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OMG! भारतीय-अमेरिकी ने किया 1300 करोड़ का महादान

raghvendra
Published on: 21 Oct 2017 7:52 AM GMT
OMG! भारतीय-अमेरिकी ने किया 1300 करोड़ का महादान
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लखनऊ :किरन पटेल को आप महादानी कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। उनकी गिनती अमेरिका में रहने वाले उन भारतीयों में होती है जो परोपकार के कामों में लगे हुए हैं। इन दिनों वे अपने एक नए ऐलान से चर्चा में हैं। उन्होंने फ्लोरिडा यूनिवर्सिटी को 50 करोड़ डॉलर यानी करीब 1300 करोड़ रुपये की बड़ी रकम दान दी है। यह रकम किसी भी भारतीय-अमेरिकी द्वारा अमेरिकी संस्थान को दी गई अब तक की सबसे बड़ी दान राशि है।

अलग स्वभाव के हैं डॉ. किरन पटेल

आठ साल के किरन पटेल बचपन से ही कुछ अलग स्वभाव के रहे हैं। जब वे स्कूल में थे तो अपनी पॉकेटमनी के पैसों को गुल्लक में डाल देते थे, जबकि उनका छोटा भाई और दोस्त इन्हीं पैसों से चॉकलेट और सोडा खरीद लेते थे।

बीबीसी के मुताबिक कुछ सालों में किरन पटेल ने अपनी पॉकेटमनी से इतना पैसा बचा लिया कि वो खुद के लिए, माता-पिता और दोनों भाइयों के लिए जहाज के टिकट खरीद सकें और इस तरह वो 12 साल बाद समुद्री रास्ते से जाम्बिया से भारत की यात्रा करने में कामयाब रहे। आज 60 साल बाद सबकुछ बदल चुका है। डॉक्टर किरन सी पटेल अब काफी बुलंदी पर पहुंच चुके हैं। उन्होंने जाम्बिया के छोटे से शहर से निकलकर फ्लोरिडा तक का सफर तय किया है। आज उनके पास निजी विमान भी है।

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सबसे बड़ी दान राशि

डॉ.पटेल ने फ्लोरिडा यूनिवर्सिटी को 1300 करोड़ की जो रकम दान की है वह किसी भी भारतीय-अमेरिकी द्वारा अमेरिकी संस्थान को दी गई अब तक की सबसे बड़ी दान राशि है। इस राशि से नोवा साउथईस्टर्न यूनिवर्सिटी (एनएसयू) दो मेडिकल कॉलेज बनवाएगी, एक फ्लोरिडा में तो दूसरा भारत में। डॉ.पटेल कहते हैं कि मैंने बचपन में ही यह बात सीख ली थी कि अगर हम एक रुपया बचाते हैं तो वह एक रुपया कमाने जैसा ही है और इसे वहां देना चाहिए जहां इसकी सबसे ज्यादा जरूरत हो।

मुसीबतों में बीता बचपन

पटेल उस दौर में बड़े हुए जब जाम्बिया में रंगभेद की समस्या बहुत ज्यादा थी। बचपन में उन्होंने काफी दिक्कतें झेलीं मगर इन दिक्कतों से वे कभी नहीं घबराए। उन्हें स्कूल जाने के लिए शहर से 80 किलोमीटर दूर जाना पड़ा क्योंकि उनके शहर में काले बच्चों के लिए कोई स्कूल नहीं था। उन्होंने भारत में मेडिकल की पढ़ाई की और फिर अपनी पत्नी के साथ 1976 में वे अमेरिका चले गए। डॉ.पटेल बड़ा सपना देखने वाले इंसान हैं।

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वे हृदय रोग विशेषज्ञ हैं और अमेरिका में उन्होंने एक बड़ा बिजनेस साम्राज्य खड़ा किया। उन्होंने अलग-अलग विशेषज्ञता वाले चिकित्सकों का एक नेटवर्क तैयार किया। साल 1992 में उन्होंने एक हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी खरीदी जो दिवालिया होने की कगार पर थी। दस साल बाद जब उन्होंने इस कंपनी को बेचा तो इसमें 4 लाख से ज्यादा सदस्य थे और इसका राजस्व 100 करोड़ डॉलर से ऊपर पहुंच चुका था।

