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International Yoga Day: आखिर 21 जून को ही योग दिवस के लिए क्यों चुना गया?

International Yoga Day: विश्व योग दिवस के लिए 21 जून चुनने के पीछे आध्यात्मिक, वैज्ञानिक और धार्मिक और भौगोलिक सारे कारण आ जाते हैं।

Ramkrishna Vajpei
Written By Ramkrishna VajpeiPublished By Shreya
Published on: 18 Jun 2021 8:51 PM IST
International Yoga Day: आखिर 21 जून को ही योग दिवस के लिए क्यों चुना गया?
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योगा करते लोग (फोटो- न्यूजट्रैक)

International Yoga Day 2021: शरीर, मन और आत्मा को एक साथ लाने के तरीके को योग कहते हैं। हिन्दुओं के जैन और बौद्ध मतों में ध्यान प्रक्रिया से सम्बन्धित है योग। भारत से ही बौद्ध अनुयायियों के साथ चीन, जापान, तिब्बत, दक्षिण पूर्व एशिया और श्रीलंका में योग फैला और इस समय तो करीब करीब सारा संसार इससे परिचित है।

11 दिसम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने प्रत्येक वर्ष 21 जून को विश्व योग दिवस (International Yoga Day) के रूप में मान्यता दी है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर योग दिवस मनाने का प्रस्ताव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) का था। इस प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly) ने पूर्ण बहुमत से पारित किया। संयुक्त राष्ट्र महासभा के 193 सदस्यों में से 177 ने 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को मनाने के प्रस्ताव को ध्वनिमत से मंजूरी दी।

21 जून के योग दिवस का आसन से संबंध

योग बहुत तरीके का होता है। उदाहरण के लिए भगवद्गीता में योग शब्द का कई बार प्रयोग हुआ है, कभी अकेले या कभी अन्य अर्थ में जैसे बुद्धियोग, सन्यासयोग, कर्मयोग ये भी योग है। प्राचीन काल से भक्तियोग और हठयोग नाम भी प्रचलित रहे हैं। पतंजलि योगदर्शन में क्रियायोग शब्द देखने में आता है। पाशुपत योग और माहेश्वर योग भी हैं। इन सब पुस्तकों में योग शब्द का जिन अर्थों में प्रयोग हुआ है वह एक दूसरे से भिन्न हैं। वैसे मंत्रयोग, हठयोग, लययोग, राजयोग भी हैं। लेकिन 21 जून को जो योग दिवस मनाया जाता है उसका संबंध योग के साथ आसन से है।

योगा करते बच्चे (फोटो- न्यूजट्रैक)

आसन का मतलब हुआ बैठना, बैठने का आधार, बैठने की विशेष प्रक्रिया आदि। इसमें यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि में आसन क्रिया का स्थान तीसरा है, जबकि गुरु गोरक्षनाथ के छह अंगों वाले योग में आसन का स्थान पहला है। चित्त की स्थिरता, शरीर एवं उसके अंगों की दृढ़ता और कायिक सुख के लिए इस क्रिया का विधान बताया गया है।

विभिन्न ग्रन्थों में आसन के द्वारा उच्च स्वास्थ्य की प्राप्ति, शरीर के अंगों की दृढ़ता, प्राणायाम आदि साधन क्रमों में सहायता, चित्त की स्थिरता, शारीरिक एवं मानसिक सुख आदि बताए गए हैं। पंतजलि ने मनकी स्थिरता और सुख को आसन के जरिये बताया है। प्रयासों में शिथिलता दर करने और परमात्मा में मन लगाने के लिए इसकी सिद्धि बतलाई गई है। यानी जिसका आसन सिद्ध हो जाएगा उसके शरीर पर द्वंद्वों का प्रभाव नहीं पड़ता।

आखिर 21 जून को ही योग दिवस के लिए क्यों चुना गया?

अब असली सवाल यह है कि विश्व योग दिवस के लिए 21 जून ही क्यों चुना गया। इसके पीछे आध्यात्मिक, वैज्ञानिक और धार्मिक और भौगोलिक सारे कारण आ जाते हैं। पहली बात वैज्ञानिक है 21 जून के दिन सूरज का जल्दी उदय होता है और देरी से ढलता है। यानी दिन लंबा होता है। माना जाता है कि इस दिन सूर्य का तेज सबसे प्रभावी रहता है। और सूर्य के प्रभावी रहने से प्रकृति की सकारात्मक ऊर्जा सक्रिय रहती है।

धार्मिक कारण यह है कि पौराणिक कथाओं के अनुसार आदियोगी शिव ने परशुराम व शनि के अलावा अपने सात शिष्यों योगादि का ज्ञान दिया था। शिव के सातों शिष्य सप्त ऋषि कहलाए। मान्यता है कि भगवान शिव हिमालय के दुर्गम क्षेत्र में एक आदियोगी के रूप में प्रकट हुए थे। तब सप्त ऋषियों ने उनके तेज से प्रभावित होकर उनसे ज्ञान प्रदान करने का अनुरोध किया।

ऋषियों के अनुरोध पर भगवान शिव ने आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को उनके गुरु बनकर उनको योग का ज्ञान देना प्रारंभ किया। इसलिए उनको ब्रह्मांड का पहला गुरु माना जाता है। इसलिए ग्रीष्म संक्राति के बाद आने वाली पहली पूर्णिमा के दिन योग की दीक्षा दी गई थी, जिसे शिव के अवतरण के तौर पर भी मनाते हैं। इसे दक्षिणायन के नाम से भी जाना जाता है। भगवान शिव के योग को तंत्र या वामयोग कहते हैं। इसी की एक शाखा हठयोग की है।

(फोटो- न्यूजट्रैक)

गोरख नाथ ने दो आसन का किया वर्णन

हमारे प्राचीन ग्रंथों में से एक गोरक्ष शतक में गुरु गोरख नाथ ने 10-11वीं शताब्दी में दो आसन सिद्धासन और पद्मासन का वर्णन किया है। हालांकि कहा जाता है उन्होंने 84 आसानों का वर्णन किया था। इसी तरह शिव संहिता जिसकी काल अवधि 15वीं शताब्दी बतायी जाती है उसमें चार बैठकर किए जाने वाले आसन वर्णित हैं। कहा जाता है इसमें आसनों की कुल संख्या 84 है। इसके अलावा 11 मुद्राएँ भी इसमें वर्णित हैं।

इसके अलावा 15वीं शताब्दी की ही स्वामी स्वात्माराम की हठ योग प्रदीपिका में 15 आसन बताए गए हैं। जिसमें चार सिद्धासन, पद्मासन, भद्रासन, और सिंहासन विशेष हैं। घेरण्ड लिखित घेरण्ड संहिता 17वीं शताब्दी की बतायी जाती है जिसमें 32 आसन वर्णित हैं। और 25 मुद्राएं हैं। 52 श्रीनिवास की 17वीं शताब्दी में ही लिखी गई हठ रत्नावली में 52 आसनों का वर्णन मिलता है। रामानन्दी जयतराम की 1830 में लिखी गई जोग प्रदीपिका में 84 आसन और 24 मुद्राएं हैं। योगी घामंडे की 1905 में लिखी गई योग सोपान में 37 आसन, 6 मुद्राएं और 5 बंध हैं।

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