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Pervez Musharraf: अमेरिका के खास सिपहसालार बने थे परवेज मुशर्रफ, आइये जाने और भी किस्से
Pervez Musharraf Latest News: 9/11 के बाद अमेरिका द्वारा छेड़े गए "वॉर ऑन टेरर" में मुशर्रफ इस क्षेत्र में अमेरिका के खास सहयोगी ही नहीं बल्कि सबसे आगे रहे।
Pervez Musharraf Latest News: जनरल परवेज़ मुशर्रफ एक राजनयिक के बेटे थे और खुद भी अमेरिका (America) के साथ बेहतरीन डिप्लोमेसी करने के लिए जाने गए। खास बात ये भी रही कि परवेज़ ने अपनी ही जन्मभूमि यानी भारत के खिलाफ युद्ध लड़े। लेकिन उनके जीवन का अंतिम दौर देशद्रोह के आरोप और निर्वासन झेलते हुये बीता।
जरा पीछे चलते हैं - परवेज़ का जन्म पुरानी दिल्ली में हुआ था, भारत-पाकिस्तान विभाजन (Partition Of India) से सिर्फ चार साल पहले 1943 में। लेकिन उनके पिता ने पाकिस्तान को अपनी सरजमीं बनाने का फैसला किया और बंटवारे के कुछ समय बाद सपरिवार दिल्ली छोड़ कर कराची (Karachi) चले गए। मुशर्रफ वहीं पढ़े,बड़े हुए और सेना में जाने का फैसला किया।
1964 में बने पाकिस्तानी सैन्य अफसर
1964 में परवेज़ को पाकिस्तान की सेना (Pakistan Army) में कमीशन मिला। यानी वे एक सैन्य अफसर बन गए। इत्तेफाक की बात देखिए कि परवेज़ मुशर्रफ ने अपनी ही जन्मभूमि यानी भारत के खिलाफ सन 1965 और 1971 के युद्ध में भाग लिया।
बहरहाल, परवेज़ की रैंक तेजी से बढ़ी और 1998 में तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ द्वारा वे सेना प्रमुख के रूप में नियुक्त किये गए। चूंकि पाकिस्तान में सेना की बहुत बड़ी भूमिका रही है सो वहां का सेना प्रमुख बनना भी बड़ी बात रही। यहां भी इत्तेफाक देखिए कि जिसने मुशर्रफ को सेना प्रमुख बनाया वह नवाज़ शरीफ़ खुद भी घोटाले और ढेरों अन्य आरोपों से घिरे, जेल गए और अब लंदन में पड़े हुए हैं।
खैर, मुशर्रफ और प्रधानमंत्री शरीफ को जोड़ी खूब थी। दोनों ने मई 1998 में पाकिस्तान के परमाणु परीक्षणों की अध्यक्षता की, जो कुछ दिनों पहले उस देश के पोखरण क्षेत्र में इसी तरह के भारतीय परीक्षणों के जवाब में किए गए थे। लेकिन इस जोड़ी के बीच अक्टूबर 1999 तक काफी खटास आ गई थी।
नौबत ये आ गई कि जब मुशर्रफ श्रीलंका की आधिकारिक यात्रा से वापस उड़ान भर रहे थे उस समय नवाज़ शरीफ़ उनको बर्खास्त करने की घोषणा कर रहे थे। मुशर्रफ भी आखिर सेना प्रमुख थे। उन्होंने सेना को राज्य संस्थानों पर नियंत्रण करने का आदेश दिया और जैसे ही वह उतरे, उन्होंने खुद को पाकिस्तान के "मुख्य कार्यकारी" के रूप में घोषित किया, साथ ही आपातकाल की स्थिति की भी घोषणा की।
वह 2002 तक "मुख्य कार्यकारी" बने रहे। उसी वर्ष उन्होंने आम चुनाव आयोजित किया जिसकी वैधता और निष्पक्षता व्यापक रूप से विवादित रही है। मुशर्रफ की पीएमएल-क्यू पार्टी सत्ता में आई और उन्हें पार्टी अध्यक्ष नियुक्त किया गया। इस पद पर वे 2008 तक रहे।
आर्थिक सुधार
मुशर्रफ ने अपने शासनकाल में पाकिस्तान में सापेक्षिक आर्थिक स्थिरता बनाई, बाजारों को उदार बनाया और कई वर्षों तक आर्थिक विकास को बढ़ावा देने वाले ऋण की लाइनें खोलीं।
अमेरिका के सहयोगी
9/11 के बाद अमेरिका द्वारा छेड़े गए "वॉर ओं टेरर" में मुशर्रफ इस क्षेत्र में अमेरिका के खास सहयोगी ही नहीं बल्कि सबसे आगे रहे। इस दौरान यानी 2001 में अमेरिकी सेना ने अफगानिस्तान पर हमला किया था। मुशर्रफ ने खुद बताया था कि उन्हें तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री कॉलिन पॉवेल का फोन आया, जिन्होंने एक स्पष्ट अल्टीमेटम दिया : "आप हमारे साथ हैं या हमारे खिलाफ हैं।"
मुशर्रफ ने अमेरिका का साथ देना चुना, अफगान तालिबान के साथ संबंध तोड़ दिया। अमेरिका और नाटो की आपूर्ति को पाकिस्तान के माध्यम से अफगानिस्तान में प्रवाहित करने की अनुमति देकर अमेरिकी युद्ध को सुविधाजनक बनाया। पाकिस्तान के कुछ क्षेत्रों में अमेरिकी ड्रोन हमलों के उपयोग को अधिकृत किया और अन्य सुरक्षा सहायता की पेशकश की। उन्होंने पाकिस्तानी धरती पर आधारित सशस्त्र समूहों के खिलाफ सैन्य अभियानों की एक सीरीज़ का नेतृत्व किया जो विशेष रूप से बड़े पैमाने पर संघीय प्रशासित जनजातीय क्षेत्रों (फाटा) में केंद्रित था।
2007 में उन्होंने सेना को राजधानी इस्लामाबाद में एक मस्जिद पर धावा बोलने का आदेश दिया, जहां एक मुस्लिम नेता ने अपने आदेशों का पालन नहीं करने के लिए स्थानीय व्यवसायों पर हमले का आदेश देना शुरू कर दिया था। सेना की घेराबंदी में 100 से अधिक लोग मारे गए थे। विवादास्पद रूप से, मुशर्रफ ने नवंबर 2007 तक सेना प्रमुख का पद भी संभाला। इसी महीने उन्होंने अपने शासन के खिलाफ व्यापक विरोध के बाद दूसरा आपातकाल लागू किया था।
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