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म्यांमार: रोहिंग्या मुस्लिमों का 'बिन लादेन' बना विराथु

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Published on: 8 Sep 2017 11:31 AM GMT
म्यांमार: रोहिंग्या मुस्लिमों का बिन लादेन बना विराथु
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रंगून: म्यांमार में रोहिंग्या मुस्लिमों को लेकर संकट दिन-प्रतिदिन गहराता जा रहा है। अगस्त के आखिरी हफ्ते में रोहिंग्या विद्रोहियों ने कई पुलिस पोस्ट और आर्मी बेस पर हमला कर दिया। उसके बाद देश में बड़े पैमाने पर हिंसा हुई और सेना ने विद्रोहियों के खिलाफ जोरदार कार्रवाई की। सेना की कार्रवाई में चार सौ से अधिक लोग मारे गए हैं।

म्यांमार में बांग्लादेश की सीमा के निकट सोमवार को हुए बम विस्फोट में कई लोगों के हताहत होने की खबरें हैं। सेना की कार्रवाई के बाद रोहिंग्या मुस्लिम बांग्लादेश और भारत की ओर पलायन कर रहे हैं। दरअसल बहुसंख्यक बौद्ध आबादी वाले म्यांमार के रखाइन प्रांत में रोहिंग्या मुस्लिमों की अच्छी-खासी तादाद है।

यहां करीब पांच साल से सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं हो रही हैं। मानवाधिकारों की चैंपियन रहीं नोबेल शांति पुरस्कार विजेता और म्यांमार की स्टेट काउंसलर आंग सान सू इस मामले पर चुप्पी साधे हुए हैं। म्यांमार में हिंसा की घटनाओं के बीच कट्टरपंथी बौद्ध भिक्षु अशीन विराथु काफी चर्चाओं में हैं। रोहिंग्या मुस्लिमों के खिलाफ माहौल बनाने में उनकी बड़ी भूमिका मानी जा रही है।

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विराथु को बताया चरमपंथी

इंडोनेशिया में म्यांमार दूतावास के बाहर रोहिंग्या संकट को लेकर हुए प्रदर्शन में लोगों के हाथों में तख्तियां थीं जिन पर अशीन विराथु की तस्वीर के साथ चरमपंथी लिखा हुआ था। म्यांमार में अशीन विराथु की छवि कट्टरपंती बौद्ध भिक्षु की है। इसका कारण यह है कि वे अपने भाषणों के जरिये जहर उगलते हैं और अपने भाषणों से मुस्लिम अल्पसंख्यकों के खिलाफ माहौल बनाते हैं। 2015 में तो उन्होंने म्यांमार में संयुक्त राष्ट्र की विशेष प्रतिनिधि यांगी ली को लेकर विवादित बयान दिया था। जिसपर काफी बवाल हुआ था।

सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं विराथु

कट्टरपंथी भाषणों के कारण ही आज विराथु को सभी लोग जानने लगे हैं। एक दशक पहले तक उनके बारे बहुत कम लोग ही जानते थे। विराथु का जन्म 1968 में हुआ था। उन्होंने 14 साल की उम्र में स्कूल छोड़ दिया और भिक्षु का जीवन अपना लिया। बीबीसी के मुताबिक विराथु को पहली बार 2001 में लोगों ने तब जाना जब वे राष्ट्रवादी और मुस्लिम विरोधी गुट 969 के साथ जुड़े। म्यांमार में इस संगठन को कट्टरपंथी माना जाता है।

वैसे इस संगठन के समर्थक इन आरोपों को खारिज करते हैं। 2003 में उन्हें 25 साल जेल की स$जा सुनाई गई, लेकिन 2010 में वे जेल से बाहर आ गए। उन्हें अन्य राजनीतिक बंदियों के साथ रिहा कर दिया गया। सरकार से राहत मिलने के बाद विराथु तेजी से सक्रिय हुए और उन्होंने सोशल मीडिया के जरिये लोगों से जुडऩे पर ध्यान केंद्रित किया। विराथु ने यूट्यूब व फेसबुक के जरिये अपने संदेशों का प्रचार किया और लोगों को खुद से जोडऩे की कोशिश की। फेसबुक पर उनके 45 हजार से ज्यादा फॉलोवर बताए जाते हैं।

