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NEPAL : भारत विरोध के सूरज का उदय, KP ओली के सिर PM का ताज सजना तय

दस वर्षों में राजनीतिक उथल पुथल के बीच दस प्रधानमंत्री देख चुका मित्र देश नेपाल में अब वाम दलों का ‘सूर्य‘ चमकता दिख रहा है। आत्मनिर्भरता के नारे के बीच भारत का विरोध करने वाले पूर्व प्रधान

Anoop Ojha
Published on: 12 Dec 2017 11:47 AM GMT
NEPAL : भारत विरोध के सूरज का उदय, KP ओली के सिर PM का ताज सजना तय
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पूर्णिमा श्रीवास्तव

गोरखपुर:दस वर्षों में राजनीतिक उथल पुथल के बीच दस प्रधानमंत्री देख चुका मित्र देश नेपाल में अब वाम दलों का ‘सूर्य‘ चमकता दिख रहा है। आत्मनिर्भरता के नारे के बीच भारत का विरोध करने वाले पूर्व प्रधानमंत्री केपी ओली के सिर नये प्रधानमंत्री का ताज

है। नेपाल में लाल सलाम के खतरें भी हैं, क्योंकि प्रचंड से लेकर ओली का चीन की तरफ झुकाव जगजाहिर है। भारत समर्थित नेपाली कांग्रेस सियासी लड़ाई में पूरी तरह बाहर दिख रही है।

सितम्बर 2015 में नेपाल में नये संविधान पर मुहर लगी तो देश में स्थाई सरकार की उम्मीदें परवान चढ़ने लगी थीं।

नेपाल में बीते 26 नवंबर और सात दिसंबर को दो चरणों में चुनाव कराए गए थे। संसदीय सीटों के लिए 1663 उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतरे थे। चुनाव में सूरज चुनाव चिन्ह के साथ उतरे केपी ओली और प्रचंड का गठबंधन ने लोगों के बीच राष्ट्रवाद के नाम पर वोट मांगने पहुंचा। नेपाली जनता ने वाम गठबंधन को हाथों हाथ लिया तो वहीं दूसरी तरफ नेपाली कांग्रेस का भारत के प्रति झुकाव और मुददा विहीन होना उसे ले डूबा। पूर्व प्रधानमंत्री केपी ओली और प्रचंड लोगों को यह समझाने में सफल रहे कि नेपाल जबतक खुद आत्मनिर्भर नहीं होगा, उसके वजूद पर संकट बना रहेगा। चुनावी सभाओं में भूकंप के दौरान भारत की बेरूखी को भी वामदलों ने पुरजोर ढ़ग से उठाया।

भारत विरोध की वजहों को बामदल पहाड़ से लेकर भारतीय सीमा से लगे इलाकों में भी समझाने में पूरी तरह कामयाब रहे। केपी ओली ने अपनी सभाओं में युवाओं को समझाया कि चीन द्वारा लाई जा रही रेल नेटवर्क, जल विद्युत परियोजना, एयरपोर्ट और अन्य विकास कार्य से ही नेपाल आत्मनिर्भर बनेगा और बेरोजगारों को रोजगार मिलेगा। वहीं पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा और बाबूराम भट्टराई का गठबंधन अपने मूल मुददों से ही भटक गया। नेपाली कांग्रेस की सियायत हिन्दू कार्ड के इर्द-गिर्द घूमती रही है। लेकिन इस चुनाव में नेपाल कांग्रेस के नेता बाबूराम भट्टराई की करीबी के चलते अपने इस एजेंडे से भटकते दिखे।

नेपाल में भारत विरोध के सूरज का उदय, KP ओली के सिर नये PM का सजना तय नेपाल में भारत विरोध के सूरज का उदय, KP ओली के सिर नये PM का सजना तय

नेपाली जनता को वामदलों और नेपाली कांग्रेस के बीच फर्क करने में मुश्किल हुई। वहीं नेपाल में लंबे समय तक नेपाली कांग्रेस का कब्जा रहा है। ऐसे में वामदल लोगों को यह समझाने में कामयाब रहे कि नेपाली कांग्रेस की अगुवाई वाली सरकारों ने नेपाल को बर्बाद कर दिया है। ना तो उद्योग लगे न ही नेपाली युवाओं को रोजगार के अवसर ही मुहैया हुए हैं। नेपाली कांग्रेस के कार्यकाल में चिकित्सा, शिक्षा से लेकर मूलभूत सुविधाओं के लिए देश भारत या फिर चीन के रहमोकरम ही जिंदा रहा है। कभी भी देश को आत्मनिर्भर बनाने की कोशिशें नहीं हुई। नेपाल की जनता को बामदलों के इन दलीलों को भरपूर समर्थन मिला। इसके साथ ही भूकंप के दौरान पनपा भारत विरोध भी बामदलों के जीत में अहम वजह बना। कमल थापा के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी राजा की समर्थन वाली मानी जाती है। पार्टी को चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा है।

