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Nepal: ओली को बड़ा झटका, राष्ट्रपति ने भंग की संसद, किया मध्यावधि चुनाव का एलान
Nepal: राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने संसद को भंग करते हुए मध्यावधि चुनाव का एलान कर दिया है।
Nepal: नेपाल की राजनीति में उस वक्त बड़ा तूफान आया जब देश के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली (K. P. Sharma Oli) ने संसद में अपना बहुमत खो दिया है और उनकी सरकार गिर गई है। 38 महीनों तक सरकार का नेतृत्व करने के बाद ओली को संसद में हार का सामना करना पड़ा और सत्ता से बाहर होना पड़ा। सत्ता खोने के बाद अब एक बार फिर से केपी शर्मा ओली को बड़ा झटका लगा है।
दरअसल, सरकार बनाने को लेकर फंसे पेच के बीच नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी (President Bidya Devi Bhandari) ने प्रतिनिधि सभा यानी संसद को भंग करते हुए मध्यावधि चुनाव का एलान कर दिया है। आपको बता दें कि प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली और विपक्षी दलों की ओर से राष्ट्रपति को सांसदों के हस्ताक्षर वाले पत्र सौंपकर नई सरकार बनाने का दावा पेश किया गया था।
राष्ट्रपति ने किया मध्यावधि चुनाव का एलान
लेकिन राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने केपी शर्मा ओली और शेर बहादुर देउबा दोनों के सरकार बनाने के दावे को खारिज कर दिया। इसके साथ ही उन्होंने मध्यावधि चुनाव का एलान कर दिया है। अब नेपाल में 12 और 19 नवंबर को मध्यावधि चुनाव होंगे। इसकी जानकारी नेपाल कार्यालय की ओर से दी गई है।
बता दें कि केपी शर्मा ओली और शेर बहादुर देउबा दोनों ही प्रधानमंत्री बनने के लिए पत्र लेकर पहुंचे थे। लेकिन दोनों नेताओं को राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने कहा था कि वो इस मामले में कानून भी देखेंगी। दोनों ही नेता बहुमत का दावा करने के लिए राष्ट्रपति कार्यालय पहुंचे थे। केपी शर्मा ओली ने 153 सदस्यों का समर्थन होने का दावा किया था, जबकि देउबा ने कहा कि उनके समर्थन में 149 सांसद हैं। इस समय बहुमत से सरकार बनाने के लिए 138 सीटों की जरूरत है।
रिपोर्ट्स की मानें तो गुरुवार को प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने संसद में अपनी सरकार का बहुमत साबित करने के लिए एक बार और शक्ति परीक्षण से गुजरने में अनिच्छा व्यक्त की थी। इस बीच शुक्रवार को केपी शर्मा ओली और नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा ने प्रधानमंत्री बनने के लिए राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी को सांसदों के हस्ताक्षर वाले पत्र सौंपकर नयी सरकार बनाने का दावा पेश किया था। मगर राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने दोनों ही नेताओं के सरकार बनाने के दावे को खारिज कर दिया।
सबसे बड़ा दल है सीपीएन-यूएमएल
आपको बता दें कि नेपाल की 275 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा में 121 सीटों के साथ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी- एकीकृत मार्क्सवादी लेनिनवादी (सीपीएन-यूएमएल) सबसे बड़ा दल है। ओली सीपीएन-यूएमएल के अध्यक्ष हैं। वहीं, दूसरी ओर शेर बहादुर देउबा नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष हैं और चार बार नेपाल के प्रधानमंत्री रह चुके हैं। वह 1995 से 1997 तक, 2001 से 2002 तक, 2004 से 2005 तक और 2017 से 2018 तक इस पद पर रहे हैं। देउबा 2017 में आम चुनावों के बाद से विपक्ष के नेता हैं।
गौरतलब है कि ओली को फरवरी 2018 में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (माओवादी सेंटर) के समर्थन से प्रधानमंत्री चुना गया था। इसके अध्यक्ष पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड हैं लेकिन मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने पार्टी के विलय को रद्द कर दिया था। 38 महीनों तक सरकार का नेतृत्व करने के बाद ओली को संसद में हार का सामना करना पड़ा और सत्ता से बाहर होना पड़ा।
वोट ऑफ़ कॉन्फिडेंस प्रस्ताव को पेश करते हुए, ओली ने कहा था कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश के विकास और राष्ट्र निर्माण के लिए अथक परिश्रम करने वाली सरकार को 'संकीर्ण और पक्षपातपूर्ण' हितों के लिए लक्षित किया जा रहा है। उन्होंने विपक्ष से किसी के खिलाफ झूठे आरोप नहीं लगाने को कहा।
विपक्ष ने लगाया था ये आरोप
बता दें कि प्रमुख विपक्षी नेताओं - शेर बहादुर देउबा (नेपाली कांग्रेस) और पुष्प कमल दहल प्रचंड (माओवादियों) ने ओली को कोरोनावायरस महामारी से निपटने में विफलता के लिए आरोपित किया, जिसके परिणामस्वरूप देश में मामलों और मृत्यु दर में वृद्धि हुई। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि उन्होंने कोविड -19 पीड़ितों के जीवन के साथ खिलवाड़ किया और आरोप लगाया कि भ्रष्टाचार और घोटालों 'ने भारत से टीकों के समय पर वितरण को बाधित कर दिया।