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Louis Braille: जिसने छोटी सी उम्र में बनाई नई भाषा, नेत्रहीनों के लिए बने मसीहा
ब्रेल ने महज तीन साल की उम्र में अपनी आंखों की रोशनी खो दी थी, जिसके बाद उन्होंने एक ऐसी लिपि का अविष्कार किया, जिससे वो नेत्रहीनों के लिए मसीहा बन गए।
लखनऊ: कहते हैं कि जरुरतें ही अविष्कार का कारण बनती हैं। ये कहावत महज कहावत नहीं है, बल्कि ये शत प्रतिशत सच है। ब्रेल लिपि भी इसी का एक जीता जागता उदाहरण है। ब्रेल लिपि की खोज लुई ब्रेल (Louis Braille) ने की थी। लुई ब्रेल को नेत्रहीनों का मसीहा भी कहा जाता है, क्योंकि इन्हीं की वजह से आंखों की रोशनी खो चुके लोग आसानी से शिक्षा पा सकते हैं।
4 जनवरी, 1809 को फ्रांस में जन्मे ब्रेल ने महज तीन साल की उम्र में अपनी आंखों की रोशनी खो दी थी, लेकिन अपने जीवन में एक ऐसा काम कर गए, जिसकी वजह से आज वो पूरी दुनिया में याद किए जाते हैं। उन्होंने अपने जैसे लाखों करोड़ों नेत्रहीनों के लिए एक ऐसी लिपि तैयार की, जिसके जरिए दृष्टिबाधित लोग आसानी से पढ़ और लिख सकते हैं। हालांकि उनकी मृत्यु के 16 वर्ष बाद ब्रेल लिपि को प्रामाणिक रूप से मान्यता मिली थी। आज उनकी पुण्यतिथि के मौके पर हम बताने जा रहे हैं कि कैसे ब्रेल ने इस लिपि का अविष्कार किया।
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तीन साल की उम्र में खो दी थी आंखों की रोशनी
लुई का जन्म फ्रांस की राजधानी पेरिस से 40 किमी दूर कूपरे नामक गांव में हुआ था। ब्रेल के पिता साइमन ब्रेल चमड़े से घोड़े की काठियां बनाने का काम किया करते थे। एक दिन उनके पिता काम से बाहर गए हुए थे, उस दिन लुई उनकी कार्यशाला में चले गए और वहां चमड़ा काटने और छेद करने के लिए रखे औजारों से खेलने लगे।
(फोटो- सोशल मीडिया)
खेल खेल में उनकी दाहिनी आंख में चमड़े में छेद करने वाला एक सूजा चला गया, जिससे उनकी आंखें संक्रमित हो गईं और उनकी दोनों आंखों की रोशनी चली गई। इस तरह महज तीन साल की उम्र में पूरी तरह से अपनी दृष्टिहीन हो गए। जिसके बाद ब्रेल को कोई भी काम करने में दिक्कतें आने लगीं। खासकर वो उन्हें अपनी पढ़ाई में काफी परेशानी होती थी।
इस तरह आया लिपि बनाने का आइडिया
अपनी पढ़ाई के लिए लुई ब्रेल को दूसरे के ऊपर निर्भर रहना पड़ता था, जो उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं था। ऐसे में लुई ने सोचा कि नेत्रहीनों के लिए कोई ऐसी लिपि होनी चाहिए, जिससे उन्हें दूसरे पर डिपेंड ना रहना पड़े। इस बीच एक दिन नेपोलियन की सेना के एक कैप्टन चाल्स बार्बियर उनके स्कूल में आए थे और उन्होंने बच्चों को नाइट राइटिंग की तकनीक बताई थी।
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बता देंं कि उस नाइट राइटिंग की तकनीक का इस्तेमाल नेपोलियन की सेना दुश्मनों से बचने के लिए किया करते थे। दरअसल, इस तकनीक में उभरे हुए बिंदुओं में गुप्त संदेश लिखे जाते थे, जिससे कोई दूसरा उन्हें ना पढ़ा जाए। फिर यहीं से लुई ब्रेल को ये लिपि बनाने का आइडिया सूझा। इस तकनीक का इस्तेमाल करके लुई ने नेत्रहीनों के लिए पढ़ने का एक माध्यम बना दिया, जिसे महसूस करके पढ़ा जा सकता था।
(फोटो- सोशल मीडिया)
15 साल की उम्र में किया था ब्रेल लिपि का अविष्कार
लुई ने केवल 15 साल की उम्र में ब्रेल लिपि का अविष्कार किया। उन्होंने साल 1824 में पहली बार अपने काम को सार्वजनिक तौर पर प्रस्तुत किया था। ब्रेल ने अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण वक्त इस लिपि प्रणाली की विस्तार करने में बिताया। इसके बाद उन्होंने साल 1829 में पहली बार ब्रेल लिपि प्रणाली प्रकाशित की। हालांकि ब्रेल लिपि को उनके निधन के 16 साल बाद प्रामाणिक रूप से मान्यता मिली। बता दें कि लुई ने 06 जनवरी 1832 को दुनिया को अलविदा कह दिया था।
क्या है ब्रेल लिपि?
ब्रेल लिपि पूरी दुनिया में मान्य है। बता दें कि इस लिपि में कोई शब्द नहीं लिखा होता है, बल्कि इसमें एक तरह का कोड होता है, जो कि उभरे हुए बिंदुओं से बनाया जाता है। पहले तो यह लिपि यह 12 बिंदुओं पर आधारित थी। लेकिन इसमें सुधार करते हुए ब्रेल ने 12 की जगह छह बिंदुओं का इस्तेमाल कर 64 अक्षर और चिह्न का आविष्कार किया था। उन्होंने इसमें चिन्ह, संख्या, बढ़ और संगीत के नोटेशन लिखने के लिए भी चिह्न उपलब्ध कराए थे।
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