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Marburg Virus: अब एक और वायरस की बला
Marburg Virus: कोरोना लाखों लोगों की जान ले चुका है।वहीँ कोरोना की तीसरी लहर अगस्त के मध्य तक आने का खतरे के बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने आगाह किया है। ऐसे में इस बीच एक नया वायरस मारबर्ग आया है।
Marburg Virus: भारत और दुनिया दिन पर दिन निकलते नए वायरसों के परिवार से परेशान हो चुकी है।जहाँ कोरोना लाखों लोगों की जान ले चुका है।वहीँ कोरोना की तीसरी लहर अगस्त के मध्य तक आने का खतरे के बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने आगाह किया है।
इस बार नया वायरस मारबर्ग (Marburg) नाम का है।जो पश्चिमी अफ्रीकी देश गिनी से (Marburg Virus Origin) निकला है।स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि इस वायरस में मरने की संभावनाएं 88 प्रतिशत तक है।हाल ही में अफ्रीकी नागरिक की मौत 02 अगस्त को इसी वायरस की वजह से हुई। उसे 25 जुलाई से ही उल्टी , बुखार जैसे लक्षण (Marburg Virus Symptoms) दिखाई देने लगे थे ।
पश्चिमी देश का पहला मामला
01 अगस्त को उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया था।पर सपोर्टिंग सिस्टम, सुरक्षा के बाद भी 02 अगस्त को मरीज की मौत हो जाती है।पोस्टमार्टम रिपोर्ट में इबोला वायरस के जगह नया मारबर्ग वायरस मिला है।जिसके बाद से ही पश्चिमी अफ्रीकी देश में हड़कंप मच गया है।ये इस वायरस से मौत का पश्चिमी देश का पहला मामला है।
गौरतलब है कि दो महीने पहले ही WHO ने अफ्रीकी देश मे ईबोला वायरस के खत्म होने की बात कही थी।यह वायरस इबोला की फैमली का ही है।जो चमगादड़ों से इंसानों में फैलता है।इससे पहले भी मारबर्ग वायरस अपनी दहशत फैला चुका है।आइये जानते हैं इस वायरस के इतिहास से लेकर बचाव ,उपाय और लक्षण के बारे में-
इतिहास-
वायरस का नाम जर्मनी के मारबुर्ग शहर के नाम पर पड़ा है। साल 1967 में इसके सबसे ज्यादा मामले देखे गए थे। इस वायरस के बारे में ये कहा जाता था कि यदि इसकी चपेट में कोई आ गया तो उसकी मौत निश्चित है।जर्मनी और यूगोस्लाविया वो देश हैं जहां पहली बार ये महामारी फैली थी जब संक्रमित हरे बंदरों को यहां लाया गया था।
31 मरीजों के बीच में मृत्यु दर 23 फीसदी थी।इसके बाद सबसे भयानक महामारी 2005 में अंगोलो में फैली थी, जहां इस बीमारी की चपेट में 252 लोग आ गए थे और उस दौरान मृत्यु दर 90 फीसद रही थी।
फोर्ब्स में प्रकाशित खबर के मुताबिक 2009 में युगांडा में दो पर्यटकों में इस बीमारी के होने की खबर मिली थी, जो यहां पर गुफाओं में घूमने गए थे। इनमें से एक डच महिला थी जिन पर चमगादड़ ने हमला कर दिया था उसके बाद उनकी मृत्यु हो गई थी। दूसरी महिला कोलोराडो की थी, जिन्हें ज्वर ने जकड़ लिया था और युगांडा से लौटने के बाद उनकी हालत खराब हो गई थी।शुरुआत में किसी तरह का कोई मूल्यांकन नहीं किया गया, बाद में जब उन्हें डच महिला के बारे में पता चला तो उन्होंने दोबारा जांच के लिए कहा।
ये दोनों महिलाएं एक ही गुफा में गई थी।बाद में उनमें मारबर्ग होने की पुष्टि हुई थी।1967 के बाद से अभी तक मारबर्ग बड़े स्तर पर 12 बार फैल चुका है।ये संक्रमण ज्यादातर दक्षिण और पूर्वी अफ्रीका में हुआ है।दोनों मारबर्ग के मामले और इस साल के इबोला मामले गिनी के गुएकदोउ जिले में पाए।2014-2016 में इबोला महामारी के पहले मामले इतिहास की सबसे बड़े स्तर पर नजर आए थे।
