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Nepal PM Pushpa Dahal: जाने नेपाल के नए प्रधानमंत्री के बारे में, पहले थे खतरनाक नक्सली

Nepal PM Pushpa Dahal: कम्युनिस्ट नेता पुष्प कमल दहाल उर्फ प्रचंड तीसरी बार नेपाल के प्रधानमंत्री बन गए। उन्होंने सोमवार शाम को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली।

Krishna Chaudhary
Published on: 26 Dec 2022 6:53 PM IST
Communist leader Pushpa Kamal Dahal Prachanda became the Prime Minister of Nepal for the third time.
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कम्युनिस्ट नेता प्रचंड ने तीसरी बार संभाली नेपाल की बागडोर, जानें भारत के साथ संबंधों पर क्या पड़ेगा असर: Photo- Social Media

New PM in Nepal: भारत के पड़ोसी देश नेपाल में एकबार फिर सत्ता परिवर्तन हुआ है। चुनाव में एक दूसरे के खिलाफ लड़ने वाले सियासी दल नाटकीय रूप से नतीजे आने के बाद एक-दूसरे के साथ खड़े हो गए। जिसके फलस्वरूप कम्युनिस्ट नेता पुष्प कमल दहाल उर्फ प्रचंड (Pushpa Kamal Dahal Prachanda) तीसरी बार नेपाल के प्रधानमंत्री बन गए। उन्होंने सोमवार शाम को प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। वो तीसरी बार अपने देश के प्रधानमंत्री बने हैं। इससे पहले 2008 से 2009 और दूसरी बार 2016 से 2017 में प्रधानमंत्री बने थे।

पीएम मोदी ने दी बधाई

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने प्रचंड के नेपाल के प्रधानमंत्री बनने को लेकर बधाई दी है। उन्होंने ट्वीट कर कहा, भारत और नेपाल के बीच अद्वितीय संबंध हैं। गहरा सांस्कृतिक जुड़ाव है। दोनों देशों के रिश्ते लोगों के बीच गर्मजोशी भरे संबंधों पर आधारित हैं। मैं इस दोस्ती को और मजबूत करने के लिए आपके साथ मिलकर काम करने की आशा करता हूं।

किस समझौते के तहत पीएम बने नेपाल

राजनीतिक अस्थिरता के लिए कुख्यात नेपाल में साल 2015 में नया संविधान लागू होने के बाद से किसी प्रधानमंत्री ने अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया है। यहां की राजनीति में पलभर में दोस्त दुश्मन और दुश्मन दोस्त बन जाते हैं। प्रचंड का प्रधानमंत्री बनना इसका ताजा उदाहरण है। चुनाव में नेपाली कांग्रेस के साथ पूर्व पीएम केपी शर्मा ओली के खिलाफ लड़े प्रचंड की नियत नतीजे के आते ही बदल गई। हंग असेंबली के कारण उन्हें तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने का मौका दिखा।

प्रचंड ने नेपाली कांग्रेस के नेता और निर्वतमान प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा के सामने ढ़ाई-ढ़ाई साल सरकार चलाने का फॉर्मूला रखा। जिसमें पहले ढ़ाई साल वो सरकार चलाएंगे। देउबा प्रचंड की राजनीतिक मंशा से भली भांति परिचित थे, उन्हें पता था कि बाद में प्रचंड बारी आने पर कोई न कोई अड़ंगा जरूर लगाएंगे। लिहाजा उन्होंने प्रचंड के प्रस्ताव को खारिज कर दिया।

प्रचंड ने इसके बाद नेपाली कांग्रेस से अपना दो साल पुराना गठबंधन तोड़कर वापस अपने पुराने मित्र और पूर्व पीएम केपी शर्मा ओली के पास चले गए। ओली प्रचंड के प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए पहले ढाई साल उन्हें पीएम की कुर्सी देने के लिए राजी हो गए। समझौते के तहत ढ़ाई साल बाद ओली की पार्टी CPN-UML सत्ता संभालेगी। प्रचंड की सरकार में उनकी पार्टी सीपीएन-माओवादी और ओली की पार्टी के अलावा 4 और पार्टियां शामिल है। यानी 6 पार्टियों ने मिलकर नई सरकार का गठन किया है।

नेपाली संसद में सीटों का गणित

नेपाली संसद में कुल 275 सीटें हैं। चुनाव नतीजे जब आए तो पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा की पार्टी नेपाली कांग्रेस सबसे बड़े दल के रूप में उभरी लेकिन बहुमत से पीछे रही। नेपाली संसद में बहुमत के लिए 138 सीटों की दरकार होती है। लेकिन नेपाली कांग्रेस 89 सीटें ही जीत पाईं। चुनाव में दूसरी बड़ी पार्टी बनकर उभरी केपी शर्मा ओली की CPN-UML, जिसके खाते में 78 सीटें गई हैं। नेपाली संसद में सत्तारूढ़ खेमे के पास 169 सांसदों का समर्थन है। जिनमें CPN-UML के 78, सीपीएन माओवादी के 32, राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी के 20, राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के 14, जनता समाजवादी पार्टी के 12, जनमत पार्टी के 6, नागरिक उनमुक्ति पार्टी के 4 और 3 निर्दलीय सदस्य शामिल हैं।