नेपाल में भारत विरोध केन्द्र की भाजपा सरकार के लिए भी बड़ा झटका है। पीएम बनने के बाद नरेन्द्र मोदी भूटान के बाद नेपाल के ही दौरे पर पहुंचे थे। जहां नेपाली जनता ने पूरी गर्मजोशी से स्वागत किया था। लेकिन नेपाल में भूंकप के दौरान भारत कूटनीतिक रूप से पूरी तरह असफल रहा। नेपाली संविधान के जानकार विकास अधिकारी कहते हैं कि ओली नेपाल में अस्थिर सरकारों की लंबी फेहरिस्त में स्थयित्व सरकार का भरोसा जीतने में सफल रहे। नेपाली जनता को भरोसा मिला कि ओली प्रचंड की मदद से नेपाल को स्थाई सरकार दे सकते हैं। स्थाई सरकार ही नेपाल में विकास का द्वार प्रशस्त कर सकती है।

भारत-नेपाल मैत्री समाज के शांत कुमार शर्मा कहते हैं कि भूकंप के दौरान भारत सरकार मदद की मार्केटिंग करने लगी। वहीं चीन शांति से मदद करता रहा। ऐसे में नेपाली जनता चीन को पक्का दोस्त मामने लगी। सोनौली और रक्सौल बार्डर पर नाकेबंदी भी भारत विरोध की बड़ी वजह बनी। बार्डर पर नाकेबंदी नहीं हुई थी भारत सरकार यह समझाने में पूरी तरह नाकामयाब साबित हुई। दरअसल, दो वर्ष पूर्व नेपाल में भूंकप की आपदा के बाद भारत-चीन मदद को लेकर जमकर सियासत हुई थी। भारत की तरफ से रक्सौल और सोनौली बार्डर को सील किये जाने की अफवाह नेपाल के पहाड़ में खूब उड़ी।

वाममदल नेपाली नागरिकों को समझाने में सफल रहे कि भारत की बार्डर पर नाकेबंदी के चलते कांडमांडू में रसोई गैस से लेकर डीजल-पेट्रोल और खाने-पीने की समानों की कीमतों में दस गुने से अधिक का इजाफा हुआ। करीब दो महीने की दिक्कतों के बाद भारत सरकार के जिम्मेदार नेपाल में यह संदेश देने में नाकामयाब रहे कि बार्डर पर किसी प्रकार की नाकेबंदी नहीं की गई थी। उधर, इस अफरातफरी का चीन ने खूब लाभ उठाया। बता दें कि पूर्व प्रधानमंत्री केपी ओली की अगुआई वाली सीपीएन-यूएमएल और पूर्व प्रधानमंत्री प्रचंड की पार्टी सीपीएन-माओवादी ने संसदीय और प्रांतीय चुनावों के लिए हाथ मिलाया था। इस गठबंधन को पिछले दो दशकों से राजनीतिक अस्थिरता के दौर से गुजर रहे नेपाल के लिए अहम माना जा रहा है। चुनाव के नतीजों से इस हिमालयी देश में स्थिरता की उम्मीद की जा रही है। यह देश पिछले एक दशक में 10 प्रधानमंत्रियों को देख चुका है। नेपाली जनता को उम्मीद है कि यह चुनाव नेपाल में विकास और स्थाई सरकार की बुनियाद रखेगा।

दिग्गज जीतें तो कई हारे भी

पूर्व प्रधानमंत्री केपी ओली ने झापा-5 सीट से नेपाली कांग्रेस के उम्मीदवार खगेंद्र अधिकारी को 28 हजार से ज्यादा मतों से हराया है। वहीं बामपंथी नेता प्रचंड चितवन-3 सीट से निर्वाचित हुए हैं। उन्होंने राष्ट्रीय प्रजातंत्र के उम्मीदवार बिक्रम पांडे को 10 हजार से ज्यादा मतों से परास्त किया। भारत से सटे तराई इलाकों में मधेश राज्य के मुददों पर अपनी सियासी रोटियां सेंकने वाले मधेशी दलों को भी भारी हार का सामना करना पड़ा है। सप्तरी सीट से पूर्व गृहमंत्री और मधेश नेता उपेन्द्र यादव अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे। वहीं पूर्व प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टराई गोरखा से जीतने में सफल रहे। वहीं शेर बहादुर देउबा की पत्नी को हार का सामना करना पड़ा।

