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बिकाऊ है पृथ्वी के चारों ओर घूम रहा इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन

raghvendra
Published on: 17 Feb 2018 6:52 PM IST
बिकाऊ है पृथ्वी के चारों ओर घूम रहा इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन
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फॉर सेल : पृथ्वी के चारों ओर घूम रहा आईएसएस यानी इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन बिकाऊ है। इसमें आठ लोगों के रहने की जगह है। आप खिडक़ी से बाहर पृथ्वी का शानदार नजारा देख सकते हैं। इसमें एक रिसर्च लैब भी है। कीमत ज्यादा नहीं, बस 3 से 4 बिलियन डॉलर सालाना है।

वाशिंगटन। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नए बजट प्रस्ताव में अमेरिकी स्पेस एजेंसी ‘नासा’ को निर्देश दिया गया है कि वह आईएसएस को छोड़ दे और मंगल ग्रह से आगे जाने के लिए सबसे पहले चन्द्रमा पर फोकस करे। ट्रंप के प्रस्ताव में कहा गया है कि वर्ष 2025 तक आईएसएस की फंडिंग समाप्त कर दी जाएगी। आईएसएस के खर्चे के लिए करदाताओं के धन की जगह निजी फर्मों का पैसा लगाया जाएगा। आईएसएस को कंपनियों के हवाले करने के लिए 150 मिलियन डॉलर खर्च करने का प्रस्ताव है।

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यूं तो नासा और अंतरिक्ष विज्ञानी लंबे समय से आईएसएस के निजीकरण की मांग करते रहे हैं। लेकिन अमेरिकी प्रशासन की ओर से पहली बार ऐसा प्रस्ताव आया है। मंगल ग्रह पर मानव मिशन भेजने की हिमायती लोगों का कहना है कि नासा आईएसएस पर जरूरत से ज्यादा खर्चा कर रहा है। अब अमेरिकी सरकार के हस्तक्षेप के बाद आईएसएस के लिएï एक नया अध्याय शुरू हो सकता है।

निजीकरण का मतलब होगा कि कंपनियां अंतरिक्ष में नए मैटेरियल डेवलेप कर सकेंगी, नयी दवाओं का परीक्षण वहां हो सकेगा या फिर अमीर पर्यटकों के लिए नया ठिकाना बन जाएगा। टेक्सास स्थित स्पेस कंपनी ‘नैनोरैक्स’ के सीईओ जेफरी मैनबर का कहना है कि आईएसएस को बेचने की बजाए इसे कई हिस्सों में बांट देना चाहिए। एक हिस्से में अंतरिक्ष होटल बने जबकि एक हिस्सा मैन्यूफैक्चरिंग कार्यों के लिए रखा जाए।

बहरहाल, आईएसएस को बेचने या उसके निजीकरण में कई अन्य पक्षों को भी ध्यान में रखना होगा। अंतरिक्ष स्टेशन असल में संयुक्त राष्ट्र की तरह का एक संयुक्त उपक्रम है, यह रूस, कनाडा और जापान की मदद से बनाया गया और चलाया जा रहा है। ये सभी देश आईएसएस का इस्तेमाल अपने अंतरिक्ष यात्रियों की ट्रेनिंग, बायो-मेडिकल रिसर्च और नयी टेक्रोलॉजी की टेस्टिंग के लिए करते हैं। इसलिए सभी पक्षों की सहमति बनाना भी जरूरी है।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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