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पाकिस्तान के नए आका शरीफ: आसान नहीं ये इनका सफर, सामने हैं आर्थिक मोर्चे पर बहुत बड़ी चुनौतियां

Pakistan News: पाकिस्तान का आर्थिक संकट इतना विकट है कि शहबाज शरीफ के नेतृत्व वाली नवगठित गठबंधन सरकार को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।

Neel Mani Lal
Written By Neel Mani LalPublished By Shreya
Published on: 11 April 2022 9:08 PM IST
Pakistan News: शरीफ के सामने हैं आर्थिक मोर्चे पर बहुत बड़ी चुनौतियां
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शहबाज शरीफ (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

Pakistan New PM: पाकिस्तान की नेशनल असेंबली (Pakistan Assembly) ने अंततः लम्बी राजनीतिक उथल-पुथल के बाद एक नया प्रधानमंत्री चुन लिया है। लेकिन शहबाज शरीफ (Shehbaz Sharif) के नेतृत्व वाली नवगठित गठबंधन सरकार के सामने बड़ी चुनौतियां तो अब शुरू होने वाली हैं। और सबसे विकराल चुनौती ये है कि कैसे एक ढहती अर्थव्यवस्था (Pakistan Economy) को पुनर्जीवित किया जाए।

पाकिस्तान का आर्थिक संकट (Pakistan Economic Crisis) इतना विकट है कि सुप्रीम कोर्ट ने भी सभी पक्षों की दलीलें सुनते हुए शहबाज से सवाल किया था कि उन्होंने इससे निपटने की क्या योजना बनाई है। जवाब में, शाहबाज़ ने "अर्थव्यवस्था के चार्टर" की ओर इशारा किया, जिसे उन्होंने 2018 में नेशनल असेंबली में पेश किया था। लेकिन सच्चाई ये है कि अर्थव्यवस्था को त्रस्त करने वाली असंख्य समस्याओं से निपटने के लिए तत्काल और व्यापक उपायों की जरूरत है ताकि राजकोषीय असंतुलन को थामा जा सके, रुपये की गिरावट को रोका जा सके और मुद्रास्फीति पर लगाम कसी जा सके।

शहबाज शरीफ (फोटो साभार- सोशल मीडिया)

कठिन विकल्प चुनने की जरुरत

वैसे, पाकिस्तान की आर्थिक समस्याएं ठीक वैसी ही हैं जो कई अन्य देश झेल रहे हैं। ऐसे में शाहबाज़ क्या करिश्मा करेंगे इस पर सबकी निगाहें टिकी हुईं रहेंगी। नई सरकार को बाहरी और आंतरिक असंतुलनों को ठीक करने के लिए कुछ कठिन विकल्प चुनने होंगे। संकट की प्रकृति, गंभीरता और गति को देखते हुए, इन असंतुलनों को ठीक करने के लिए नीतियों को तुरंत लागू करने की आवश्यकता है। नई सरकार को तत्काल न्यूनतम आर्थिक एजेंडे पर आम सहमति बनानी होगी।

पाकिस्तान सांख्यिकी ब्यूरो (PBS) के आंकड़ों के अनुसार, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) आधारित मुद्रास्फीति मार्च में 12.72 प्रतिशत रही। लेकिन ये महत्वपूर्ण है कि इमरान खान द्वारा बिजली और पेट्रोल की कीमतों को फ्रीज़ करने की वजह से आंकड़ों में मुद्रास्फीति कम नजर आई है जबकि वास्तव में ये कहीं ज्यादा है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि असला आंकड़ा 15 फीसदी या उससे भी ज्यादा का हो सकता है। चिंताजनक बात ये भी है कि संवेदनशील मूल्य सूचकांक, जिसमें आवश्यक खाद्य पदार्थों की कीमतें शामिल हैं, अप्रैल के पहले सप्ताह में सालाना आधार पर 17.87 प्रतिशत दर्ज किया गया। ऐसे में मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है। सरकार विशेष रूप से खाद्य उत्पादों के दामों में वृद्धि पर रोक लगाने के लिए तुरंत प्रशासनिक उपाय कर सकती है।

सामान्य आर्थिक एजेंडा जरूरी

शाहबाज़ की सरकार एक खिचड़ी सरकार है जिनमें से प्रत्येक सहयोगी दल की अर्थव्यवस्था के प्रति बहुत अलग प्राथमिकताएं, एजेंडा और दृष्टिकोण हैं। इसलिए, एक सामान्य आर्थिक एजेंडा जरूरी है। एक आशंका ये भी है कि चुनाव की तैयारी कर रही सरकार कोई भी नीतिगत आर्थिक उपाय करने को तैयार नहीं होगी क्योंकि किसी भी कठोर कदम के चलते चुनावी कीमत चुकानी पड़ सकती है। अगर सरकार किसी राहत पैकेज से पेट्रोल और ऊर्जा की कीमतों पर सब्सिडी को बनाए रखने का विकल्प चुनती है तो इससे पहले से बिगड़ रहे राजकोषीय असंतुलन और बिगड़ेंगे।

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Shreya

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