×

जिहादियों के आगे घुटने टेक चुका है पाकिस्तान

seema
Published on: 16 Nov 2018 1:45 PM IST
जिहादियों के आगे घुटने टेक चुका है पाकिस्तान
X
जिहादियों के आगे घुटने टेक चुका है पाकिस्तान

इस्लामाबाद। 1971 में पैदा हुई बीबी ने अपने जीवन के सबसे अहम साल जेल में बिताए हैं। पांच बच्चों की मां आसिया बीबी पर 2009 में ईशनिंदा का आरोप लगा और 2010 में उसे फांसी की सजा सुनाई गई। तबसे वो जेल में थी और हाल में सुप्रीमकोर्ट के आस्रदेश पर रिहा हुई है। आसिया बीबी एक इसाई महिला है और मात्र पानी पीने के विवाद ने उसकी जिंदगी बदल के रख दी है।

पाकिस्तान में किसी को जेल भिजवाने के लिए ईशनिंदा का आरोप लगा देना काफी है। आसिया बीबी के मामले में लगभग एक दशक बाद 31 अक्टूबर 2018 को देश के सुप्रीम कोर्ट ने उसके हक में फैसला सुनाया। अदालत के फैसले का तार्किक नतीजा तो यही होना चाहिए था कि बीबी की फौरन रिहाई हो जाती। लेकिन अधिकारियों को मजबूरन हफ्ता भर बीबी को जेल में ही रखना पड़ा। इस्लामी कट्टरपंथी उसकी फांसी की मांग करते रहे और अदालत के खिलाफ सड़कों पर उतर आए। कई शहरों में तो कट्टरपंथियों ने दुकानों और गाडिय़ों को आग लगा दी।

यह भी पढ़ें : यमन में जारी खूनी संघर्ष में 150 नागरिकों की हुई मौत

नारे लगाए गए कि ईशनिंदा करने वाले को जीने का कोई हक नहीं है। तहरीक ए लब्बैक नाम के संगठन ने तो यहां तक ऐलान कर दिया कि बीबी की रिहाई का फैसला लेने वाले जजों की जान ले लेनी चाहिए। वे तो फौजियों से भी अपील करने लगे कि सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के खिलाफ विद्रोह कर दें। इन गंभीर धमकियों के बावजूद पाकिस्तान सरकार कट्टरपंथियों को कड़ा जवाब नहीं दे सकी। हद तो ये हो गई कि प्रधानमंत्री इमरान खान की सरकार ने डर के मारे आसिया बीबी के देश से बाहर जाने पर रोक लगाने की बात भी मान ली।

सरकार ने तहरीक ए लब्बैक के साथ अपने समझौते को यह कहते हुए तार्किक बताया कि वह सड़कों पर और हिंसा नहीं चाहती। हो सकता है कि सरकार सिर्फ स्थिति से निपटने के लिए थोड़ा और वक्त हासिल कर रही थी। दिवाली वाले दिन खबर आई कि आसिया बीबी को जेल से रिहा कर दिया गया है और शायद उसे जल्द ही देश से बाहर भी भेज दिया जाए ताकि उसकी सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। लेकिन इसके बाद आसिया के देश छोडऩे पर रोक लगाने की घोषणा कर दी गई।

बीबी का यह मामला दिखाता है कि ईशनिंदा आज भी पाकिस्तान में एक संवेदनशील मुद्दा है। बड़ी बात ये है कि 1980 के दशक में बने ईशनिंदा कानून को बदला ही नहीं जा सकता। इसका विरोध करना या फिर इसमें बदलाव की मांग करने को भी ईशनिंदा ही माना जाता है। 2011 में दो नेताओं की इसी कारण जान भी चली गई थी। ये दोनों बीबी का समर्थन कर रहे थे और कानून बदलने की पैरवी भी कर रहे थे।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा बीबी की रिहाई का फैसला सकारात्मक जरूर है लेकिन जिस कानूनी बुनियाद पर जजों ने फैसला सुनाया है, वह समस्याओं से भरी है। जजों ने कहा कि बीबी के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं मिले। इस तरह का फैसला कोई मिसाल कायम नहीं करता सब जानते हैं कि पाकिस्तान में झूठे सबूत खड़े करना कितना आसान है। (डीडब्लू)



seema

seema

सीमा शर्मा लगभग ०६ वर्षों से डिजाइनिंग वर्क कर रही हैं। प्रिटिंग प्रेस में २ वर्ष का अनुभव। 'निष्पक्ष प्रतिदिनÓ हिन्दी दैनिक में दो साल पेज मेकिंग का कार्य किया। श्रीटाइम्स में साप्ताहिक मैगजीन में डिजाइन के पद पर दो साल तक कार्य किया। इसके अलावा जॉब वर्क का अनुभव है।

Next Story