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राजनीतिक संकट से घिरे मालदीव पर कब्जा जमाने की फिराक में चीन

raghvendra
Published on: 9 Feb 2018 3:33 PM IST
राजनीतिक संकट से घिरे मालदीव पर कब्जा जमाने की फिराक में चीन
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पिछले महीने 10 जनवरी को जब मालदीव के विदेश मंत्री मोहम्मद असीम तीन दिन की यात्रा पर नई दिल्ली आए थे तो उन्हें सपने में भी यह ख्याल नहीं आया होगा कि 22 दिन बाद उनके देश में सबकुछ उलट-पुलट होने वाला है। हुआ ये कि मालदीव में 2 फरवरी को सर्वोच्च अदालत ने पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद पर चल रहे मुकदमे को असंवैधानिक करार दिया था और कैद किए गए विपक्ष के 9 सांसदों को रिहा करने का आदेश जारी किया था।

कोर्ट के आदेश के बाद मालदीव में विपक्षी दल बहुमत प्राप्त करता दिख रहा था। सत्ता बचाने के लिए मालदीव की सरकार ने अदालत के फैसले को मानने से इनकार करते हुए संसद अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी थी। इसके बाद 15 दिनों के आपातकाल की घोषणा कर दी गई और सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और एक अन्य जज को गिरफ्तार कर लिया गया।

यह भी अभूतपूर्व वाकया है कि किसी देश की सरकार सत्ता छिनने के डर से जजों को ही गिरफ्तार कर ले। मालदीव में जारी राजनीतिक संकट के बीच वहां के सुप्रीम कोर्ट ने भले ही राजनीतिक बंदियों को रिहा करने का अपना फैसला पलट दिया हो, लेकिन भूचाल अभी थमा नहीं है। भारत पर इस देश में हस्तक्षेप की मांग बढ़ती जा रही है। कहा जा रहा है कि चीन करीब सवा चार लाख आबादी वाले देश पर परोक्ष तौर पर कब्जा जमाने की फिराक में है और यह भारत के लिए किसी संभावित खतरे की तरह है।

रणनीतिक लिहाज से मालदीव महत्वपूर्ण

भारत के दक्षिण-पश्चिम में स्थित मालदीव अपनी भौगोलिक स्थिति की वजह से रणनीतिक लिहाज से काफी अहम है। मालदीव रणनीतिक रूप से कितना अहम है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इतनी कम आबादी वाले इस देश में चीन जबरदस्त अंदाज में निवेश कर रहा है। चीन की महत्वाकांक्षा मालदीव में सैन्य बेस बनाने की है। मौजूदा राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन को चीन का करीबी माना जाता है।

मालदीव में कई बड़े प्रोजेक्ट चल रहे हैं और उसके कर्ज का तीन चौथाई हिस्सा चीन के हाथों मिला है। मालदीव के लिए कुल अंतराष्ट्रीय कर्ज में करीब दो-तिहाई हिस्सेदारी तो अकेले चीन की है। चीन ने एक तरह से मालदीव को कर्ज के जाल में फंसा लिया है। मालदीव अब चीन के महत्वाकांक्षी बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव का हिस्सा है।

चीन के पांव हिलाना आसान नहीं

पिछले साल चीन और मालदीव ने फ्री ट्रेड अग्रीमेंट पर दस्तखत किए थे। चीन के साथ समझौते को मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मुहम्मद नशीद ने देश की संप्रभुता के लिए खतरा बताया था। माले के इंटरनेशनल एयरपोर्ट का मामला भी मालदीव में चीन के बढ़ते दखल को बताता है। माले एयरपोर्ट को बनाने का ठेका एक भारतीय कंपनी को मिला था, लेकिन वह ठेका रद्द करके चीन की एक कंपनी को दे दिया गया।

भारत के नजरिये से चीन-मालदीव के बीच सबसे खतरनाक काम 22 जुलाई, 2015 को मालदीव की संसद में हुआ था, जब विदेशी निवेशकों को जमीन पर हक देने संबंधी संशोधन विधेयक पास कर दिया गया। यह सबकुछ चीन के लिए किया जा रहा था। चीन इसी बिल के जरिये सामरिक महत्व वाले सोलह द्वीपों को लीज पर ले चुका है। यूं राष्ट्रपति यामीन ने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को आश्वासन दिया था कि मालदीव ‘असैन्य क्षेत्र’ बना रहेगा, लेकिन यह बात कहने भर की है। इन चार वर्षों में चीन ने मालदीव में जिस तरह से पैर जमा लिए हैं, उसे हिला पाना नए निजाम के लिए आसान नहीं होगा।

