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Israel-Hamas War: इसराइल-हमास जंगः ईरान को छोड़ अधिकतर इस्लामी देशों के रूख में दिखी नरमी?

Israel-Hamas War: इन इस्लामी देशों ने स्वतंत्र फलस्तीन राष्ट्र की वकालत तो की है लेकिन वहीं पहले की तरह इसराइल की कड़ी आलोचना करने से वो साफ बचते दिख रहे हैं। देखा जाए तो ईरान को छोड़ कर अधिकतर इस्लामी देशों ने हमास का पक्ष खुलकर लेने से परहेज किया है।

Ashish Kumar Pandey
Published on: 9 Oct 2023 5:40 PM IST (Updated on: 9 Oct 2023 5:45 PM IST)
What is the reaction of most Islamic countries regarding Israel-Hamas war
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इसराइल-हमास जंग को लेकर अधिकतर इस्लामी देशों की क्या है प्रतिक्रिया: Photo- Social Media

Israel-Hamas War: शनिवार को हमास द्वारा इसराइल पर हमले और इसके बाद इसराइल की जवाबी कार्रवाई पर पश्चिमी देश जहां एक सुर में इजरायल के पक्ष में बोलते दिख रहे हैं तो वहीं अक्सर फलस्तीन के लिए खुल कर अपना समर्थन जताने वाले मुस्लिम देशों ने सतर्क और सधी हुई प्रतिक्रिया दी है। इसराइल हमास जंग पर इन देशों का रुख बँटा हुआ दिख रहा है। इरान जहां खुल कर हमास का समर्थन कर रहा है तो वहीं कई मुस्लिम देश इजरायल और फलस्तीन से शांति बहाल करने की अपील की है।

इन इस्लामी देशों ने स्वतंत्र फलस्तीन राष्ट्र की वकालत तो की है लेकिन वहीं पहले की तरह इसराइल की कड़ी आलोचना करने से वो साफ बचते दिख रहे हैं। देखा जाए तो ईरान को छोड़ कर अधिकतर इस्लामी देशों ने हमास का पक्ष खुलकर लेने से परहेज किया है।

हमास के हमले ने सुधरते रिश्तों में डाल दी खलल-

इसरायल पर हमास का हमला ऐसे समय हुआ है जब इसराइल और मुस्लिम देशों के बीच रिश्ते सुधारने को लेकर कवायद चल रही थी। दोनों ओर से औपचारिक संबंध कायम करने के लिए 2020 में इसराइल और दो अरब देशों बहरीन और संयुक्त अरब अमीरात ने अब्राहम समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। कई मुस्लिम देश इसके समर्थक हैं।

ओआईसी ने दी सतर्क और सधी प्रतिक्रिया-

इस्लामी देशों के सबसे बड़े और अहम संगठन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक को-ऑपरेशन यानी ओआईसी ने इसराइल की कड़ी आलोचना के बजाय एक सतर्क और सधी प्रतिक्रिया दी है। संगठन ने कहा है कि वह फलस्तीन में इसराइल की कब्जा की गई जमीन पर उसके सैन्य कार्रवाई से चिंतित हैं। इसने सैकड़ों लोगों को शहीद किया है और बड़ी तादाद में फलस्तीन लोगों को घायल किया है।

इसराइली कब्जे की निंदा की-

ओआईसी ने गजा में इसराइली कब्जे की निंदा की और कहा है, "इसराइल समस्या का अंतरराष्ट्रीय मान्यता के हिसाब से हल निकालने में नाकाम रहा है। ओआईसी ने कहा कि इसराइली हमले में तेजी और फलस्तीनी लोगों के खिलाफ रोज हो रहे अपराध से वहां के लोगों की जमीन और संप्रुभता छिन चुकी है। वो अपने हक से वंचित हैं और यही वहां अस्थिरता का कारण है।"

यूएई ने हिंसा के लिए हमास को जिम्मेदार ठहराया-

ओआईसी ने इस संघर्ष के लिए इसराइली ‘कब्जे’ को जिम्मेदार ठहराते हुए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से इसराइली हमले को रोकने और शांति बहाल करने की अपील की है। लेकिन वहीं ओआईसी के एक अहम सदस्य संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने इस हिंसा के लिए फलस्तीनी चरमपंथी संगठन हमास को जिम्मेदार ठहराया। यूएई के विदेश मंत्रालय की ओर से जारी एक बयान में कहा गया कि इसराइली शहरों और गजा पट्टी के नजदीक गांवों पर हमास के हमले से संघर्ष ने भीषण रूप ले लिया है। हमास ने आबादी वाले इलाकों पर हजारों रॉकेट दागे हैं।

यूएई का विदेश मंत्रालय इस बात को लेकर बेहद चिंतित दिखा कि इसराइली लोगों को उनके घरों से निकाल कर बंधक बना लिया गया। यूएई ने कहा है कि दोनों ओर के नागरिकों को अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत पूरी सुरक्षा मिलनी चाहिए। उन्हें संघर्ष का निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए। यूएई अब्राहम एकॉर्ड पर हस्ताक्षर करने वाला देश है और फलस्तीनी इससे खुश नहीं थे।

