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इजरायल का टारगेटेड हमला, आखिर कैसे ढूंढ लेता है अपने निशाने?
Israel Targeted Attack : गाज़ा में छिपे हमास वाले हों या लेबनान में छिपे हिजबुल्ला के लड़ाके और मिसाइल - रॉकेट लांचर ठिकाने, इजरायल इन्हें ढूंढ ही लेता है और अपने टारगेटेड हमलों से इन्हें नेस्तनाबूद कर देता है।
Israel Targeted Attack : गाज़ा में छिपे हमास वाले हों या लेबनान में छिपे हिजबुल्ला के लड़ाके और मिसाइल - रॉकेट लांचर ठिकाने, इजरायल इन्हें ढूंढ ही लेता है और अपने टारगेटेड हमलों से इन्हें नेस्तनाबूद कर देता है। लेकिन आखिर इजरायल अपने टारगेट ढूंढ कैसे लेता है? जानकारों का कहना है कि इसके पीछे जमीनी इंटेलिजेंस, बहुत ऊपर आसमान में टहलते ड्रोन और सैटेलाइट तथा आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस का कमाल है जो जमीन के ऊपर या नीचे छिपे आतंकियों का ठिकाना पता कर लेती हैं।
मेटाडेटा युद्ध
सटीक निशानेबन्दी के मामले में एआई के साथ जो बात अलग है, वह है एल्गोरिदम के जरिये टारगेट तय करने की गति और इसके लिए तत्काल कार्रवाई। एक रिपोर्ट बताती है कि इस तकनीक के इस्तेमाल से हजारों टार्गेट्स को बिना किसी मानवीय निगरानी के और अत्यंत तेज़ी से नष्ट किया गया है। हालांकि इजरायल ऐसे कामों में एआई के इस्तेमाल से इनकार करता है और स्वतंत्र रूप से इनका इस्तेमाल सत्यापित करना मुश्किल है। वैसे इजरायल डिफेंस फोर्सेज का दावा वह सबसे तकनीकी संगठनों में से एक है और एआई को सबसे पहले अपनाने वाला संगठन है।
दो तरह की टेक्नोलॉजी
बहरहाल, दो तकनीकें चर्चा में हैं : "लैवेंडर" और "व्हेयर इज़ डैडी?"
"लैवेंडर" एक एआई प्रणाली है जिसे आतंकियों को टारगेट के रूप में पहचानने के लिए एल्गोरिदम का उपयोग करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
"व्हेयर इज डैडी?" एक ऐसा सिस्टम है जो भौगोलिक रूप से टारगेट्स को ट्रैक करती है। ये अपने टारगेट को उनके घर और परिवारवालों के बीच तक ट्रैक करती है।
ये दोनों सिस्टम "सर्च - फिक्स - ट्रैक - टारगेट" का ऑटोमेशन करते हैं। इस स्वचालित प्रणाली को "किल चेन" कहा जाता है।
कैसे काम करते हैं ये सिस्टम
"लैवेंडर" जैसे सिस्टम खुद अपने आप में हथियार नहीं हैं, लेकिन वे मारने के काम को गति देते हैं और इस प्रक्रिया को ऑटोमैटिक बनाते हैं।
एआई टारगेट सिस्टम कंप्यूटर सेंसर और अन्य स्रोतों से डेटा खींचते हैं ताकि ये आंकलन किया जा सके कि संभावित टारगेट क्या है। इस डेटा का विशाल हिस्सा इजरायली खुफिया द्वारा निवासियों पर निगरानी के जरिये एकत्र किया जाता है। इस डेटा सेट में लोगों के पूरे प्रोफाइल दर्ज होते हैं।
एआई के साथ जो बात अलग है, वह है स्पीड। इससे एल्गोरिदम द्वारा टारगेट निर्धारित किए जा सकते हैं और इसके द्वारा वाली कार्रवाई का आदेश भी तय होता है। इस तकनीक के इस्तेमाल से हजारों योग्य और अयोग्य टारगेट को बिना किसी मानवीय निगरानी के, बहुत तेजी से नष्ट किया जा सका है।
2019 के बाद बदला परिदृश्य
2019 में इजरायली सरकार ने इजरायली रक्षा बल (आईडीएफ), विशेष रूप से इजरायली वायु सेना के लिए एक 'टार्गेटिंग निदेशालय' के निर्माण की घोषणा की थी। वजह ये थी कि पहले की लड़ाइयों में इजरायल एयरफोर्स के पास लड़ाई के कुछ ही हफ़्तों के बाद टारगेट खत्म हो जाते थे, क्योंकि वे उन सभी टारगेट्स को मार देते थे जिनके बारे में उन्हें पता था। इस स्थिति को बदलने के लिए इजरायल ने किसी भी संघर्ष से पहले उग्रवादी लक्ष्यों का 'बैंक' बनाकर इस कमी को कम करने के लिए टार्गेटिंग निदेशालय बनाया ताकि लड़ाई शुरू होने पर पर्याप्त लक्ष्य सुनिश्चित हो सकें।
सैकड़ों सैनिकों और विश्लेषकों से मिलकर बना यह निदेशालय विभिन्न स्रोतों - ड्रोन फुटेज, इंटरसेप्ट किए गए संचार, निगरानी डेटा, ओपन सोर्स सूचना और व्यक्तियों और बड़े समूहों दोनों की गतिविधियों और व्यवहार की निगरानी से डेटा एकत्र करके टारगेट बैंक बनाता है।
बताया जाता है कि टार्गेटिंग निदेशालय द्वारा जमा डेटा को प्रोसेस करने और फिर बहुत अधिक गति से लक्ष्य बनाने के लिए एआई का उपयोग किया जाता है।