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Miniheart: वैज्ञानिकों ने विकसित किया मिनी हार्ट, 25 दिन के भ्रूण जैसी धड़कने

लैब में वैज्ञानिकों ने एक कृत्रिम 'मिनी हार्ट' (Miniheart) विकसित किया है। मानव कोशिका से विकसित हुआ, तिल के बीज के आकार में यह कृत्रिम दिल 25 दिनों के इंसानी भ्रूण में धड़कने वाले हृदय जैसी नकल करता है

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Newstrack NetworkPublished By Shweta
Published on: 28 May 2021 12:16 PM GMT (Updated on: 28 May 2021 12:20 PM GMT)
मिनी हार्ट
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मिनी हार्ट (फोटोः सौजन्य से सोशल मीडिया)

Miniheart: लैब में वैज्ञानिकों ने एक कृत्रिम 'मिनी हार्ट' (Miniheart) विकसित किया है। मानव कोशिका से विकसित हुआ, तिल के बीज के आकार में यह कृत्रिम दिल 25 दिनों के इंसानी भ्रूण में धड़कने वाले हृदय जैसी नकल करता है। इसके खोज से दिल की कई बीमारियों के जटिल राज खुल सकेंगे। विशेषज्ञों की मानें तो कृत्रिम दिल बनाने में मिली सफलता से वे दिल से जुड़ी अनेक बीमारियों के रहस्य से पर्दा उठा सकेंगे। इसकी खोज से यह भी पता चल जायेगा कि दिल का दौरा पड़ने के बाद शिशुओं के दिल क्यों नहीं झुलसते। ऑस्ट्रिया साइंस एकेडमी के वैज्ञानिकों ने इसे विकसित किया है।

बता दें कि असल में वैज्ञानिकाें का समूह यह शाेध करने में जुटा था कि भ्रूण में दिल की बीमारी कैसे विकसित हाे जाती है। वास्तविक रूप से भ्रूण में जन्मजात हृदय दोष सबसे ज्यादा पाए जाते हैं। प्रसिद्ध बायाेइंजीनियर जेन मा का कहना है कि हृदय की जन्मजात बीमारी और इंसानाें के दिल के कई महत्वपूर्ण राज खाेलने में यह शोध कारगर सिद्ध हाेगी।

लिवर और दिमाग जैसे कई अंग लैब में विकसित किए जा चुके हैं। मिशिगन यूनिवर्सिटी के स्टेम सेल वैज्ञानिक एटाेर एगुइरे का कहना है कि पिछले 10 वर्षो में दिमाग, लिवर जैसे कई अंग लैब में विकसित किए गए हैं, लेकिन यह सबसे ज्यादा सही है। धड़क रहे इंसानी दिल काे जिस तरह व्यवस्थित किया गया है, वह बिल्कुल असल जैसा है। इसमें सभी ऊतक और काेशिकाएं सिर्फ विकसित ही नही हुईं हैं बल्कि स्वयं ही संरचना में ढलकर वास्तविक आकार भी लेने लगीं।

कॉन्सेप्ट फोटो सोशल मीडिया

प्रमुख रिसर्चर डाॅ. साशा मेंडजन बताते हैं कि जब वह इसे पहली बार देखे तो उन्हे आश्चर्य हुआ कि ये चैंबर्स अपने आप बन सकते हैं। पूरी तरह व्यवस्थित दिल जब अपनी कार्य अवस्था में आ गया ताे वह सबसे ज्यादा खुश हुए। उनका शाेध सफल रहा।मेंडजन का कहना है कि यह मिनी हार्ट लैब में तीन महीने से भी अधिक समय तक जीवित रहे हैं। 12 साल बाद हमारी मेहनत कामयाब हुई है। हमने आर्गेनाइज्ड दिल के पार्ट्स काे फ्रीज भी कर दिया है ताकि आगे इस पर नई रिसर्च काे और भी बढ़ावा मिल सके।

शोधकर्ता डॉ. साशा मेंडजन कहते हैं कि जब तक हम इसे दुबारा नहीं बना सकते, तब तक हम किसी चीज को पूरी तरह नहीं समझ सकते। हमने इसको फिर से कर दिखाया। हालांकि इसके पहले चीनी वैज्ञानिकों ने भी कृत्रिम दिल बनाने का दावा किया था। लेकिन वह दिल स्टेम सेल से नहीं बना था। इसे बनाने में चुंबकीय और द्रव लेविटेशन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया था जिसके कारण मशीन में घर्षण नहीं होता और काम करने की क्षमता भी बढ़ जाती है।

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Shweta

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