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Panjshir Ka Itihas: महाभारत के पांडवों से पंजशीर का नाता, क्या है पांच शेरों से संबंध, कौन है पंजशीर का असली हीरो
Panjshir Ka Itihas : जिस पंजशीर को तालिबान के आतंकी भी जीत नहीं पा रहे, आखिर उस पंजशीर का इतिहास क्या है? पंजशीर में डटकर सामना करने वाले लड़ाके कौन हैं?
Panjshir Ka Itihas: अफगानिस्तान पर तालिबान के लड़ाकों ने कब्जा कर लिया। अफगानिस्तान में तालिबानी नई सरकार बनाने की कवायद में जुटे हैं लेकिन काबुल तक बिना जंग के पहुंचे तालिबानियों के लिए अब भी एक इलाका मुसीबत बना है। तालिबान अब तक पंजशीर पर कब्जा नहीं कर सका है। पंजशीर में तालिबान विरोधी लड़ाकों ने मोर्चा संभाला हुआ है और वे तालिबानियों को लगातार टक्कर दे रहे हैं।
जिस पंजशीर को तालिबान के आतंकी भी जीत नहीं पा रहे, आखिर उस पंजशीर का इतिहास क्या है? पंजशीर में डटकर सामना करने वाले लड़ाके कौन हैं? क्यों तालिबानी पंजशीर में कमजोर नजर आ रहे हैं?
पंजशीर का महाभारत से जुड़ा इतिहास
Panjshir Valley History in Hindi -तालिबान को टक्कर देने वाला पंजशीर का इतिहास भारत से जुड़ा हुआ है। महाभारत की पौराणिक कथा में इसका जिक्र होता है। पंजशीर का नाम पहले परवान प्रांत था। इस प्रांत के पास पंचमी नदी स्थित थी। पंचमी नदी का इतिहास महाभारत काल से सम्बंधित है। महाभारत काल में पंचमी नदी का जिक्र है। पांडवों से संबंध होने के कारण इसका नाम पंचमी पड़ा। बाद में पंजशीर हो गया। 2013 में एशिया और अफ्रीका की एक स्टडी में ये साबित हुआ था कि अफगानिस्तान का हजारों साल पहले घटित भारतीय पौराणिक कथा महाभारत से गहरा नाता है।
महाभारत के इतिहास में गन्धार साम्राज्य था। जिसपर हजारों साल पहले सुबाला नाम के राजा राज करते थे। उनकी पुत्री ओर गन्धार की राजकुमारी थीं गन्धारी। गन्धारी का विवाह हस्तिनापुर के राजा धृतराष्ट्र से हुआ था। राजा सुबाला की मृत्यु के बाद गन्धार के राजा गन्धारी के भाई शकुनी ने संभाली। बाद में उसी गन्धार साम्राज्य का बड़ा हिस्सा पाकिस्तान और अफगानिस्तान में बंट गया। जिसे आज कंधार के नाम से जाना जाता है।
पांडवो के नाम पर पड़ा पंजशीर नाम
भले ही कंधार कौरवों के ननिहाल से सम्बंधित है, लेकिन पंजशीर नाम पाण्डवो के नाम पर पड़ा। पंजशीर का मतलब है पांच शेर। फ़ारसी लहजे में पांच शेर को पंज शेर कहते हैं। शेर का अर्थ फारसी में सिंह या बबर शेर होता है। पांडव भी पांच थे। इसलिए शेर जैसे दिलेर पांच भाइयों के सम्मान में पंजशेर वादी का नाम पड़ा।
हालांकि कुछ पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित इतिहासकारों ने पंजशीर घाटी को लेकर अलग ही कहानी गढ़ी। उन इतिहासकारों का कहना था कि 10वीं शताब्दी ईसवीं में महमूद ग़ज़नी ने इस घाटी पर स्थित एक दुर्गम नदी पर बाँध डाला था। लेकिन भारतीय इतिहासकारों ने इस कहानी को झूठा बताया।
कहां है पंजशीर घाटी
Where Is Panjshir Valley- चलिए जानते हैं कि पंजशीर घाटी कहां है? पंजशीर उत्तर मध्य अफगानिस्तान में स्थित है। राजधानी काबुल से 150 किलोमीटर उत्तर में हिन्दू कुश पर्वतों में स्थित घाटी है पंजशीर। पंजशीर घाटी को पुराने जमाने मे रत्नों के लिए जाना जाता था। मध्य काल के दौरान पंजशीर प्रान्त से चांदी निकली थी। 1985 में इस क्षेत्र से उच्च कोटि के पन्ना मिल चुके हैं। ऐसे में आज भी यह क्षेत्र सम्भावित पन्ना उत्पादन का बड़ा केंद्र बन सकता है।
पंजशीर का इतिहास गुलामी के खिलाफ
इतिहास पर नजर डालें तो पंजशीर हमेशा से गुलामी के खिलाफ खड़ा मिला। पंजशीर वह प्रान्त है जिसपर तालिबान कभी कब्जा नहीं कर पाया। 2021 यानी वर्तमान में अफगनिस्तान के 34 प्रान्तों में से 33 पर कब्जा कर लिया है लेकिन पंजशीर अब तक उसके पकड़ से बाहर है।
ऐसा पहली बार नहीं हैज़ तालिबान को पंजशीर में पहले भी शिकस्त मिल चुकी है। 1996 में तालिबानियों ने पहली बार अफगानिस्तान पर कब्जा किया था। उस समय भी पंजशीर पर तालिबान कब्जा नहीं कर सके थे। तालिबान ही नहीं सोवियत संघ की फौज ने भी पंजशीर पर कब्जा करने की कोशिश की थी, लेकिन नाकाम रहे।
तालिबान के खिलाफ कौन है पंजशीर का हीरो
सवाल ये है कि तालिबानी आतंकियों के सामने पूरे अफ़ग़ानिस्तान ने घुटने टेक लिए। अफगानी राष्ट्रपति तक बिना जंग किये देश छोड़ कर भाग निकले तो पंजशीर अकेले तालिबानियों से जंग कैसे लड़ रहा है? इस जंग का महानायक कौन है? पंजशीर का हीरो कौन है, जो बाहरी ताकतों से इस इलाके को बचाता आ रहा है।
पंजशीर को लेकर विदेशी मीडिया ने एक शब्द को बेहद हाई लाइट किया वो है शेर-ए-पंजशीर। ये वो उपाधि है जो पंजशीर के रक्षक को मिली, जिनका नाम है अहमद शाह मसूद।
अहमद शाह मसूद को अफगानियों का हीरो कहा जाता है। साल 1995-096 में अहमद शाह मसूद के नेतृत्व में ही तालिबान को काबुल से हराया गया था। तालिबान के लिए अहमद शाह मसूद सबसे बड़ा दुश्मन था और अफगानियों के लिए उनका रक्षक। बाद में अहमद शाह मसूद की फिदायीन हमले में हत्या कर दी गयी थी। अब उनकी जंगी कमान और पंजशीर की रक्षा का जिम्मा अहमद शाह मसूद के बेटे को विरासत में मिली है और उस बार तालिबानियों से अहमद मसूद लोहा ले रहे हैं।