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Kanshi Ram Death Anniversary: कांशीराम ने कहा था - मैंने जाति के विनाश की दिशा में सोचना बंद कर दिया

World Dalit Conference :मलेशिया में 1998 को पहला विश्व दलित सम्मलेन आयोजित किया गया था, इसमें कांशीराम ने उद्घाटन भाषण दिया था।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani LalPublished By Shraddha
Published on: 9 Oct 2021 11:39 AM IST
मलेशिया के पहले विश्व दलित सम्मलेन में कांशीराम बोले यह बात
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मलेशिया के पहले विश्व दलित सम्मलेन में कांशीराम बोले यह बात (फाइल फोटो - सोशल मीडिया)

World Dalit Conference : मलेशिया (Malaysia) की राजधानी कुआलालंपुर (Kuaalaalampur) में 10 और 11 अक्टूबर 1998 को पहला विश्व दलित सम्मलेन (World Dalit Conference) आयोजित किया गया था, इसमें कांशीराम (Kanshi Ram) ने उद्घाटन भाषण दिया था। कांशीराम ने इस ऐतिहासिक मौके पर तमाम मुद्दों पर अपने विचार रखे थे। व्यवस्था परिवर्तन के उपाय सुझाये थे।

उन्होंने कहा था – " मैंने जाति का अध्ययन महज किताबों से नहीं, बल्कि असल जिंदगी से किया है। जो लोग अपने गाँव छोड़कर दिल्ली, मुंबई, कोलकाता तथा अन्य शहरों में आते हैं, वे अपने साथ और कुछ नहीं बल्कि अपनी जाति को लाते हैं। वे घर द्वार छोड़ कर केवल अपनी जाति को साथ लेकर ही शहर की गन्दी बस्तियों, नालों और रेल की पटरियों के किनारे बस जाते हैं। अगर लोगों को अपनी जाति इतनी ही प्रिय है, तो हम जाति का विनाश कैसे कर सकते हैं? इसलिए मैंने जाति के विनाश की दिशा में सोचना बंद कर दिया।"


कांशीराम ने मलेशिया में उद्घाटन भाषण दिया था (फाइल फोटो - सोशल मीडिया)


कांशीराम ने अपने संबोधन में कहा – '"जाति का निर्माण बिना किसी उद्देश्य के नहीं किया गया है, इसके पीछे एक गहरा उद्देश्य और स्वार्थ छिपा हुआ है। जब तक यह उद्देश्य अथवा स्वार्थ जिन्दा रहता है, जाति का विनाश नहीं किया जा सकता। आप ब्राह्मणों अथवा सवर्ण जातियों को इस प्रकार जातिविहीन समाज की पुनर्स्थापना के लिए सम्मेलन, विचार-गोष्ठी आदि आयोजित करते हुए नहीं देखेंगे। जाति के निर्माण के कारण केवल मुट्ठी भर सवर्ण जातियों को ही फायदा हुआ है। 85 प्रतिशत बहुजन समाज को पिछले हज़ारों बरसों से पीढ़ी-दर-पीढ़ी नुकसान ही होता रहा है। इस तरह की कॉन्फ्रेंस केवल हम लोग ही आयोजित कर सकते हैं, क्योंकि हम जाति व्यवस्था के शिकार हैं। इसका फायदा पाने वालों को जाति के विनाश में कोई रुची नहीं हो सकती। बल्कि वे तो जाति व्यवस्था को और अधिक मजबूत देखना चाहते हैं। ताकि जाति के आधार पर उन्हें मिलने वाली सभी सुविधाएं भविष्य में भी जारी रहें।"


कांशीराम (फाइल फोटो - सोशल मीडिया)