इसका फैलाव-
मारबर्ग वायरस मुख्यतौर गुफाओं और खदानों में रिहाइशी कॉलोनी बनाए जाने से राउजेत्तस चमगादड़ के बाहर निकलने से जुड़ा हुआ है। डब्ल्यू एच ओ के मुताबिक एक बार इंसानों की पकड़ में आने के बाद ये शारीरिक संपर्क, संक्रमित व्यक्ति के द्रव या संक्रमित सतह और दूसरी सामग्रियों से फैलने लगता है।
लक्षण-
मारबर्ग वायरस डिजीज का इन्क्यूबेशन पीरियड यानी संक्रमित होने के बाद लक्षण सामने आने की अवधि 2-21 दिन है।इसके घातक मामलों में आमतौर पर अक्सर शरीर में कई जगह से ब्लीडिंग होती है। नाक, मसूड़ों और योनि से खून के साथ अक्सर उल्टी और मल में खून आ सकता है। बीमारी के गंभीर चरण के दौरान, रोगियों को तेज बुखार होता है।केंद्रीय तंत्रिका तंत्र के शामिल होने से भ्रम, चिड़चिड़ापन और आक्रामकता हो सकती है।
कितना खतरनाक है-
वायरस स्ट्रेन और केस मैनेजमेंट के आधार पर पिछले प्रकोपों में केस फैटेलिटी रेट (मृत्यु दर) 24 प्रतिशत से 88 प्रतिशत तक रहा है।1967 से अब तक इस वायरस के 12 बड़े आउटब्रेक हो चुके हैं और ज्यादातर दक्षिणी और पूर्वी अफ्रीका में हुए थे।
निम्न टेस्ट मारबर्ग वायरस के परीक्षण के लिए -
मारबर्ग वायरस संक्रमण का पता लगाने के लिए डायग्नोस्टिक टेस्ट-ELISA ,एंटीजन डिटेक्शन टेस्ट, सीरम न्यूट्रलाइजेशन टेस्ट ,RT-PCR ,सेल कल्चर के जरिए वायरस आइसोलेशन आदि कराने चाहिए।
इसका इलाज और उपाय-
इसके इलाज के लिए कोई वैक्सीन या एंटीवायरल ट्रीटमेंट मंजूर नहीं है, हालांकि सपोर्टिव केयर जैसे रिहाइड्रेशन और विशिष्ट लक्षणों के उपचार से, सर्वाइवल में सुधार होता है।
पहली बार मारबर्ग वायरस (Marburg Virus) ने अफ्रीका में हमला किया है। इसलिए स्वास्थ्य सेवाओं से संबंधित अधिकारी बेहद सतर्क हैं। लोगों को इसके बारे में जागरूक किया जा रहा है।सामुदायिक कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।
ताकि इस वायरस को फैलने से रोकने में लोगों की मदद मिल सके। इस काम 10 WHO एक्सपर्ट गिनी और आसपास के इलाकों में तैनात कर दिए गए हैं, ताकि मारबर्ग वायरस से संबंधित हर तरह की जानकारियों पर पूरी निगरानी रखी जा सके।
अच्छी खबर ये है कि इस मारबर्ग महामारी के इतिहास को देखें तो इबोला के मुकाबले ये काफी छोटे स्तर पर और सीमित स्तर पर हुआ है।तो ये सारी दुनिया मे फैलेगा इसकी संभावना कम हैं।
इसके अलावा भी कई अन्य वायरस है जिनके नाम शायद ही लोगों ने सुने हैं। कुछ वायरस तो बीते एक दशक पहले ही सामने आये थे जिसके बारे में लोगों को पता है मगर कई वायरस ऐसे भी हैं जो कोरोना से कहीं अधिक खतरनाक हैं मगर उनके बारे में अब तक न तो लोगों ने सुना है ना ही उनको इसके बारे में जानकारी है। ये कुछ निन्म वायरस इस प्रकार हैं-
कोरोना वायरस -
जिस वायरस ने पिछले एक साल से सारी दुनिया मे तहलका मचा दिया हुआ उसे तो अब जन्म लेने के साथ ही बच्चा जानने लगा है।इस वायरस की कई किस्में हैं। इस वायरस से पहले साल 2012 में सऊदी अरब में मर्स वायरस का फैलाव हुआ था, जोकि कोरोना वायरस की ही एक किस्म है। यह पहले ऊंटों में फैला वहां से इसका संक्रमण इंसानों में हुआ।