चीन बना चिंता का विषय

हिंद महासागर में 1200 द्वीपों का देश मालदीव भारत के लिए रणनीतिक दृष्टि से काफी अहम है। मालदीव के समुद्री रास्ते से चीन, जापान और भारत को तेल आदि की सप्लाई होती है। दक्षिण एशिया की मजबूत ताकत होने और हिंद महासागर क्षेत्र में नेट सिक्यॉरिटी प्रोवाइडर होने के नाते भारत को मालदीव के साथ सुरक्षा और रक्षा क्षेत्र में मजबूत संबंध बनाए रखने की जरूरत है। मालदीव में चीन की बड़ी आर्थिक मौजूदगी भी भारत के लिए चिंता की बात है। कहा जाता है कि मालदीव को बाहरी मदद का 70 फीसदी हिस्सा अकेले चीन से मिलता है। कई लोगों का मानना है कि मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन कुछ वैसा ही कर रहे हैं जैसा श्रीलंका के राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे ने किया था।

भारत से मदद की दरकार

पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद की एमडीपी समेत विपक्ष का समर्थन करने वाली मालदीव की बड़ी आबादी चाहती है कि भारत इस संकट में अपने पड़ोसी देश की मदद करे और यामीन के खिलाफ कार्रवाई करे। यामीन के शासनकाल में मालदीव में कट्टरपंथ तेजी से बढ़ रहा है। ऐसा अक्सर कहा जाता है कि सीरिया में लड़ाई के लिए मालदीव से कई लड़ाके गए थे। अपने पड़ोसी देश में कट्टरपंथ का बढऩा भारत बर्दाश्त नहीं कर सकता है। इसके अलावा मालदीव सार्क का भी सदस्य है। ऐसे में इस इलाके में भारत को अपना प्रभुत्व बनाए रखने के लिए मालदीव को अपने साथ रखना जरूरी है।

मालदीव के चेहरे

  • मौमून अब्दुल गयूम : 30 वर्षों तक मालदीव के शासक। 2008 में लोकतंत्र की बहाली की। मालदीव में हुए चुनाव में मोहम्मद नशीद के हाथ में सत्ता आई।
  • मोहम्मद नशीद : 2008- 2012 तक सत्ता पर काबिज। एक राजनीतिक घटनाक्रम में अब्दुल यामीन ने गद्दी संभाली। नशीद का आरोप था कि बंदूक के दम पर उन्हें सत्ता से हटाया गया। मौजूदा राष्ट्रपति यामीन ने आतंकवाद को बढ़ावा देने के मामले में नशीद पर केस चलाया। नशीद को 13 वर्ष की सजा हुई। 2015 में तबीयत खराब होने के बाद उन्हें इंग्लैंड जाने की इजाजत मिली। फिलहाल वो श्रीलंका में रह रहे हैं।
  • अब्दुल्ला यामीन : मालदीव के मौजूदा राष्ट्रपति और पूर्व राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम के चचेरे भाई। यामीन के खिलाफ अब्दुल गयूम आंदोलन चलाते रहे हैं। हाल ही में मालदीव सुप्रीम कोर्ट ने नशीद समेत 9 लोगों को गिरफ्तारी को गैरकानूनी बताते हुए उन लोगों की रिहाई के आदेश दिए थे। इसका अर्थ ये था कि अब्दुल यामीन अल्पमत में आ जाते और उन्हें कुर्सी छोडऩी पड़ती। लेकिन मौजूदा राष्ट्रपति ने न केवल जजों को गिरफ्तार किया बल्कि पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल गयूम को भी गिरफ्तार किया।