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राष्ट्रवाद की भावना जगाते हैं विराथु

2012 में उनकी सक्रियता उस समय और बढ़ गयी जब म्यांमार के रखाइन प्रांत में रोहिंग्या मुस्लिमों व बौद्धों के बीच हिंसा की घटनाएं हुईं। इसके बाद विराथु ने भड़काऊ भाषणों के जरिये लोगों से जुडऩे की कोशिश की। वे राष्ट्रवादी होने पर जोर देते हैं। अपने प्रवचन की शुरुआत वे खास अंदाज में करते हैं-आप जो भी करते हैं, एक राष्ट्रवादी के तौर पर करें।

उनके प्रवचन का व्यापक प्रचार किया जाता है। सियासी हलकों में उनके भाषणों को लेकर काफी चर्चा होती है। विराथु अपने प्रवचन के जरिए लोगों में राष्ट्रवाद की भावना जगाने का प्रयास करते हैं। बीबीसी के मुताबिक जब उनसे पूछा गया कि क्या वे बर्मा के बिन लादेन हैं तो उन्होंने जवाब दिया कि इससे इनकार नहीं करेंगे। वैसे कुछ रिपोर्टों में उन्हें कहते हुए बताया गया कि वे शांति के लिए काम करते हैं।

टाइम ने बताया था फेस ऑफ बुद्धिस्ट टेरर

विराथु म्यांमार में इतनी चर्चाओं में रहते हैं कि टाइम मैगजीन ने जुलाई 2013 में उन्हें कवर पेज पर छापा। कवर पेज पर उनकी फोटो के साथ दी गयी हेडलाइन का उनका परिचय कराने को पर्याप्त है। इसकी हेडलाइन थी-दि फेस ऑफ बुद्धिस्ट टेरर यानी बौद्ध आतंक का चेहरा। अपने उपदेशों में विराथु रोहिंग्या मुस्लिमों को खास तौर पर निशाना बनाते हैं। यही कारण है कि उन पर वैमनस्यता फैलाने का आरोप लगता रहा है।

रोहिंग्या मुस्लिमों के खिलाफ वे रैलियों का नेतृत्व भी कर चुके हैं। इन रैलियों में रोहिंग्या मुस्लिमों को किसी तीसरे देश भेजने की मांग की गयी। इन रैलियों में विराथु ने हिंसा के लिए रोहिंग्या मुस्लिमों को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने मुस्लिमों की ज्यादा संतानों को लेकर तमाम सवाल उठाए। वे म्यांमार में बौद्ध महिलाओं के जबरन धर्मांतरण का आरोप भी लगाते हैं।

विराथु के समर्थन के पीछे कूटनीतिक कारण

विराथु अपने विचारों को लेकर काफी कट्टर हैं। वे बौद्ध महिलाओं को बिना सरकारी इजाजत के अन्य धर्म के लोगों से शादी करने पर रोक लगाने वाले कानून के पक्ष में हैं और इसके लिए चलाए जा रहे अभियान की अगुवाई करते रहे हैं। हालांकि उनके समर्थकों की लंबी चौड़ी तादाद है मगर इसके साथ यह भी सच्चाई है कि उनकी आलोचना में भी आवाजें उठी हैं।

म्यांमार में इस बात को लेकर भी भय जताया जाता रहा है कि विराथु बाहरी दुनिया के सामने देश के बौद्ध समुदाय का चेहरा बनकर उभर रहे हैं। देश के कई लोगों का मानना है कि विराथु को बर्दाश्त करने के पीछे एक ठोस कारण है। सरकार उन्हें इसलिए बर्दाश्त कर रही है क्योंकि वे लोकप्रिय विचारों को आवाज दे रहे हैं।

सरकार कूटनीतिक कारणों से रोहिंग्या मुस्लिमों के बारे में जो बातें खुद नहीं कह पाती उन्हें विराथु आवाज देते हैं। धाॢमक मामलों के मंत्रालय का कहना है कि उनके खिलाफ तब तक कार्रवाई नहीं होगी जब तक उसे कोई शिकायत नहीं मिलेगी। वैसे विराथु पर महिला विरोधी होने का भी आरोप लगता रहा है। उन पर महिलाओं की शादी से संबंधित उस कानून की वकालत करने का आरोप है जो महिलाओं के खिलाफ बताया जाता रहा है।

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