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पाकिस्तान असेंबली में जबरन धर्मांतरण व बाल विवाह बिल हुआ पेश
गौरतलब है कि पाकिस्तान में 75 लाख हिंदू हैं। जिसमें सबसे अधिक सिंध प्रांत में रहते हैं। सिंध प्रांत के सिर्फ उमरकोट जिले में जबरन शादी के 25 मामले हर महीने सामने आते हैं।
नई दिल्ली: सिंध प्रांत में दो नाबालिग हिंदू लड़कियों के अपहरण और जबरन धर्मांतरण का मामला सामने आने के बाद पाक के हिंदू सांसद डॉ.रमेश कुमार वांकवानी ने जबरन धर्मांतरण और बाल विवाह पर संसद में दो बिल पेश किए। इनमें बाल विवाह को संज्ञेय अपराध घोषित करने जबकि जबरन धर्मांतरण में शामिल लोगों के लिए न्यूनतम पांच साल व अधिकतम आजीवन कारावास का प्रस्ताव है।
बता दें कि अभी हाल ही में हुए नाबालिग हिंदू लड़कियों के अपहरण व धर्मांतरण के मामले में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने इसका संज्ञान लेते हुए पाकिस्तान से इस बारे में जवाब मांगा था। जिसके बाद जबरन निकाह पढ़ाने वाले मौलवी को गिरफ्तार किया गया था।
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सत्तारूढ़ पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के नेता डॉ. वांकवानी ने मंगलवार को नेशनल असेंबली में बाल विवाह निरोधक अधिनियम (संशोधन) विधेयक 2019 और आपराधिक कानून (अल्पसंख्यकों का संरक्षण) अधिनियम 2019 प्रस्तुत किया। पाकिस्तानी समाचार पत्र डॉन की रिपोर्ट के मुताबिक, ये बिल दो हिंदू लड़कियों के कथित अपहरण और इस्लाम में उनके जबरन धर्म परिवर्तन के मद्देनजर सभी प्रमुख राजनीतिक दलों के अल्पसंख्यक सांसदों के समर्थन के साथ पेश किए गए।
गौरतलब है कि पाकिस्तान में 75 लाख हिंदू हैं। जिसमें सबसे अधिक सिंध प्रांत में रहते हैं। सिंध प्रांत के सिर्फ उमरकोट जिले में जबरन शादी के 25 मामले हर महीने सामने आते हैं।
अल्पसंख्यक सांसदों ने ऐसी घटनाओं की जबरदस्त निंदा की और प्रस्ताव को अपनी हामी दी। वांकवानी के अलावा, पीटीआई विधायक लाल माली और शुनीला रूथ, पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज के सांसद डॉ. दर्शन और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के रमेश लाल ने प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए। पांच-सूत्रीय प्रस्ताव में जबरन धर्मांतरण के खिलाफ बिल को तत्काल पारित करने का आह्वान किया गया है, जिसे 2016 में सिंध विधानसभा द्वारा सर्वसम्मति से पारित किया गया था। हालांकि चरमपंथी तत्वों के दबाव के कारण अन्य विधानसभाओं में इसे पेश नहीं किया जा सका था।
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क्या है इस प्रस्ताव में खास
1. दोषी पाए जाने वालों को न्यूनतम पांच साल की कैद और अधिकतम आजीवन कारावास, पीड़ित को हर्जाना।
2. धर्म की आड़ में नफरत फैलाने वालों पर प्रतिबंधित धार्मिक संगठनों की तरह कार्रावाई हो।
3. सरकारी, पुलिस और न्यायिक सेवा से जुड़े अधिकारियों को अधिक संवेदनशील बनाने का सुझाव।
4. सुनवाई के लिए विशिष्ट अदालतों की स्थापना।
5. 18 साल के होने तक धर्मांतरण पर रोक।
6. नाबालिग द्वारा दूसरा धर्म अपनाने के दावों पर कोई कार्रवाई नहीं हो।