इससे पहले 2002 में सार्स फैला था जिसका पूरा नाम सार्स-कोव यानी सार्स कोरोना वायरस था। इस वायरस ने 26 देशों में तहलका मचाया था, इन दिनों इसी सार्स वायरस की दूसरी कैटेगरी से लोग परेशान है।इसके अलावा ये अल्फा, बीटा ,गामा, अल्फा प्लस ,डेल्टा प्लस वेरियंट्स के माध्यम से अपनी दहशत फैला रहा है।
इबोला वायरस -
ये वायरस भी संक्रामक था। साल 2013 से 2016 के बीच पश्चिमी अफ्रीका में इबोला संक्रमण फैला था। इस वायरस ने यहां पर 11000 से ज्यादा लोगों की जान ली थी। इबोला वायरस की भी कई किस्में होती हैं। सबसे घातक किस्म के संक्रमण से 90 फीसदी मामलों में मरीजों की मौत हो जाती है।
हंटा वायरस -
कोरोना के बाद इन दिनों चीन में हंटा वायरस के बारे में भी खबरें आ रही है। यहां पर इस वायरस से एक व्यक्ति की मौत की भी खबर है, इसी के बाद से ये वायरस भी चर्चा में आ गया है। बताया जा रहा है कि यह कोई नया वायरस नहीं है, इस वायरस के लक्षणों में फेफड़ों के रोग, बुखार और गुर्दा खराब होना शामिल हैं। ये रोग चूहे से इंसान के शरीर में होना बताया जा रहा है। कहा जा रहा है कि जिस चीज को चूहा खा लेता है या अपने दांत लगा देता है और उसी चीज का सेवन कोई आदमी कर लेता है तो वो उस वायरस का शिकार हो जाता है.
रैबीज-
वैसे इस वायरस के बारे में अधिकतर लोगों को पता ही है। ये वायरस कुत्तों, लोमड़ियों और चमगादड़ों के काटने से फैलता है। कई बार पालतू कुत्तों के काटने के बाद भी रैबीज फैलने की संभावना होती है इससे बचाव के लिए इंजेक्शन लगवाया जाता है। लेकिन भारत में यह आज भी रेबीज समस्या बनी हुई है। यदि एक बार ये वायरस मनुष्य के शरीर में पहुंच जाए तो उसकी मौत पक्की मानी जाती है।
रोटा वायरस -
यह वायरस नवजात शिशुओं और छोटे बच्चों के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक होता है। साल 2008 में रोटा वायरस के कारण दुनिया भर में पांच साल से कम उम्र के लगभग पांच लाख बच्चों की जान चली गई थी।
चेचक -
ये काफी पुराना वायरस है। अक्सर दुनिया भर के गांवों में इस वायरस के मरीज पाए जाते रहे हैं। इंसान ने इस वायरस पर काबू पाने के लिए काफी लंबे समय तक जंग लड़ी। मई 1980 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने घोषणा की कि अब दुनिया पूरी तरह से चेचक मुक्त हो चुकी है, उससे पहले तक चेचक के शिकार हर तीन में से एक व्यक्ति की जान चली जाती थी। उसके बाद लोग सचेत हुए और उसी हिसाब से इलाज कराना शुरु किया।
इन्फ्लुएंजा -
दुनिया भर में हर साल हजारों लोग इन्फ्लुएंजा के शिकार होते हैं। दूसरे शब्दों में इसे फ्लू भी कहते हैं। 1918 में जब इसकी महामारी फैली तो दुनिया की 40% आबादी संक्रमित हुई और पांच करोड़ लोगों की जान गई थी। इसे स्पेनिश फ्लू का नाम दिया गया। वैसे अभी तक कोरोना वायरस से इतने लोगों की जान नहीं गई है मगर पूरी दुनिया डरी सहमी हुई है।
डेंगू -
देश के कई इलाकों में काफी संख्या में मच्छर पाए जाते हैं। मच्छर के काटने से डेंगू फैलता है। अन्य वायरस के मुकाबले इसकी मृत्यु दर काफी कम है लेकिन इसमें इबोला जैसे लक्षण हो सकते हैं। साल 2019 में अमेरिका ने डेंगू के टीके को अनुमति दी थी।
एचआईवी -
साल 1980 के दशक में एचआईवी की पहचान हुई थी। वायरस की पहचान हो जाने के बाद से अब तक तीन करोड़ से ज्यादा लोग इस वायरस के कारण अपनी जान गंवा चुके हैं, एचआईवी वायरस की वजह से एड्स होता है जिसका आज भी पूरा इलाज संभव नहीं है।