रसोई गैस खरीदने के लिए वाउचर देना शामिल है। सरकार ने न्यूनतम वेतन में भी लगभग 10 फीसदी की वृद्धि की है।

- विशेषज्ञ मध्य पूर्व के अन्य देशों में राजनीतिक संकट के संकेतों पर भी नज़र रख रहे हैं जो काला सागर क्षेत्र से खाद्य आयात पर बहुत अधिक निर्भर हैं, और अक्सर अपनी जनता को उदार सब्सिडी प्रदान करते हैं। अफ्रीका महाद्वीप के कुछ हिस्सों में राजनीतिक अस्थिरता पहले से ही बन रही है। 2021 की शुरुआत के बाद से पश्चिम और मध्य अफ्रीका में कई तख्तापलट हुए हैं।

- लेबनान में, जहां पिछले साल राजनीतिक और आर्थिक पतन के परिणामस्वरूप लगभग तीन-चौथाई आबादी गरीबी में जी रही है स्थिति बिगडती चली जा रही है। लेबना में आयातित गेहूं का 70 प्रतिशत से 80 प्रतिशत के बीच रूस और यूक्रेन से आता है। ये यता बुरी तरह प्रभावित हुआ है।

- दुनिया में गेहूं का सबसे बड़ा खरीदार मिस्र पहले से ही रोटी के लिए अपने विशाल सब्सिडी कार्यक्रम पर भारी दबाव देख रहा है। कीमतों में वृद्धि के बाद देश ने हाल ही में बिना सब्सिडी वाली रोटी के लिए एक निश्चित मूल्य निर्धारित किया है, और इसके बजाय भारत और अर्जेंटीना जैसे देशों से गेहूं के आयात को सुरक्षित करने की कोशिश कर रहा है।

- रेड क्रॉस की अंतर्राष्ट्रीय समिति ने कहा है कि इथियोपिया, सोमालिया, दक्षिण सूडान और बुर्किना फासो जैसे देशों में सूखे और संघर्ष ने महाद्वीप की एक चौथाई से अधिक आबादी के लिए खाद्य सुरक्षा संकट पैदा कर दिया है। आने वाले महीनों में स्थिति और खराब होने का खतरा है।

व्यापक प्रभाव दिखेंगे

विश्लेषकों का कहना है कि लोगों ने अभी तक बढ़ती कीमतों के पूर्ण प्रभाव को महसूस नहीं किया है इसलिए जब ज्यादा लोग प्रभावित होंगे तब और व्यापक प्रभाव देखने को मिलेंगे। ये ठीक उसी तरह है जैसा कि 2010-11 में अरब क्रांति के समय देखा गया था।

सरकार विरोधी प्रदर्शन 2010 के अंत में ट्यूनीशिया में शुरू हुए थे और 2011 में मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में फैल गए थे। उस समय भी खाद्य कीमतें तेजी से चढ़ रही थीं। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन का खाद्य मूल्य सूचकांक 2010 में 106.7 पर पहुंच गया था और 2011 में तो ये बढ़कर 131.9 हो गया, जो एक रिकॉर्ड था। उस समय अलग-अलग देशों में परिस्थितियां अलग-अलग थीं, लेकिन बड़ी समस्या स्पष्ट थी। गेहूं की कीमतों में उछाल इस समस्या का एक प्रमुख हिस्सा था।

गेहूं (कॉन्सेप्ट फोटो साभार- सोशल मीडिया)

आने वाले समय में और बढ़ेगी महंगाई

अब स्थिति पहले से भी ज्यादा खराब है। वैश्विक खाद्य कीमतों ने हाल ही में एक नई रिकॉर्ड ऊंचाई को छुआ है। 9 अप्रैल को प्रकाशित एफएओ खाद्य मूल्य सूचकांक मार्च में 159.3 पर पहुंच गया, जो फरवरी से लगभग 13 प्रतिशत अधिक है। गेहूं, मक्का और वनस्पति तेलों के एक प्रमुख निर्यातक यूक्रेन का युद्ध में फंस जाना, साथ ही गेहूं और फ़र्टिलाइज़र के प्रमुख उत्पादक रूस पर कठोर प्रतिबंध- इनका नतीजा आने वाले महीनों में कीमतों में और बढ़ोतरी के साथ सामने आने की आशंका है।

इंटरनेशनल फंड फॉर एग्रीकल्चर के प्रमुख गिल्बर्ट हौंगबो के अनुसार - यूक्रेन से चालीस प्रतिशत गेहूं और मकई का निर्यात मध्य पूर्व और अफ्रीका में जाता है, जो पहले से ही भूख के मुद्दों से जूझ रहे हैं, और जहां आगे भोजन की कमी या कीमतों में वृद्धि सामाजिक अशांति को भड़का सकती है।

पेट्रोल-डीजल और गैस की कीमतों में उछाल लोगों के दर्द को और बढ़ा रहा है। वैश्विक तेल की कीमतें एक साल पहले की तुलना में लगभग 60 प्रतिशत अधिक हैं। कोयले और प्राकृतिक गैस की कीमत भी बढ़ गई है।

कई सरकारें अपने नागरिकों की रक्षा के लिए संघर्ष कर रही हैं, लेकिन नाजुक अर्थव्यवस्थाएं जिन्होंने 2008 के वित्तीय संकट और कोरोना महामारी के दौर में भारी उधार लिया था, वे सबसे कमजोर स्थिति में हैं। जैसे-जैसे विकास दर धीमी होती है वैसे ही उनकी मुद्राओं को चोट पहुँचना शुरू हो जाता है और नतीजतन ऋण भुगतान को बनाए रखना कठिन हो जाता है। कीमतें चढ़ते जाने से सरकारों के लिए भोजन और ईंधन के लिए सब्सिडी बनाए रखना मुश्किल हो जाता है।

कर्ज में डूबे हुए हैं श्रीलंका-पाकिस्तान

अब ऐसी स्थिति है जहां देश ऋण में डूबे हुए हैं, जैसे कि श्रीलंका और पाकिस्तान। परिणामस्वरूप, उनके पास इस तरह की उच्च कीमतों से उत्पन्न होने वाले तनाव को नियंत्रित करने के लिए कोई बफर नहीं रहता है।

विश्व बैंक के अनुसार, यूक्रेन पर आक्रमण से पहले सबसे गरीब देशों में से लगभग 60 प्रतिशत पहले से ही कर्ज संकट में या इसके गहरे जोखिम में थे।

दोस्तों देश और दुनिया की खबरों को तेजी से जानने लिए बने रहें न्यूजट्रैक के साथ। हमें फेसबुक पर फॉलो करने के लिए @newstrack और ट्विटर पर फॉलो करने के लिए @newstrackmedia पर क्लिक करें।

Shreya

Shreya

Next Story