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Russia-Ukraine War: आर्थिक प्रतिबंध बेअसर, रूस अब दिखायेगा अपनी कमोडिटी सुपर पावर
Russia-Ukraine War: रूसी प्रेसिडेंट पुतिन की कार्रवाई के चलते रूस एक कमोडिटी सुपर पावर में तब्दील हो गया है।
Russia-Ukraine War: यूक्रेन (Ukraine) के खिलाफ रूस (Russia) की कार्रवाई ने विश्व पॉलिटिक्स को कुछ ही घंटों में बदल दिया है। अब विश्व व्यवस्था पश्चिमी लोकतंत्रों के बजाए रूस के लिए अनुकूल हो गई है। जिस तरह तेल के लिए दुनिया को खासकर सऊदी अरब (Saudi Arab) अपनी उंगलियों पर नचाता है, ठीक वैसे ही खाद्य पदार्थों (foodstuffs) के लिए यूरोप यूक्रेन पर निर्भर है सो रूस का यूक्रेन पर कब्जा इस फ़ूड सप्लाई (food supply) को पूरी तरह प्रभावित करेगा।
रूसी प्रेसिडेंट पुतिन (Vladimir Putin) की कार्रवाई के चलते रूस एक कमोडिटी सुपर पावर (Commodity Super Power) में तब्दील हो गया है जो तेल (Oil), मेटल (metals), ऊर्जा (energy)और वैश्विक अनाज (global grain) आपूर्ति पर महत्वपूर्ण कंट्रोल करने की पोजीशन में है। यूरोप की स्थिति पूरी तरह रूस के हाथ में चली गई है। वास्तविकता यह है कि रूस अंतरराष्ट्रीय व्यापार सिस्टम के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। वह ब्रेड से लेकर यूरोप के घरों और बिजली संयंत्रों के लिए पेट्रोल डीजल और एयरलाइन्स और कार संयंत्रों के लिए सप्लाई चेन तक को प्रभावित कर सकता है।
अभी तक बहुत कम लोग जानते होंगे कि यूरोप में रेपसीड तेल के आयात का लगभग 90 प्रतिशत यूक्रेन से आता है, या स्पेन में पशु आहार आयात यूक्रेन से ही आता है या फिर सूरजमुखी के तेल का सबसे बड़ा सप्लायर यूक्रेन ही है। यूक्रेन वैश्विक गेहूं निर्यात के 30 प्रतिशत और मकई निर्यात के 20 प्रतिशत को नियंत्रित करता है।
उच्चतम स्तर पर दाम
मौजूदा संकट के चलते ब्रेंट क्रूड ऑयल आठ साल के उच्च स्तर 102 डॉलर पर पहुंच कर आगे बढ़ रहा है। एल्युमीनियम ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। शिकागो का गेहूं वायदा दाम 9.32 डॉलर प्रति बुशल (30 किलो) पर पहुंच गया है। लेकिन दामों में ये वृद्धि को महंगाई नहीं समझना चाहिए। कमोडिटी की कीमतें बढ़ने का मतलब है कि कच्चे माल के निर्यातक अब ज्यादा वसूल रहे हैं। उनके पास भरपूर माल है लेकिन अब वह मनमाने दामों पर सप्लाई कर रहे हैं। यह एक टैक्स की तरह है जिसके चलते लोगों के लिए कहीं और खर्च करने के लिए पैसा कम बचता है। यह अधिकांश अर्थव्यवस्थाओं के लिए अपस्फीतिकारी है। अगर यह लंबे समय तक जारी रहा तो हम मंदी की चपेट में आ जाएंगे।
पश्चिम की परीक्षा
इस स्थिति में जब पश्चिमी देश रूस के खिलाफ कठोर प्रतिबंधों की बात करते हैं तो वस्ततुः असल परीक्षा उन देशों की दुश्वारियों की होने वाली है। दरअसल, राजनीतिक बयानबाजी के रूप में प्रतिबंध निश्चित रूप से अनिवार्य हैं। अगर अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों ने कुछ नहीं किया तो इसे पश्चिम की मिलीभगत मानी जायेगी। एक्सपर्ट्स का अनुमान है कि आत्मनिर्भरता की इस प्रतियोगिता को रूस कहीं ज्यादा मजबूती से सहन कर लेगा।
रूस के खिलाफ पश्चिमी देशों के प्रतिबंध सिर्फ बयानबाजी भर हैं। ब्रिटिश संसद में बहस, रूसी बैंकों पर प्रतिबंध आदि एक मजाक मात्र हैं। इन सबसे पुतिन पर रत्ती भर फर्क नहीं पड़ने वाला है। अमेरिका के पूर्व प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रम्प ने भी कहा है कि दो डालर के प्रतिबंध किसी काम के नहीं हैं। इन सबसे पुतिन डरने वाले नहीं हैं।
जर्मनी का नॉर्ड स्ट्रीम 2 गैस पाइपलाइन का अस्थायी निलंबन भी कागजी शेर है। इस पाइप लाइन से एक्स्ट्रा सप्लाई शुरू होने में दस साल लगने वाले हैं। एक बार जब पुतिन यूक्रेन को नियंत्रित कर लेंगे तो नॉर्ड स्ट्रीम 2 का कोई मतलब ही नहीं रह जाता है।
कोई वित्तीय असर नहीं
रूस के पास 635 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है। इसका सकल घरेलू उत्पाद का 18 प्रतिशत राष्ट्रीय ऋण है, जो दुनिया में सबसे कम है। इसके पास राजकोषीय अधिशेष है और यह राज्य को वित्तपोषित करने के लिए विदेशी निवेशकों पर बहुत अधिक निर्भर नहीं करता है। यानी आर्थिक प्रतिबंधों से कोई असर नहीं पड़ने वाला है।