वाम गठबंधन को स्पष्ट बहुमत

नेपाल में दो चरणों में हुए चुनाव में संघीय संसद की 275 सीटों और सात प्रांतीय सभाओं के लिए 550 सदस्यों के निर्वाचन के लिए वोटिंग हुई थी। संविधान लागू होने के बाद नेपाल के लोग अपना प्रधानमंत्री और प्रांतीय सभाओं के लिए सदस्य सीधे चुनाव के जरिए चुन रहे हैं। नेपाल के संसदीय और प्रांतीय चुनावों में सीटों की संख्या वाम गठबंधन की सरकार बननी तय है। सोमवार तक की मतगणना में वाम दलों के खाते में 106 सीटें आ चुकी हैं। वहीं सत्तारूढ़ नेपाली कांग्रेस पार्टी महज 20 सीटों के साथ तीसरे स्थान पर है। नेपाल में संसदीय और प्रांतीय विधान सभाओं के लिए दो चरणों में मतदान हुआ था। बीते गुरुवार को दूसरे चरण का मतदान खत्म होने के बाद से ही वोटों की गिनती का काम चल रहा है। नेपाल चुनाव आयोग की मंगलवार को मीडिया से बातचीत में साफ हुआ कि पहले चरण की 165 सीटों में से सीपीएन-यूएमएल सबसे ज्यादा 75 सीटें जीत चुकी है। इसकी सहयोगी सीपीएन-माओवादी 36 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर है।

वाम गठबंधन 275 सदस्यीय संसद में स्पष्ट बहुमत की ओर बढ़ रहा है। संसदीय चुनावों में दो मधेशी दल 19 सीटों पर जीत दर्ज कर सके हैं। राष्ट्रीय जनता पार्टी नेपाल के खाते में 10 और फेडरल सोशलिस्ट फोरम नेपाल की झोली में नौ सीटें आई हैं। यहां बता दें कि नेपाल के सात प्रदेशों में वोटिंग से 165 और 110 सांसद समानुपातिक आधार पर चुने जायेंगे।

27 साल में 25 बार बदली सत्ता

नेपाल में तीन दशक की राजनीतिक अस्थिरता के बाद स्थाई सरकार बनने जा रही है। वर्ष 1990 में नेपाल द्वारा बहुदलीय लोकतंत्रीय संसदीय व्यवस्था को अपनाये जाने के बाद पिछले 27 सालों में देश में 25 सरकारें आयी और गईं। इस दौरान नेपाल बल पूर्वक राजकीय सत्ता परिवर्तन भी गवाह बना। वर्ष 2001 में चुनाव संपन्न होने के दो साल के भीतर ही अपातकाल लागू कर दिया गया था। वर्ष 2005 और 2006 में भारत सरकार के प्रयास से माओवादियों को राजनीतिक मुख्य धारा में शामिल किया गया। इसके बाद वर्ष 2008 में गणतांत्रिक नेपाल में नये संविधान के गठन के लिए प्रथम संविधान सभा का गठन हुआ। विभिन्न अस्मिताओं वाले नागरिकों के बीच सम्यक प्रतिनिधित्व के मुददे पर खींचातानी चलती रही। वर्ष 2013 में द्वितीय संविधान सभा का गठन किया गया। यह संविधान सभाएं संविधान निर्माण के लिए सहमति नहीं बना सकीं। इस दौरान शासन- प्रशासन भी किसी तरह चलता रहा। अप्रैल 2015 में नेपाल ने जहां भूकंप की भयानक विभिषिका झेली। जिसके बादं सितम्बर 2015 में उसे नया संविधान मिला। नये संविधान के नेपाल एक गणतांत्रिक लोकतंत्र बन गया है। नेपाल सात राज्यों का एक संघीय देश है।

165 संसदीस सीटों पर जीत का आकड़ा

नेपाल कम्यूनिस्ट पार्टी एमाले-75 सीट, 6 सीटों पर बढ़त

माओवादी केन्द्र- 36 सीट

नेपाली कांग्रेस-21 सीट

संघीय फोरम-10 सीट

राष्ट्रीय जनता पार्टी-10 सीट

Anoop Ojha

Anoop Ojha

Excellent communication and writing skills on various topics. Presently working as Sub-editor at newstrack.com. Ability to work in team and as well as individual.

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