रिस्क लेने वाले इंसान

डा.पटेल का कहना है कि मैं रिस्क लेने वाला इंसान हूं। वे कहते हैं कि मैं 90 मील प्रति घंटे की रफ्तार से दौडऩा चाहता हूं। मेरा पांव हमेशा एक्सेलेरेटर पर रहता है। वे एक पुरानी गुजरात कहावत पर विश्वास करते हैं। इस कहावत का मतलब है कि ‘जब समृद्धि की देवी खुद आपके दरवाजे पर दस्तक दे, तब हमें अपना चेहरा धोने के लिए दूर नहीं चले जाना चाहिए।’ अपनी पत्नी डॉक्टर पल्लवी पटेल की तरफ इशारा करते हुए वे कहते हैं कि मेरी रफ्तार को संभालने वाली और एक्सेलेरेटर पर ब्रेक लगाने वाली ये हैं।

डॉ.पटेल ने गुजरात के एक गांव में 50 बिस्तर वाले एक अस्पताल समेत कई दूसरे परोपकारी कामों के लिए दान दिया है। वे कहते हैं कि उनके दान की रकम में से 5 करोड़ डॉलर तो सीधे स्कूल के खाते में चले जाएंगे जबकि 15 करोड़ डॉलर से मेडिकल शिक्षा के लिए इमारत बनाई जाएगी। इतनी बड़ी रकम दान देने का प्रमुख लक्ष्य फ्लोरिडा के छात्रों को भारत में स्वास्थ्य संबंधी अनुभव देना और भारतीय छात्रों को फ्लोरिडा के संस्थान में एक साल बिताने का मौका देना है।

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बेटे को अलग नसीहत

अपने बच्चे की एक बात याद करते हुए डॉक्टर पल्लवी पटेल बताती हैं कि उनका बेटा शिलन जब 9 साल का था तो एक दिन वह स्कूल से लौटा और अपने पिता से पूछा, पापा, क्या हम अमीर हैं? तब डॉक्टर पटेल ने जवाब दिया, अमीर मैं हूं, तुम नहीं। पल्लवी कहती हैं कि डॉ.पटेल ने अपने बच्चों की परवरिश इसी तरह की है। उन्हें हमेशा अपने संघर्षों की बात बताई है और उनसे हमेशा यह कहा है कि उन्हें अपनी जिंदगी खुद बनानी होगी। पटेल कहते हैं कि अगर वे अमीर न होता तब भी वे दूसरों की मदद जरूर करते। वे कहते हैं कि जाम्बिया या गुजरात में मेरे पिता के पास बहुत ज्यादा पैसा नहीं था। फिर भी वे हमेशा जरुरतमंदों की मदद किया करते थे।

आलीशान जीवन के शौकीन

डॉ.पटेल आलीशान जिंदगी जीने वाले इंसान हैं। पिछले पांच साल में उन्होंने चार प्राइवेट जेट खरीदे और फिलहाल वे फ्लोरिडा के टैम्पा में एक महल जैसा घर बनवा रहे हैं। 40 बेडरूम वाले उनके बंगले को लाल पत्थर से बनवाया जा रहा है। यह पत्थर विशेष रूप से भारत से मंगवाया गया है। यह महलनुमा घर पिछले पांच साल से बन रहा इसमें 100 से ज्यादा लोग काम में लगे हैं। पटेल मानते हैं कि जब यह बंगला तैयार हो जाएगा तो उनकी तीन पीढिय़ां इसमें रह सकेंगी। वैसे उनकी पत्नी की दूसरी ही सोच है।

वे कहती हैं कि प्राइवेट जेट से उडऩा या किसी आलीशान बंगले में रहना उतना बेहतर भी नहीं है जितना वे एक मध्यमवर्गीय परिवार में रहकर महसूस करती थीं। डॉ.पल्लवी पटेल का कहना है कि उनके पति ने इतना कमाया है इसलिए वे खर्च करने का अधिकार भी रखते हैं।

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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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