भारत ने कई बार की मालदीव की मदद

  • मालदीव के साथ भारत के सदियों पुराने व्यापारिक और सांस्कृतिक संबंध रहे हैं। मालदीव पर जब भी कोई संकट आया है तो भारत ने सबसे पहले उसकी मदद की है। 1988 में अब्दुल्ला लुतूफी नाम के विद्रोही नेता ने श्रीलंकाई विद्रोहियों की मदद से तत्कालीन राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम की सत्ता पलटने की कोशिश की थी। इस संकट से निपटने के लिए मालदीव ने भारत और अमेरिका समेत देशों से मदद की गुहार लगाई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने तत्काल भारतीय वायुसेना को मालदीव की मदद का निर्देश दिया। भारतीय वायुसेना के ऑपरेशन में सारे विद्रोही या तो ढेर कर दिए गए या फिर गिरफ्तार।
  • दिसंबर 2014 में माले में पानी सप्लाई कंपनी के जेनरेटर कंट्रोल पैनल में भीषण आग लग गई थी। इस वजह से पूरे देश में पेयजल का अभूतपूर्व संकट खड़ा हो गया। मालदीव सरकार ने भारत सरकार से मदद मांगी। भारत ने तत्काल मदद करते हुए आईएनएस सुकन्या को पानी के साथ माले के लिए रवाना किया। इसके अलावा आईएनएस दीपक को 1000 टन पानी के साथ माले भेजा गया। भारतीय वायुसेना ने भी अपने विमानों के जरिए पानी माले पहुंचाया था
  • भारत बीते एक दशक से मालदीव के अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप करने से बच रहा है और इसका सीधा फायदा चीन को मिलता दिख रहा है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग जब भारत आए थे तब वे मालदीव और श्रीलंका होते हुए आए थे और दोनों देशों में समुद्री सिल्क रूट से जुड़े एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए थे। चीन, श्रीलंका और मालदीव को पता था कि इस मामले में भारत का रवैया सकारात्मक नहीं है। इसके बावजूद मालदीव ने साल 2014 के सितंबर महीने में इस तरह की संधियों पर हस्ताक्षर किए तो मालदीव का चीन की ओर झुकाव साफ दिखाई दे रहा था।

हाल-ए-मालदीव

मालदीव के चौथे राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद 11 नवंबर 2008 से 7 फरवरी 2012 तक सत्ता में रहे। राष्ट्रपति पद पर रहते हुए 2010 में उनकी पहली भिड़ंत देश की भ्रष्ट न्यायपालिका और पर्यटन माफिया से हुई। इसके पीछे पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल गयूम थे, जिन्होंने 25 साल तक इस मुल्क पर शासन किया था। नशीद पर आरोप लगा कि उन्होंने क्रिमिनल कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अब्दुल्ला मोहम्मद को 22 दिनों तक एक सैनिक कैंप में हिरासत में रखा था। इस मामले पर हुए बवाल के बाद 7 फरवरी 2012 को नशीद को पद छोडऩा पड़ा था।

नशीद पर इतना ज्यादा दबाव था कि गिरफ्तारी से बचने के लिए उनको राजधानी माले स्थित भारतीय उच्चायोग में शरण लेनी पड़ी थी। नशीद के खिलाफ हुई ‘साजिश’ का विश्व समुदाय ने सख्त विरोध किया था। नतीजतन मालदीव को कॉमनवेल्थ की सदस्यता से सस्पेंड कर दिया गया। 17 नवंबर, 2013 को अब्दुल्ला यामीन सत्ता पर काबिज हो गए। हालांकि यामीन पर चुनावी धांधली का आरोप लगा था। 2015 में मोहम्मद नशीद गिरफ्तार कर लिए गए। मालदीव में इसके विरुद्ध लोग सडक़ों पर उतर आए, सैकड़ों गिरफ्तारियां हुईं।

2016 में मानवाधिकार आयोग और यूरोपीय देशों के दबाव के बाद नशीद को इलाज के लिये ब्रिटेन जाने की अनुमति मिल गई जहां उन्हें राजनीतिक शरणार्थी का दर्जा मिल गया। फिलहाल नशीद कोलंबो में हैं। लेकिन राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन पर भारत समेत पूरे विश्व का दबाव है कि वह नशीद को माले आने दें। लेकिन राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन को चीन का समर्थन मिला हुआ है और वह पीछे हटने वाले नहीं हैं।



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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