प्रचंड ने ही गिराई थी ओली की सरकार

पूर्व पीएम केपी शर्मा ओली और मौजूदा पीएम प्रचंड दोनों विचार से साम्यवादी हैं लेकिन दोनों के रास्ते अलगे थे। प्रचंड जहां राजशाही के विरूद्ध हिंसक आंदोलन की वकालत करते थे, वहीं ओली हिंसा के सख्त खिलाफ थे। साल 2015 में नेपाल में नया संविधान लागू होने के बाद चुनाव हुए तो ओली प्रधानमंत्री बने। लेकिन अधिक दिनों तक उनकी सरकार चली नहीं और अगले साल यानी 2016 में उन्हें पद छोड़ना पड़ा। बदले राजनीतिक माहौल में पहली बार ओली और प्रचंड साथ आए। जिसके फलस्वरूप प्रचंड दूसरी बार प्रधानमंत्री बने।

2018 में दोनों पार्टियों का विलय हो गया और नेपाल कम्युनिष्ट पार्टी (एनसीपी) अस्तित्व में आई। बताया जाता है कि दोनों साम्यादी नेताओं को करीब लाने में चीन का बड़ा हाथ था। दोनों के साथ आ जाने से सदन में एनसीपी काफी मजबूत हो गई। नेपाली संसद में एनसीपी सांसदों की संख्या 173 हो गई। लेकिन ये एकता ज्यादा दिनों तक नहीं चली और 31 महीने के बाद एनसीपी फिर से दो धड़ों में बंट गया।

अब प्रचंड ओली की प्रधानमंत्री की कुर्सी की बलि लेने के लिए आमदा हो चुके थे। उन्होंने इसके लिए प्रमुख विपक्षी पार्टी नेपाली कांग्रेस से हाथ मिलाया और ओली सरकार में शामिल में अपने सात मंत्रियों से इस्तीफा दिलवाया। नतीजतन ओली को कुर्सी छोड़ना पड़ा। जिसके बाद प्रचंड के समर्थन से नेपाली कांग्रेस के शेर बहादुर देउबा प्रधानमंत्री बने। प्रचंड ने अब दो साल बाद फिर से पलटी मारी है।

प्रचंड-ओली भारत का करते रहे हैं विरोध

नेपाल के इन दो कम्युनिष्ट नेताओं का भारत विरोध का एक इतिहास रहा है। दोनों समय – समय पर अपने राजनीतिक फायदे के लिए नेपाल में भारत के खिलाफ आग उगलते रहे हैं। इसलिए ये दोनों नेता चीन के गुडबुक में रहे हैं। कुछ लोग इनके भारत विरोधी रवैये को देखते हुए भविष्य में नेपाल के साथ रिश्तों में तनाव आने की बात कर रहे हैं। पूर्व पीएम केपी शर्मा ओली ने तो हालिया आम चुनाव के दौरान भी भारत के खिलाफ काफी जहर उगला था।

वहीं, साल 2008 में प्रचंड जब पहली बार नेपाल के प्रधानमंत्री बने थे, तब उन्होंने अपने बयानों और कदमों से भारत को जोर का झटका दिया था। जबकि राजशाही के खिलाफ छेड़े गए संघर्ष के दौरान उनके जैसे कई माओवादी नेताओं को भारत में प्रश्रय मिला था। इसके बावजूद प्रचंड पहली बार पीएम बनने के बाद सीधे चीन की यात्रा पर चले गए। उनके सत्ता संभालने से पहले तक नेपाल में जब भी कोई प्रधानमंत्री बनता था तो पहला आधिकारिक दौरा हमेशा भारत का करता था। लेकिन उन्होंने इस परंपरा को तोड़कर सबको चौंका दिया था।

इसके अलावा नेपाल में जब भी ये दोनों राजनेता (ओली एवं प्रचंड) किसी सियासी असफलता का शिकार होते हैं तो इसका ठीकरा वो भारत पर जरूर फोड़ते हैं। मसलन साल 2009 में जब महज एक साल में प्रचंड को प्रधानमंत्री पद छोड़ना पड़ा था, तब उन्होंने इसके लिए भारत को जिम्मेदार ठहराया था। इसी तरह साल 2016 में जब केपी शर्मा ओली को पद छोड़ना था तो उन्होंने भी इसके पीछे भारत को बताया था।

जुलाई 2022 में दिल्ली आए थे प्रचंड

पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड इस साल जुलाई में भारत दौरे पर आए थे। इस दौरान उनकी मुलाकात भारत की सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात हुई थी। प्रचंड ने तब कहा था कि वे नड्डा के न्यौते पर भारत आए हैं। नेपाल लौटते समय उन्होंने कहा था कि हमारी कई ऐसे मुद्दों पर बातचीत हुई जो पिछले काफी समय से अनसुलझे हैं। ऐसे में राजनीतिक जानकार मानते हैं कि प्रचंड के रूख में अब भारत को लेकर नरमी आई है। जिसके सकारात्मक परिणाम दिखेंगे।

कौन हैं प्रचंड

प्रचंड का जन्म 11 दिसंबर 1954 को नेपाल के कास्की जिले के पोखारा के पास ढिकुरपोखारी में एक साधारण परिवार में हुआ था। 25 साल भूमिगत रहकर प्रचंड ने नेपाल में राजशाही के विरोध में सशस्त्र संघर्ष चलाया। यही वजह है कि पेशे से शिक्षक रहे प्रचंड को नेपाल में राजशाही खत्म कर लोकतंत्र स्थापित करने वाले बड़े चेहरों में गिना जाता है। हालांकि, उनके 10 साल के सशस्त्र आंदलोन के कारण नेपाल में काफी निर्दोष लोगों का खून भी बहा, जिसे लेकर उनकी आलोचना होती रहती है। माओवादी इस संघर्ष को एक जनयुद्ध के रूप में देखते हैं।

Shashi kant gautam

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