सऊदी अरब के विदेश मंत्री फरहान अल-सऊद: Photo- Social Media

सऊदी अरब की दोनों पक्षों से हिंसा रोकने की अपील-

वहीं सऊदी अरब ने कहा है कि वो इसराइली सेना और अलग-अलग फलीस्तीनी गुटों के बीच संघर्ष पर नजदीकी निगाहें बनाए हुए है। सऊदी अरब के विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है कि सऊदी अरब दोनों पक्षों से हिंसा छोड़ने की अपील करता है। इसके साथ ही वो दोनों ओर के नागरिकों की सुरक्षा बहाल करने और संयम बरतने की अपील करता है। अपने बयान में कहा है, "गजा पट्टी में हालात जिस कदर विस्फोटक हो गए हैं वो इसराइल के लगातार कब्जे और फलस्तीनी लोगों को उनके कानूनी हक से वंचित करने का नतीजा है।"

तुर्की ने दिखाया नरम रुख?

हमास और इजरायल संघर्ष में सबसे ज्यादा चैंकाने वाला रुख तुर्की का रहा है। आमतौर पर इसराइल पर हमलावर तेवर अपनाने वाले तुर्की ने सधी हुई प्रतिक्रिया दी है। उसने इसराइल और हमास के बीच चल रहे संघर्ष पर चिंता जताते हुए इलाके में जल्द से जल्द शांति बहाल करने की अपील की है। तुर्की के विदेश मंत्रालय के एक बयान में कहा गया है, ‘’हिंसा बढ़ने का किसी भी पक्ष को फायदा नहीं होगा। तुर्की हालात काबू करने में सहयोग देने के लिए हमेशा तैयार है। इस दुखद घटनाक्रम ने साबित कर दिया है कि इसराइल और फलस्तीन दो राष्ट्र हैं। हम दोनों पक्षों से अपील करते हैं, वो हिंसा का रास्ता छोड़ एक स्थायी समाधान की दिशा में काम करें।’’

हालांकि तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैयप्प अर्दोआन ने बाद में एक बयान जारी करते हुए कहा कि एक स्वतंत्र और 1967 की सीमाओं के आधार पर स्वतंत्र और भौगोलिक तौर पर जुड़े फलस्तीन राष्ट्र को साकार करने का समय आ गया है। वो फलस्तीन जिसकी राजधानी यरुशलम (पूर्वी) हो। अर्दोआन ने कहा, ’’फलस्तीन-इसराइल संघर्ष को खत्म करने का कोई पक्का समाधान ही मध्य-पूर्व में शांति ला सकता है।’’


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जानिए कतर ने क्या कहा?

ओआईसी के सदस्य कतर ने भी शांति की अपील करते हुए कहा है कि वह इसराइल और हमास के बीच बढ़ते संघर्ष पर नजर रखे हुए है। खास कर इसराइल की सेना और लेबनान के हिजबुल्लाह गुट के बीच गोलीबारी पर। कतर के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा है, ’’कतर एक बार फिर सभी पक्षों से संघर्ष को आगे न बढ़ाने की अपील करता है। दोनों पक्ष पूरी तरह हिंसा छोड़ दें ताकि ये इलाके और बड़ी हिंसा के दुश्चक्र में न फंस जाए।’’ कतर ने कहा है कि वो संबंधित पक्षों से संवाद बनाए हुए है ताकि शांति और स्थिरता बहाल करने की अंतरराष्ट्रीय कोशिश को समर्थन मिल सके। कतर ने कहा है कि प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री शेख मोहम्मद बिन अब्दुल रहीम बिन जासिम अल-थानी अरब देशों के अपने समकक्षों से लगातार संपर्क कर रहे हैं और समस्या को सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं।

मलेशिया और इंडोनेशिया ने क्या कहा?

मलेशिया ने इसराइल और हमास के बीच संघर्ष पर चिंता जताते हुए कहा कि वो संघर्ष में हुई मौतों पर चिंतित है। मलेशिया के विदेश मंत्रालय द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि इस नाजुक समय में और ज्यादा जानें नहीं जानी चाहिए। जो विध्वंस हो रहा है और वो तुरंत रुके और दोनों पक्ष शांति और संयम से काम लेते हुए संघर्ष को रोकने की दिशा में बढ़े।‘‘ हालांकि मलेशिया ने ये भी कहा है कि इस समस्या की मूल वजह को समझना होगा। मलेशिया के विदेश मंत्रालय ने कहा, ‘‘फलीस्तीनियों की जमीन पर लंबे समय तक कब्जा रहा है। उन्हें नाकेबंदी और दूसरी तरह की समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। अल-अक्सा मस्जिद को अपवित्र किया गया है। और शासन इसराइलियों के हाथ में रखने की राजनीति होती रही है।‘‘ इंडोनेशिया ने भी जताई अपनी प्रतिक्रिया-

