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रूस में मेडिकल पढ़ाई का कम हुआ क्रेज
मास्को : कुछ साल पहले मेडिकल की पढ़ाई करने के लिये भारतीय स्टूडेंट्स के लिये रूस टॉप डेस्टीनेशन हुआ करता था। लेकिन अब ऐसा नहीं है। पिछले कुछ सालों में ये सिलसिला धीमा पड़ता गया है।
एक जमाने में ज़्यादा से ज़्यादा भारतीय छात्र रूस में मेडिकल या इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने आते थे। वो शीत-युद्ध का दौर था और भारत-रूस सबसे करीबी दोस्तों में थे। लेकिन समय के साथ छात्रों ने अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों का रुख करना शुरू कर दिया और रूस इस रेस में थोड़ा पिछड़-सा गया। लेकिन आज भी दुनिया के सवा सौ से ज़्यादा देशों के छात्र रूस में मेडिकल और दूसरे विषयों की पढ़ाई करने आते हैं।
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रूस आकर पढऩे वाले इंडियन स्टूडेंट्स में से आज भी 90 फीसदी मेडिसिन की पढ़ाई कर डॉक्टर बनने आते हैं। वजह है पढ़ाई का थोड़ा सस्ता होना या फिर दूसरे देशों के मुक़ाबले थोड़ा आसानी से एडमिशन मिलना।
पिछले वर्षों में ऐसे कई मामले हुए हैं जिनमें रूस आकर मेडिसिन पढऩे वाले छात्रों को पहले से नहीं बताया गया था कि पूरी पढ़ाई रूसी भाषा में ही करनी है।
2017 में 'स्मोलेंस्क स्टेट मेडिकल यूनिवर्सिटी' के 100 से भी ज़्यादा भारतीय छात्रों को एक साल पढ़ाई कर भारत वापस लौटना पड़ा था क्योंकि उनके मुताबिक उन्हें नहीं बताया गया था कि पूरे छह साल रूसी भाषा में ही पढऩा पड़ेगा।
ये मामला रूस में भारतीय दूतावास तक भी पहुंचा था। रूस में भारतीय राजदूत पंकज सरन के अनुसार सोवियत संघ के जमाने में यहाँ बहुत स्टूडेंट्स पढ़ते थे, बीच में गिरावट आई लेकिन अब कुछ बढ़ोतरी हो रही है। 'असल में दोनों देशों में थोड़ा इन्फॉर्मेशन गैप है जिसको हमें कम करना है। दूसरी समस्या भाषा की है क्योंकि पढ़ाने का काम रूसी में है। तीसरा ये कि अभी भी हमारी दोनों सरकारों के बीच में डिग्री की मान्यता नहीं है। हकीकत यही है कि पिछले कुछ सालों में इस तादाद में जबरदस्त गिरावट आई है।
छात्रों की एक बड़ी चिंता ये भी रही है कि पढ़ाई पूरी करने के बाद भारत लौटने पर क्या होगा। दरअसल, भारत सरकार का नया नियम है कि विदेश में मेडिकल की पढ़ाई के लिये भी 'नीट' पास करना जरूरी है। इसके अलावा काउंसिल ऑफ़ इंडिया (एमसीआई) का नियम है कि रूस से डॉक्टरी की पढ़ाई कर भारत में प्रैक्टिस करने के लिए एक परीक्षा पास करनी पड़ेगी। दर्जनों मामले देखे गए हैं जब छात्र इस परीक्षा को पास नहीं कर सके और परेशानी में पड़ गए क्योंकि पढ़ाई के बाद रूस में काम करना मुमकिन नहीं रहता।