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Nepal Political Crisis: नेपाल में नहीं थम रही सत्ता की उठापटक
Nepal Political Crisis: विपक्षी गठबंधन ने सरकार को ऐसी किसी भी गतिविधि को करने के खिलाफ चेतावनी दी है जिसका स्थायी प्रभाव हो सकता है।
Nepal Political Crisis: नेपाल में राजनीतिक संकट थमने का नाम नहीं ले रहा है। नये चुनावों की तैयारियों के बीच प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली (PM K. P. Sharma Oli) के लिए और परेशानी पैदा करते हुए अब विपक्षी गठबंधन ने सरकार को ऐसी किसी भी गतिविधि को करने के खिलाफ चेतावनी दी है जिसका स्थायी प्रभाव हो सकता है और सभी राज्य संस्थानों को ऐसी "असंवैधानिक" और "अलोकतांत्रिक" गतिविधियों का समर्थन न करने को कहा है। विपक्ष का यह रुख ऐसे समय में आया है जबकि प्रतिनिधि सभा के विघटन को चुनौती देने वाली एक रिट याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) द्वारा सुनवाई की जा रही है।
ताजा घटनाक्रम में नेपाल के विपक्षी गठबंधन ने राज्य संस्थानों से ओली सरकार की गतिविधियों का समर्थन नहीं करने का आग्रह किया है। इससे पहले विपक्ष ने एक संयुक्त बयान में सरकार को ऐसी कोई भी गतिविधि करने से परहेज करने की चेतावनी दी, जिसका देश और लोगों पर स्थायी प्रभाव हो सकता है। इसके बाद इसने सभी राज्य के अंगों और संस्थानों को ओली सरकार को उसके "असंवैधानिक" और "लोकतांत्रिक" कृत्यों में समर्थन नहीं करने को कहा है।
गठबंधन को उम्मीद पक्ष में होगा फैसला
गठबंधन ने बयान में कहा, "हमें यकीन है कि नेपाल का सर्वोच्च न्यायालय संविधान की रक्षा करेगा और हमारे पक्ष में फैसला देगा।" हमने 149 सांसदों के समर्थन से प्रधानमंत्री पद के लिए दावा पेश किया था। सरकार इस मामले में सदन को भंग करने का फैसला नहीं कर सकती है।"
इन नेताओं ने किए बयान पर हस्ताक्षर
नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा (Sher Bahadur Deuba), नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी- माओवादी केंद्र के अध्यक्ष पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' (Pushpa Kamal Dahal), सीपीएन-एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी माधव कुमार नेपाल के असंतुष्ट गुट के नेता, जनता समाजवादी पार्टी-नेपाल के सह-अध्यक्ष उपेंद्र यादव और राष्ट्रीय जनमोर्चा की उपाध्यक्ष दुर्गा पौडेल ने संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर किए। गौरतलब है कि नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी (Bidya Devi Bhandari) ने निचले सदन को भंग कर दिया है।
राष्ट्रपति ने किया है मध्यावधि चुनाव का एलान
शनिवार की सुबह, नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने प्रतिनिधि सभा को भंग कर दिया और घोषणा की कि मध्यावधि चुनाव 12 और 19 नवंबर को होंगे। भंडारी ने यह कदम नेपाल के पीएम केपी शर्मा ओली और विपक्षी नेता शेर बहादुर देउबा दोनों के सरकार गठन के लिए दावों को खारिज करने के बाद उठाया है। जबकि ओली ने दावा किया कि उन्हें जनता समाजवादी पार्टी के सदस्यों सहित 153 सांसदों का समर्थन प्राप्त है, नेपाली कांग्रेस अध्यक्ष देउबा ने माधव कुमार नेपाल के नेतृत्व वाले सीपीएन-यूएमएल प्रतिद्वंद्वी गुट के 27 सदस्यों वाले 149 सांसदों के हस्ताक्षर प्रस्तुत किए।
इन दोनों का जोड़ 302 हो रहा है जबकि नेपाल के प्रतिनिधि सभा में केवल 275 सदस्य हैं। हस्ताक्षरों और दावों के आधार पर, नेपाल के राष्ट्रपति ने पुष्टि की कि वह एक प्रधानमंत्री की नियुक्ति नहीं करने जा रही हैं क्योंकि दोनों दावेदारों के लिए विश्वास मत प्राप्त करने के लिए कोई ठोस आधार नहीं है।
शुक्रवार की रात ओली को फैसले से अवगत कराए जाने के बाद ओली ने कैबिनेट की बैठक की और निचले सदन को भंग करने की सिफारिश की। भंडारी ने अनुच्छेद 76(5) का सहारा लिया, जो संसद के विघटन और नए चुनावों का मार्ग प्रशस्त करता है यदि कोई भी अधिकांश सांसदों का समर्थन हासिल करने में सक्षम नहीं है।
देउबा को प्रधानमंत्री बनाने की मांग
इसके बाद, विपक्षी गठबंधन ने संविधान के अनुच्छेद 76 (5) के अनुसार प्रतिनिधि सभा की बहाली और शेर बहादुर देउबा को प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। शीर्ष अदालत की एक संवैधानिक पीठ ने मामले से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई की और रविवार को सुनवाई के दौरान उसने रिट याचिकाओं पर सुनवाई के लिए संवैधानिक पीठ के गठन पर ध्यान केंद्रित किया, जिनकी संख्या अब 30 से अधिक है।
यहां यह उल्लेख करना उचित होगा कि इससे पहले, 20 दिसंबर को, राष्ट्रपति ने संसद को भंग कर दिया था और 30 अप्रैल और 10 मई को मध्यावधि चुनाव बुलाए थे। हालांकि, दो महीने बाद, मुख्य न्यायाधीश चोलेंद्र शमशेर राणा के नेतृत्व वाली संवैधानिक पीठ ने 23 फरवरी को इसे उलट दिया था। निर्णय लिया और प्रतिनिधि सभा को बहाल कर दिया जाए। अब एक बार फिर गेंद सुप्रीम कोर्ट के पाले में है।
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