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कठमुल्लों को तगड़ा झटकाः पाकिस्तान में ही बनेगा कृष्ण मंदिर आ गया फैसला
सरकार ने साफ किया है कि मंदिर निर्माण के लिए अभी कोई धनराशि जारी नहीं की गई है ,सुझाव मिलने के बाद ही कोई कदम उठाया जाएगा।वहीं लालचंद मलही ने अदालत के ताज़ा फैसले का स्वागत करते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय में मामला होने की बात कही है।
पाकिस्तान में बनने वाले कृष्ण मंदिर से जुड़े विवादों का सिलसिला थमता नज़र नहीं आ रहा है।ताज़ा खबरों के अनुसार इमरान सरकार में प्रस्तावित कृष्ण मंदिर के खिलाफ दायर हुई तीन याचिकाओं को इस्लामाबाद हाइकोर्ट ने खारिज कर दिया है।
इस्लामाबाद हाइकोर्ट के जस्टिस उमर फारूक ने इस मामले में हुई तीनों याचिकाओं पर फैसला देते हुए स्पष्ट तौर पर कहा कि सीडीए को राजधानी में किसी भी निर्माण के लिए ज़मीन देने का अधिकार है और यह ज़मीन मास्टर प्लान के हिसाब से ही दी गई है। इसी आधार पर याचिकाओं को खारिज कर दिया गया है
क्या थीं आपत्तियां—
पाकिस्तान को मुस्लिम देश बताते हुए तीनों याचिकाओं में कई तरह की आपत्तियां जताई गई थीं।याचिकाओं में कोविड के दौरान पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था की पतली हालत का हवाला दिया गया था।याचिकाकर्ताओं ने मंदिर के निर्माण के लिए दिए जाने वाले करोड़ों रुपए को पैसों की बर्बादी बताया था।
इसके साथ ही याचिकाओं में यह भी दलील दी गई थीं कि रावलपिंडी और इस्लामाबाद में पहले से ही तीन हिंदू मंदिर हैं जो हिंदुओं की ज़रूरतों को पूरा करते हैं। याचिकाओं में यह भी दलील दी गई थी कि प्रस्तावित मंदिर इस्लामाबाद के मास्टर प्लान में शामिल नहीं है।
क्या कहा अदालत ने
अदालत ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि मंदिर निर्माण मामले में दायर हुई याचिकाओं में फिलहाल वह हस्तक्षेप नहीं कर सकते लेकिन भविष्य में याचिकाकर्ताओं को अगर किसी तरह की शिकायत हो तो वे फिर से अदालत की शरण ले सकते हैं।
क्या है पूरा मामला
इमरान सरकार काफी दिनों से अपनी सेक्युलर छवि बनाने में जुटी हुई है ।करतारपुर कॉरिडोर के बाद इस्लामाबाद का यह कृष्ण मंदिर इसी की कड़ी माना जा रहा था। इस मंदिर मे इमरान की पार्टी के हिंदू नेता लालचंद मलही की बड़ी भूमिका मानी जा रही है।
मलही ने ही इस मंदिर की चारदीवारी के लिए इस्लामाबाद कि कैपिटल डेवलेपमेंट अथॉरटी को चिट्ठी लिखी थी जिसके बाद यह विवाद शुरु हो गया। कट्टरपंथी मौलवियों ने नए हिंदू मंदिर के बनाए जाने को इस्लाम के खिलाफ बताया।
उन्होंने इसके खिलाफ फतवा भी जारी कर दिया है। साथ ही सरकार द्वारा इस मंदिर को करोड़ों रुपए दिए जाने को संविधान के विपरीत करार दिया। मौलवियों की दलील थी कि इस्लामिक देश में पुराने मंदिरों को बनाए रखना तो ठीक है लेकिन सरकार नए मंदिर नहीं बनवा सकती।
इस विरोध के बाद बिल्डिंग प्लान ना होने को लेकर मंदिर की चारदीवारी का काम निलंबित कर दिया गया था।सीडीए के अध्यक्ष ने मीडिया रिपोर्ट्स में कहा था कि भूमि पर सीमांकन की समीक्षा के बाद निर्माण को अनुमति दी जाएगी।
इमरान सरकार बैकफुट पर
वहीं विरोध के बाद इमरान सरकार बैकफुट पर नज़र आ रही है। देश भर में मुद्दा बड़ा होते देख सरकार ने कुछ दिन पहले मामले को इस्लामिक वैचारिक परिषद को सौंपकर उनसे सुझाव मांगा था।
सरकार ने साफ किया है कि मंदिर निर्माण के लिए अभी कोई धनराशि जारी नहीं की गई है ,सुझाव मिलने के बाद ही कोई कदम उठाया जाएगा।वहीं लालचंद मलही ने अदालत के ताज़ा फैसले का स्वागत करते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय में मामला होने की बात कही है।