मुस्लिमों की सबसे बड़ी आबादी वाले देश इंडोनेशिया ने भी इसराइल और हमास के बीच हिंसक संघर्ष पर चिंता जताते हुए हिंसा तुरंत बंद करने की अपील की है। हालांकि इंडोनेशिया ने भी कहा है कि इस समस्या की मूल वजह फलस्तीनी इलाकों पर इसराइल का कब्जा है। इंडोनेशिया के विदेश मंत्रालय ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा है, ‘‘इस समस्या को किसी भी तरह सुलझाना होगा। फलीस्तीन पर इसराइली कब्जे से जो समस्या पैदा हुई है, उसे संयुक्त राष्ट्र के मानकों के मुताबिक सुलझाना होगा। अत्याचार करने वाले और इसके शिकार के बीच कोई समानता नहीं हो सकती।‘‘

पाकिस्तान का रुख रातोंरात बदला

इस मामले पर पाकिस्तान का रुख रातोंरात बदलता दिखा। पहले उसने इसराइल पर हमास के हमले का विरोध नहीं किया था। लेकिन उसने जवाबी हमला करने वाली इसराइली सेना की भी निंदा नहीं की थी लेकिन अब पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने फलीस्तीन का साफ तौर पर समर्थन किया है। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के बयान में कहा गया है, ’’पाकिस्तान फलस्तीन के समर्थन में खड़ा है और इसराइल की कब्जा करने वाली सेना की हिंसा और अत्याचार को खत्म करने की अपील करता है।’’

विदेश मंत्रालय के बयान में कहा गया है, "पाकिस्तान हमेशा से वहां दो देशों के सिद्धांत की वकालत करता आ रहा है। पाकिस्तान का कहना है कि इसी से मध्य-पूर्व में शांति आ सकती है। फलस्तीन की समस्या का अंतरराष्ट्रीय कानून के हिसाब से वाजिब और व्यापक समाधान ही यहाँ स्थायी शांति बहाल कर सकता है।"

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बांग्लादेश और मालदीव ने कहा-फलस्तीन को उसका हक मिले-

बांग्लादेश ने भी इसराइल और फलस्तीन मुद्दे पर बयान जारी कर अपना रुख साफ किया है। बांग्लादेश के विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है,‘‘हमारा मानना है कि इस संघर्ष से किसी को फायदा नहीं होने वाला है. हम दोनों पक्षों से संयम बरतने और तुरंत संघर्ष रोकने की मांग करते हैं। बांग्लादेश मानता है कि इलाके में इसराइली कब्जे में रहना और फलस्तीन में इसराइल की अवैध बस्तियों से शांति कायम नहीं हो सकती। लिहाजा बांग्लादेश दो राष्ट्र की नीति का समर्थन करता है।’’ मालदीव के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति मोहम्मद मोइज्जू ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर फलस्तीन पर इसराइल के कब्जे को हटाने की अपील की है।

उन्होंने लिखा है, ‘‘इसराइल को फलस्तीन में तुरंत अपना अवैध कब्जा हटा लेना चाहिए। साथ ही उसे फलस्तीन की कब्जाई जमीन भी उसे लौटा देना चाहिए। इसराइल पूर्वी यरुशल को मिलाकर फलस्तीन को एक स्वतंत्र राष्ट्र के तौर पर मान्यता दे। उसे यरुशलम को 1967 की सीमाओं के आधार पर फलस्तीन की राजधानी मानना चाहिए।’’

हमास को ईरान का समर्थन-

इसराइल पर हमास के हमले का ईरान ने समर्थन किया है। हमास के हमले के बाद हमास के प्रवक्ता गाजी हमद ने कहा कि इस अभियान को ईरान का समर्थन हासिल है। दूसरी तरफ ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता के बयान और सोशल मीडिया पर तेहरान से आ रही जश्न की तस्वीरें भी इस बात की तस्दीक करती दिखीं।

ईरानी विदेश मंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियन: Photo- Social Media

ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नरीस केनानी ने कहा है कि हमास के ऑपरेशन ‘अल-अक्सा फ्लड’ रेजिस्टेंस ग्रुप और सताए हुए फलस्तीनियो की स्वतः स्फूर्त प्रतिक्रिया है। यह फलस्तीनियों के नैसर्गिक निविर्वाद हक के समर्थन में की गई कार्रवाई है। उन्होंने कहा कि इसराइल के खिलाफ ऑपरेशन यहूदियों की युद्ध को बढ़ावा देने और दहशत फैलाने वाली नीतियों के खिलाफ स्वाभाविक प्रतिक्रिया है। खास कर ये उस प्रधानमंत्री की हड़पने वाली और दुस्साहसी नीतियों के खिलाफ जाहिर की गई प्रतिक्रिया है।

ईरान सरकार के इस रुख की ईरान के मीडिया में भी देखने को मिली, जहां हमास के 'अल-अक्सा स्टॉर्म' नाम के इस अभियान को यहूदी शासन के लिए बड़ा धक्का बताया जा रहा है। इसराइल के कई हिस्सों पर हमले के बाद फलस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास (जो हमास के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी हैं) ने कहा कि फलस्तीन के लोगों को हक है कि वो "कब्जा करने वालों के खिलाफ अपना बचाव करें।"

Shashi kant gautam

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