उन्होंने कहा – "जाति एक दोधारी तलवार के समान है, जो दोनों तरफ से काटती है। मैनें जाति को दोधारी तलवार की तरह इस्तेमाल करना शुरू किया कि इसका फ़ायदा बहुजन समाज को मिले और उच्च वर्ग को इसका फ़ायदा पहुँचना बंद हो जाए। बाबासाहब अंबेडकर ने जाति के आधार पर ही अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के लोगों को उनके सामाजिक और राजनैतिक अधिकार मिला। जाति का सहारा लेकर ही उन्होंने सन 1931- 32 के राउंड टेबल कांफ्रेंस में इन वर्गों के लिए पृथक निर्वाचन की व्यवस्था करवाई । लेकिन इस मुद्दे पर गाँधीजी के आमरण अनशन के कारण, इन वर्गों को पृथक निर्वाचन का अधिकार खोना पड़ा। कई लोग मुझसे अक्सर पूछते हैं कि जिस तरह बाबासाहब अंबेडकर ने पृथक निर्वाचन के लिए संघर्ष किया, उसी प्रकार का संघर्ष आप भी क्यों नहीं शुरू करते? आज तक मैंने अपना एक भी मिनट पृथक निर्वाचन के मामले में खराब नहीं किया है, अगर पृथक निर्वाचन अधिकार बाबासाहब अंबेडकर द्वारा ब्रिटिश शासन के दौरान भी संभव नहीं हो सका, तो आज यह मेरे लिए किस प्रकार संभव हो सकता है, जब की देश में मनुवादी समाज के लोगों का राज है। आज यह एकदम असंभव है।"

'बाबासाहब अंबेडकर ने अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लोगों को जाति के हथियार का इस्तेमाल करने लायक बनाया था, इसी कारण वे ब्रिटिश हुकूमत से इन वर्गों के लिए कई सुविधाएं जुटाने में सफल रहे। लेकिन अंग्रेजों के भारत छोड़ने के बाद केवल तीन लोग ही ऐसे रहे हैं जिन्हें जाति के हथियार को इस्तेमाल करने में महारत हासिल है। सबसे पहले व्यक्ति जवाहर लाल नेहरू थे। दूसरी श्रीमती इंदिरा गाँधी थीं । तीसरा व्यक्ति कांशी राम है। मैने जाति की दोधारी तलवार का इस्तेमाल अपने समाज के हित में करना सीख लिया है। जाति जो कि अभी हमें अपने लिए एक समस्या नज़र आती है, अगर हम इसका ठीक तरह से उपयोग करना सीख जाएँ तो यह हमारे लिए एक फयदेमंद चीज़ बन सकती है।

शरणार्थी

हमें इतिहास से सबक सीखने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। 1932 में बाबासाहब अंबेडकर ने दलितों के लिए पृथक निर्वाचन की माँग की और दस वर्ष बाद 1942 में उन्होंने दलितों के लिए पृथक बस्तियों की माँग उठायी। लेकिन आज भी लोग अपने गाँव छोड़कर रोज़गार और सम्मानपूर्वक ज़िंदगी की तलाश में बड़े शहरों में आ जाते हैं। वे जानवरों से भी ज़्यादा बुरी ज़िंदगी जीने को मजबूर हैं। ये लोग गंदे स्लमों आदि स्थलों पर रह रहे हैं, हम इन्हें भारतीय शरणार्थी कहते हैं। इन लोगों की समस्याओं के बारे में किसे सोचना चाहिए? इतनी बड़ी संख्या में मौजूद लोगों के लिए कोई विशेष विभाग अथवा मंत्रालय नहीं है। हमने इन लोगों की मुक्ति के लिए भारतीय शरणार्थी आंदोलन चलाने की योजना बनाई है।


कांशीराम - मायावती (फाइल फोटो - सोशल मीडिया)

हमारे बुद्धिजीवी अक्सर ऐसा सोचते हैं कि हमारी सभी समस्यायों का हल मार्क्सवाद , समाजवाद, साम्यवाद में है। मेरा मानना है कि जिस देश में मनुवाद मौजूद है, उस देश में कोई अन्य वाद सफल नहीं हो सकता।

कांशीराम ने कहा "आप शासक बनकर एक जातिविहीन समाज की स्थापना करने में सक्षम हो सकते हैं। आपकी सभी समस्याओं का यही हल मैं आपको बता सकता हूँ। जाति के शिकार हुए लोगों को ही यह काम स्वयं करना होगा। आप यह कह सकते हैं कि मैं असंभव सी बात कह रहा हूँ । लेकिन अपनी जिंदगी में मैंने हमेशा ही असंभव से लगने वाले कामों में हाथ डाला है ।उनमें सफलता भी हासिल की है। इसी का नाम कांशी राम चमत्कार है।"



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