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Ish Ninda Kanoon: पाकिस्तान का ईशनिंदा कानून क्या है? अब तक हो चुकी हैं सैकड़ों हत्याएं
Ish Ninda Kanoon: पाकिस्तान में 1986 के बाद से अल्पसंख्यकों, खासकर हिन्दू और ईसाई लोगों के खिलाफ ईशनिंदा के 1,500 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं। लेकिन इनमें से किसी भी मामले में अदालत ने मौत की सजा नहीं सुनाई है।
Ish Ninda Kanoon: पाकिस्तान (Pakistan) के सियालकोट (Sialkot) में हाल में एक उन्मादी भीड़ ने ईशनिंदा के आरोप (Ish Ninda Ka Arop) में पहले एक श्रीलंकाई नागरिक को पीट-पीटकर मार (Sri Lanka Citizen Death) डाला और फिर उसके शव को आग के हवाले कर दिया। ईशनिंदा से जुड़ी भयानक हिंसा (Pakistan Hinsa) का ये पहला मामला नहीं है, पाकिस्तान में पहले भी इस तरह के कई मामले सामने आ चुके हैं। पाकिस्तान में 1986 के बाद से अल्पसंख्यकों, खासकर हिन्दू और ईसाई लोगों के खिलाफ ईशनिंदा (Ish Ninda) के 1,500 से अधिक मामले सामने आ चुके हैं।
इनमें से किसी भी मामले में अदालत ने मौत की सजा (Maut Ki Saja) नहीं सुनाई लेकिन अदालत के बाहर सैकड़ों लोगों की हत्या ईशनिंदा के आरोप में हो चुकी है। इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (International Court of Justice) की 2015 की रिपोर्ट कहती है कि ट्रायल कोर्ट्स ने ईशनिंदा के जिन मामलों में सजा सुनाई, उनमें से 80 प्रतिशत में बाद में सजा पलट या खत्म कर दी गई। दरअसल, जिस तरह पाकिस्तान (Pakistan) में कट्टरपंथियों के सामने सरकारें झुकती रहीं हैं उसमें इस तरह के उन्मादी मामले आना स्वाभाविक है।
आसिया बीबी का मामला रहा सबसे बदनाम
पाकिस्तान के ईशनिंदा (Blasphemy) कानून का सबसे बदनाम मामला आसिया बीबी से जुड़ा रहा। एक ईसाई महिला आसिया बीबी ने मुस्लिम महिलाओं को पानी का जग देने से पहले उससे पानी पी लिया था। इससे शुरू हुई कहासुनी आसिया बीबी के लिए आफत बन गई। उन्हें ईशनिंदा के आरोप में गिरफ्तार किया गया और 2010 में अदालत ने उन्हें दोषी मानकर मौत की सजा सुनाई। आसिया बीबी को इस आरोप में कई साल तक जेल में रहना पड़ा और उनके परिवार पर कई हमले हुए। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने उनको रिहा कर दिया लेकिन शीर्ष अदालत के फैसले का बहुत विरोध हुआ था। अंततः आसिया बीबी 2019 में पाकिस्तान छोड़कर कनाडा चली गई थीं।
इसी साल अगस्त में पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त में एक आठ वर्षीय हिंदू बच्चे पर ईशनिंदा कानून (Ish Ninda Kanoon) के तहत मामला दर्ज हुआ था। किसी मासूम पर यह कानून लगने का यह पाकिस्तान के इतिहास का पहला मामला था।
1860 में शुरू हुआ कानून
दरअसल, धर्म से जुड़े आपराधिक मामलों को 1860 में ब्रिटिश शासनकाल के दौरान संहिताबद्ध किया गया और 1927 में इनका दायरा बढ़ाया गया। शुरुआत में इसका मकसद उस व्यक्ति को दंड देना था, जो जानबूझकर किसी धार्मिक वस्तु या जगह को नुकसान पहुंचाता था। इसके अलावा किसी की धार्मिक भावनाओं को आहत करने को गैरकानूनी माना गया था। इस कानून के तहत 1 से 10 साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान किया गया था। देश के बंटवारे के बाद जब पाकिस्तान अलग देश बना तो उसने इस कानून को अपना लिया और 1980 के दशक की शुरुआत में इसमें संशोधन करके इसे और सख्त कर दिया।
सजा-ए-मौत का प्रावधान
1982 में ईशनिंदा कानून में एक धारा जोड़कर प्रावधान किया गया कि अगर कोई व्यक्ति मुसलमानों के पवित्र ग्रंथ कुरान को अपवित्र करता है उसे उम्रकैद की सजा होगी। इस संशोधन के चार साल बाद यानी 1986 में एक और धारा जोड़कर प्रावधान किया गया कि पैगंबर मोहम्मद (Paigambar Mohammad) के खिलाफ ईशनिंदा करने पर मौत या उम्रकैद की सजा दी जाएगी। जनरल जिया उल हक (General Muhammad Zia-ul-Haq) ने ईशनिंदा के इस कानून को पाकिस्तान दंड संहिता की धारा 295-बी और 295-सी के तहत लागू किया था। सख्त धाराएं जोड़ने से पहले 1927 से लेकर 1985 तक इस कानून के तहत केवल 58 मामले ही कोर्ट तक पहुंचे थे, लेकिन 1986 के बाद इनमें एकदम उछाल देखा गया।
पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून के खिलाफ बोलना भी खतरे से खाली नहीं है। पाकिस्तान के पंजाब के तत्कालीन गवर्नर सलमान तासीर आसिया बीबी को हुई सजा के खिलाफ थे और उन्होंने इस कानून में संशोधन की मांग की थी। इसी वजह से 2011 में उनके बॉडीगार्ड ने उनकी गोली मारकर हत्या कर दी। इसी तरह ईशनिंदा कानून के खिलाफ बोलने पर पूर्व मंत्री शाहबाज भट्टी (Shahbaz Bhatti) की हत्या की गई थी।
अन्य देशों की स्थिति
प्यू रिसर्च द्वारा 2015 में जारी की गई एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के 26 फ़ीसदी देशों में धर्म के अपमान से जुड़े क़ानून हैं जिनके तहत सज़ा के प्रावधान हैं। इनमें से 70 फ़ीसदी देश मुस्लिम बहुल है। इन देशों में ईशनिंदा के आरोप के तहत जुर्माना और क़ैद की सज़ा के प्रावधान हैं।
सऊदी अरब
सऊदी अरब में लागू शरिया क़ानून (Sharia Kanoon) के तहत ईशनिंदा करने वाले लोग मुर्तद यानी धर्म को ना मानने वाले घोषित कर दिए जाते हैं जिसकी सज़ा मौत है। 2014 में सऊदी अरब में आतंकवाद से निबटने के लिए नया क़ानून बनाया गया जिसमें साफ़ कहा गया है कि 'नास्तिकता का किसी भी रूप में प्रचार करना और इस्लाम के बुनियादी सिद्धांत जिन पर ये देश स्थापित है उनके बारे में सवाल उठाना दहशतगर्दी में आता है।'
ईरान
2012 में ईरान में नए सिरे से लाई गई दंड संहिता में ईशनिंदा के लिए एक नई धारा जोड़ी गई जिसके तहत धर्म को न मानने वाले और धर्म का अपमान करने वाले लोगों के लिए मौत की सज़ा तय की गई है। नई संहिता की धारा 260 के तहत कोई भी व्यक्ति अगर पैगंबर-ए-इस्लाम या किसी और पैगंबर की निंदा करता है तो उसे मौत की सज़ा दी जाएगी। इसी धारा के तहत शिया समुदाय के 12 इमामों और पैगंबर इस्लाम की बेटी की निंदा करने की सज़ा भी मौत है।
मिस्र
मिस्र के संविधान में 2014 में हुए सरकार विरोधी प्रदर्शनों के बाद संशोधन किया गया। अब इस्लाम को राष्ट्रीय धर्म का दर्जा दिया गया है और अन्य धर्मों को वैध माना गया है। मिस्र की दंड संहिता की धारा 98-एफ़ के तहत पर ईशनिंदा पर प्रतिबंध है और इस क़ानून का उल्लंघन करने वालों को कम से कम छह महीनों और अधिकतम पांच साल तक की सज़ा हो सकती है।
इंडोनेशिया
दुनिया की सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाले देश इंडोनेशिया में सरकारी नज़रिए के मुताबिक सिर्फ़ एक ख़ुदा पर यक़ीन किया जा सकता है। 1965 में पूर्व राष्ट्रपति सुकार्णो ने देश के संविधान में इशनिंदा के क़ानून को धारा ए-156 के मसौदे पर हस्ताक्षर किए थे लेकिन ये राष्ट्रपति सुहार्तो के शासनकाल में 1969 में लागू हुआ। इस क़ानून के तहत देश के सरकारी धर्म, इस्लाम, ईसाइयत, हिंदू, बौद्ध और कन्फ्यूसिज़्म से अलग होना, या इन धर्मों का अपमान करना, दोनों को ही ईशनिंदा माना गया है जिसकी ज़्यादा से ज़्यादा सज़ा पांच साल की क़ैद है। इस क़ानून के तहत किसी व्यक्ति पर मुक़दमा दर्ज करने से पहले जांच करना ज़रूरी है लेकिन अगर उस व्यक्ति पर दोबारा इस जुर्म के आरोप लगते हैं तो उस पर मुक़दमा चलाया जा सकता है।
मलेशिया
मलेशिया की दंड संहिता भी पाकिस्तान की तरह मूल रूप से अंग्रेज़ों की बनाई हुई दंड संहिता पर ही आधारित है। दोनों ही देशों में ईशनिंदा से जुड़े क़ानून बहुत हद तक मिलते जुलते हैं। मलेशियाई दंड संहिता की कुछ धारायें ईशनिंदा से जुड़ी हैं। इनके तहत किसी भी धर्म के धर्मस्थल का अपमान करना, धर्म के आधार पर समाज में फूट पैदा करना या लोगों को उत्तेजित करना, जानबूझकर किसी भी व्यक्ति की धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचाना अपराध है। इसके तहत अधिकतम तीन साल की सज़ा हो सकती है और जुर्माना लगाया जा सकता है। इसके अलावा दूसरे धर्मों की किताब में अल्लाह शब्द के इस्तेमाल पर भी पाबंदी है।
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