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सीरिया व अन्य देशों के शरणार्थियों की मदद की कीमत चुका रहे मददगार

seema
Published on: 23 Nov 2018 3:05 PM IST
सीरिया व अन्य देशों के शरणार्थियों की मदद की कीमत चुका रहे मददगार
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सीरिया व अन्य देशों के शरणार्थियों की मदद की कीमत चुका रहे मददगार

बर्लिन। जब जर्मनी में सीरिया व अन्य देशों से शरणार्थियों की बाढ़ आई थी तब देश के विदेशी मामलों के दफ्तर ने शरणार्थी सहायता सीरिया संगठन को भरोसा दिलाया था कि ऐसे लोगों की गारंटी देने वालों का दायित्व तभी तक होगा जब तक कि शरणार्थियों को औपचारिक शरण नहीं मिल जाती। संगठन के लोगों ने गारंटी के दस्तावेजों पर दस्तखत किए, उनके लिए विमान का किराया दिया, फ्लैट खोजा और उनके खाने पीने का इंतजाम किया। पश्चिम जर्मनी के बॉन शहर में ही 450 लोगों ने सीरियाई शरणार्थियों के लिए गारंटी दस्तावेजों पर दस्तखत किए। देश में ऐसे 7,000 लोग हैं। अब इन लोगों को रोजगार दफ्तरों के अलावा नगरपालिकाओं से पत्र मिले हैं जिसमें कहा गया है कि वे शरणार्थी गारंटी के बदले में मोटी फीस जमा करें।

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बॉन के रोजगार दफ्तर का बिल 2016 में कानून में हुए संशोधन पर आधारित है। उस समय जर्मनी की सत्ताधारी गठबंधन सरकार ने जर्मनी में आने के नियमों को सख्त बना दिया था। निवास कानून के अनुच्छेद 68 के अनुसार गारंटी की घोषणा की अवधि रिहाइश के दर्जे में बदलाव के साथ खत्म नहीं होती। 6 अगस्त 2016 से पहले उठाए गए दायित्वों का अंत तीन साल बाद और उसके बाद के दायित्वों का अंत पांच साल बाद होगा। जनवरी 2017 में जर्मनी के सर्वोच्च प्रशासनिक अदालत ने इस नियम की पुष्टि कर दी थी।

हालांकि जर्मनी के श्रम मंत्रालय ने कहा है कि गारंटी देने वालों को अदालत के अंतिम फैसले से पहले कोई भुगतान नहीं करना होगा। सरकारी कार्यालय बिल भेजना जारी रखेंगे लेकिन अगली नोटिस तक बिलों का भुगतान नहीं लिया जाएगा। बॉन के वकील मालबैर्ग इस समय 20 गारंटी देने वालों के केस लड़ रहे हैं और हाल ही में कोलोन के प्रशासनिक अदालत में चार केस जीते हैं। कोलोन की अदालत गारंटी देने वालों के पक्ष में फैसला लेने वाली पहली अदालत थी। मालबैर्ग को उम्मीद है कि कोलोन की अदालत का फैसला दूसरी अदालतों के लिए मिसाल का काम करेगा। मालबैर्ग को यह समझना मुश्किल हो रहा है कि मुश्किल में पड़े इंसानों की मदद करने वालों की परोपकारिता की परीक्षा ली जा रही है और उन्हें इसके लिए सजा दी जा रही है। ऐसा ही एक मामला फरीद हसन का है। मूल रूप से सीरिया से आने वाले फरीद पिछले 20 साल से जर्मनी में रह रहे हैं। गारंटी देने वाले के रूप में वे अपने माता पिता और अपने भाइयों के परिवार को लेकर जर्मनी आए। अब सरकार उनसे 85,000 यूरो मांग रही है। वे इतनी बड़ी रकम नहीं चुका सकते।



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सीमा शर्मा लगभग ०६ वर्षों से डिजाइनिंग वर्क कर रही हैं। प्रिटिंग प्रेस में २ वर्ष का अनुभव। 'निष्पक्ष प्रतिदिनÓ हिन्दी दैनिक में दो साल पेज मेकिंग का कार्य किया। श्रीटाइम्स में साप्ताहिक मैगजीन में डिजाइन के पद पर दो साल तक कार्य किया। इसके अलावा जॉब वर्क का अनुभव है।

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